SC में सुनवाई से पहले ही ओबीसी आरक्षण बना सियासत का अखाड़ा

पीसीसी चीफ जीतू पटवारी के पत्र पर राज्यमंत्री कृष्णा गौर ने ट्वीट कर पलटवार किया। अब रामेश्वर ठाकुर ने महाधिवक्ता और सरकार की नियत पर सवाल खड़ा किया।

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Neel Tiwari
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मध्य प्रदेश में ओबीसी आरक्षण का मुद्दा लगातार गरमाया हुआ है। भाजपा की ओबीसी मोर्चा की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और राज्य मंत्री कृष्णा गौर ने एक्स के जरिए कांग्रेस पर निशाना साधा। उन्होंने कहा कि विपक्ष ओबीसी समाज की भावनाओं से खेल रहा है और केवल राजनीति कर रहा है।

गौरतलब है कि यह बयान बीते दिनों कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी के उसे पत्र के सामने आने के बाद आया है। जिसमें उन्होंने सरकार की मंशा पर सवाल उठाए थे।  गौर ने दावा किया कि उच्च न्यायालय ने नियुक्तियों की अनुमति केवल इस शर्त पर दी थी कि 13% आरक्षण होल्ड किया जाएगा। गौर ने कहा अन्यथा हर विज्ञापन पर रोक लग जाती।

एडवोकेट जनरल की बैठक में विपक्षी अधिवक्ताओं ने सहमति जताई कि वे सुप्रीम कोर्ट में लड़ने के लिए दो नाम देंगे। साथ ही, नोट भी सौंपेंगे कि 13% सूची को कैसे अनहोल्ड किया जा सकता है।  लेकिन कांग्रेस ने मुख्यमंत्री की मंशा पर सवाल उठाकर केवल उलझाने का काम किया है।

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ओबीसी समाज को गुमराह करने के आरोप

कृष्णा गौर के इस बयान पर अधिवक्ता रामेश्वर ठाकुर ने प्रेस नोट जारी कर सरकार और महाधिवक्ता कार्यालय को कठघरे में खड़ा किया। उन्होंने कहा कि मंत्री का यह बयान गुमराह करने वाला है क्योंकि 27% आरक्षण पर कोई स्टे नहीं है। बावजूद इसके, सरकार ने अब तक न तो 13% होल्ड पदों को खोला और न ही 27% आरक्षण लागू करने की ठोस रणनीति बनाई। ठाकुर ने आरोप लगाया कि सरकार केवल बैठकों का दिखावा कर रही है, जबकि अदालत में सही पैरवी नहीं की जा रही।

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सरकारी वकील ही बना रहे रोड़ा

ठाकुर ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट की 25 जुलाई और 4 अगस्त 2025 की सुनवाई में जब अदालत 27% आरक्षण और होल्ड पदों को खोलने की दिशा में थी, तब सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता, एएसजी के.एम. नटराज और महाधिवक्ता प्रशांत सिंह ने आपत्ति जताई। उन्होंने साफ कहा कि जब तक महाधिवक्ता प्रशांत सिंह को पद से मुक्त नहीं किया जाएगा, ओबीसी समाज को न्याय नहीं मिलेगा।

5 पॉइंट्स में समझें पूरी स्टोरी

👉 भाजपा की ओबीसी मोर्चा की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और राज्य मंत्री कृष्णा गौर ने कांग्रेस पर ओबीसी समाज की भावनाओं से खेलकर राजनीति करने का आरोप लगाया। 

👉कृष्णा गौर ने यह भी दावा किया कि उच्च न्यायालय ने ओबीसी आरक्षण को 13% तक सीमित करने की शर्त पर नियुक्तियों की अनुमति दी थी। अन्यथा, हर विज्ञापन पर रोक लगने की संभावना थी।

👉अधिवक्ता रामेश्वर ठाकुर ने कृष्णा गौर के बयान को गुमराह करने वाला बताया। उन्होंने कहा कि 27% आरक्षण पर कोई रोक नहीं है, फिर भी सरकार ने 13% होल्ड पदों को नहीं खोला और न ही आरक्षण लागू करने की कोई ठोस रणनीति बनाई। 

👉ठाकुर ने कहा कि जब सुप्रीम कोर्ट ने 27% आरक्षण और होल्ड पदों को खोलने का कदम बढ़ाया, तब सरकार के वकीलों ने आपत्ति जताई। उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार ने ओबीसी समाज के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाए और केवल बैठकों का दिखावा किया।

👉रामेश्वर ठाकुर ने 2019 में कांग्रेस सरकार द्वारा पेश किए गए 51% ओबीसी आबादी के आंकड़ों का हवाला दिया। उनका आरोप था कि मौजूदा सरकार ने अब तक ओबीसी आबादी का कोई नया डाटा हाईकोर्ट में पेश नहीं किया।

सिर्फ बैठकें नहीं, ठोस पहल की जरूरत

रामेश्वर ठाकुर ने दिल्ली में 4 सितंबर को हुई बैठक का जिक्र करते हुए कहा कि महाधिवक्ता ने वहां भी किसी की बात गंभीरता से नहीं सुनी और केवल दो अधिवक्ताओं के नाम बताने की जिद करते रहे। जबकि ओबीसी वर्ग ने साफ कहा था कि उन्हें किसी नए अधिवक्ता की जरूरत नहीं, बल्कि सरकार को 13% होल्ड पद तुरंत खोलने और अदालत में ठोस पैरवी करने की जरूरत है। ठाकुर ने यह भी आरोप लगाया कि पिछली बैठक में तय हुआ था कि दो दिन बाद फिर समन्वय समिति की बैठक होगी, लेकिन अब तक उस बैठक की कोई सूचना तक नहीं दी गई।

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ओबीसी आबादी का डाटा प्रस्तुत न करने पर सवाल 

ठाकुर ने प्रेस नोट के जरिए ही यह याद दिलाया कि 2019 में कांग्रेस सरकार ने हाईकोर्ट में 558 पन्नों का जवाब दाखिल कर 51% ओबीसी आबादी का डाटा पेश किया था, जबकि मौजूदा सरकार ने अब तक कोई नया डाटा दाखिल नहीं किया। उनका कहना है कि सरकार की यह निष्क्रियता ओबीसी समाज के साथ अन्याय है।

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