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Photograph: (thesootr)
जबलपुर हाईकोर्ट में एक चौंकाने वाला मामला सामने आया। एक महिला अपनी बच्चियों को हथियार बनाकर रिश्तेदारों पर झूठे बलात्कार के आरोप लगवाती थी। महिला ने अपनी तीन वर्षीय बच्ची के बलात्कार के मामले में एक अधिवक्ता को भी उलझा दिया था। हाईकोर्ट के फैसले के बाद महिला को जेल की सजा मिलेगी।
मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने एक अहम आदेश में स्पष्ट किया है कि झूठी और मनगढ़ंत शिकायतें दर्ज कराने वालों को अब बख्शा नहीं जाएगा। जस्टिस विशाल मिश्रा की सिंगल बेंच ने वरिष्ठ अधिवक्ता प्रकाश उपाध्याय के खिलाफ दर्ज FIR को खारिज किया। साथ ही शिकायतकर्ता महिला पर ही कड़ी कार्रवाई के निर्देश दिए। यह मामला इस मायने में भी महत्वपूर्ण है क्योंकि इसमें यह उजागर हुआ कि शिकायतकर्ता लंबे समय से इस तरह की झूठी शिकायतें करने की आदतन प्रवृत्ति रखती है।
रीवा के सिविल लाइन थाना क्षेत्र से जुड़ा है मामला
रीवा की रहने वाली एक महिला ने 11 जून 2025 को सिविल लाइंस थाने में एफआईआर दर्ज कराई थी। शिकायत में उसने आरोप लगाया कि रात के समय एक वरिष्ठ अधिवक्ता ने उसके घर में घुसकर उसकी तीन वर्षीय बच्ची के साथ गंभीर अपराध किया।
महिला ने अपने पति और अस्पताल जाने की कहानी गढ़ते हुए पुलिस को घटनाक्रम सुनाया। पुलिस ने कानूनी बाध्यता के चलते एफआईआर तो दर्ज कर ली, लेकिन जैसे-जैसे जांच आगे बढ़ी, वैसे-वैसे यह मामला झूठा साबित होता चला गया।
पुलिस जांच में बेनकाब हुआ झूठ
मामले की जांच के दौरान पुलिस ने मेडिकल रिपोर्ट, गवाहों के बयान, सीसीटीवी फुटेज और फॉरेंसिक जांच कराई। सीसीटीवी फुटेज में घटना की रात घर के आसपास कोई संदिग्ध गतिविधि दर्ज नहीं हुई।एमएलसी और फॉरेंसिक रिपोर्ट में भी बच्ची के शरीर पर किसी प्रकार का शोषण का सबूत नहीं मिला।
डीएनए टेस्ट रिपोर्ट में भी किसी पुरुष के निशान नहीं पाए गए। इसके साथ परिजनों और पड़ोसियों के बयान हुए और महिला के पति ने साफ कहा कि उस रात कोई भी व्यक्ति घर में नहीं घुसा। मकान मालिक और किरायेदारों ने भी यही पुष्टि की कि शिकायतकर्ता अक्सर झूठे आरोप लगाती रही है।
जिस निजी चिकित्सक के पास महिला बच्ची को लेकर गई थी, उसने अदालत में कहा कि महिला ने कभी दुष्कर्म जैसी कोई बात नहीं बताई। इन तथ्यों से यह साफ हो गया कि एफआईआर निराधार और मनगढ़ंत थी।
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झूठी शिकायतों का पुराना इतिहास
जबलपुर हाईकोर्ट के सामने यह तथ्य भी रखा गया कि महिला पहले भी कई बार अलग-अलग लोगों पर इसी तरह के आरोप लगा चुकी है। 2023 में उसने अपनी बड़ी बेटी को पीड़ित दिखाते हुए रिश्तेदारों और एक शिक्षक पर आरोप लगाए, लेकिन बेटी ने खुद अदालत में बयान दिया कि आरोप झूठे हैं।
2024 में उसने फिर से अपनी बड़ी बेटी को सामने रखकर यौन शोषण का केस दर्ज कराया, जिसे विशेष न्यायालय ने साक्ष्यों की कमी और गढ़े जाने की वजह से खारिज कर दिया। इसके बाद उसने अधिवक्ता उपाध्याय के खिलाफ भी कई बार अलग-अलग तरह की शिकायतें कीं जिसमें कभी “शारीरिक उत्पीड़न” तो कभी कोर्ट रूम के बाहर ही दो साल की बच्ची से दुष्कर्म जैसी बातें गढ़ीं।
हर बार पुलिस और अदालत ने उसकी शिकायतों को झूठा पाया और बंद कर दिया। यानी, यह साफ हो गया कि शिकायतकर्ता बार-बार झूठी कहानियां बनाकर लोगों को ब्लैकमेल करने का प्रयास करती रही है।
मां ने अपनी ही बच्चियों का भविष्य लगाया दांव पर
जस्टिस विशाल मिश्रा ने अपने आदेश में लिखा कि इस तरह की शिकायतें कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग और समाज के लिए खतरनाक प्रवृत्ति हैं। झूठे आरोप निर्दोष लोगों की प्रतिष्ठा, सामाजिक सम्मान और मानसिक स्वास्थ्य को गंभीर नुकसान पहुंचाते हैं। शिकायतकर्ता ने यहां तक कि अपनी ही बच्चियों का नाम झूठे मामलों में घसीटकर उनका भविष्य दांव पर लगाया, जो निंदनीय है। कोर्ट ने कहा कि यह पूरा मामला “मैलिशियस प्रोसीक्यूशन” यानी दुर्भावनापूर्ण मुकदमा है और इसे तुरंत खत्म करना जरूरी है।
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5 पॉइंट्स में समझें पूरी स्टोरी
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मां के ऊपर कार्रवाई के आदेश
हाईकोर्ट ने अधिवक्ता के खिलाफ दर्ज एफआईआर क्रमांक 255/2025 को पूरी तरह रद्द कर दिया और रीवा पुलिस अधीक्षक को आदेश दिया कि शिकायतकर्ता महिला के खिलाफ ही मामला दर्ज कर जांच शुरू करें। यह कार्रवाई इन धाराओं के तहत करने के आदेश दिए गए है
POCSO एक्ट की धारा 22: झूठी शिकायत करने पर छह महीने तक की सजा या जुर्माना।
भारतीय न्याय संहिता (BNS) 2023 की धारा 240: गलत सूचना देने पर दो साल तक की सजा।
धारा 248, जिसमें झूठा आरोप लगाने पर 5 से 10 साल तक की सजा और 5 लाख रूपये तक का जुर्माना है।
इसके अलावा कोर्ट ने कहा कि यदि यह महिला भविष्य में कोई और शिकायत दर्ज कराती है, तो उस पर कार्रवाई करने से पहले पुलिस को प्रारंभिक जांच करना अनिवार्य होगा।
फर्जी मामले दर्ज कराने वालों के लिए चेतावनी
हाईकोर्ट का यह आदेश न केवल एक वरिष्ठ अधिवक्ता के लिए न्याय है बल्कि पूरे समाज के लिए भी एक संदेश है। अदालत ने स्पष्ट किया कि जहां असली पीड़ितों को न्याय दिलाना कानून का कर्तव्य है, वहीं झूठी शिकायत करने वालों को बख्शा नहीं जाएगा।
झूठे आरोपों से जहां निर्दोष लोगों की जिंदगी बर्बाद होती है, वहीं असली पीड़ितों के मामलों की गंभीरता भी कम हो जाती है। इसलिए ऐसे मामलों में सख्त कार्रवाई जरूरी है, ताकि समाज में कानून की विश्वसनीयता बनी रहे।