पॉपुलेशन रेशो के हिसाब से ओबीसी आरक्षण की मांग, एमपी हाईकोर्ट में लगी याचिका

मध्‍य प्रदेश में एसटी एससी वर्ग की तरह ही जनसंख्या के अनुपात के हिसाब से ओबीसी आरक्षण की मांग उठी है। इस संबंध में हाईकोर्ट में याचिका लगाई गई है...

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Shreya Nakade
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ओबीसी आरक्षण के लिए मध्य प्रदेश में याचिका
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मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में ओबीसी आरक्षण ( OBC Reservation ) का मुद्दा फिर से उठ गया है। इस बार मामले में एक और नई याचिका लगाकर प्रदेश में एसटी-एससी वर्ग की तरह ओबीसी को भी जनसंख्या के हिसाब से आरक्षण देने की मांग उठाई गई है।

वैदिक साहित्यों का दिया हवाला

जबलपुर मे एडवोकेट यूनियन फार डेमोक्रेसी एंड सोशल जस्टिस नामक संस्था ने जनहित याचिका दायर करके मध्य प्रदेश मे ओबीसी वर्ग को एससी एवं एसटी के समान जनसंख्या अनुपात में आरक्षण दिए जाने की मांग की है।

याचिका में उठाए गए मुद्दों के समर्थन में बताया गया है कि, मण्डल आयोग ने भारतीय वैदिक साहित्यों का अध्ययन करके शूद्र वर्णित जातियों को ओबीसी की सूची मे शामिल  किया था। कहा गया है कि आयोग ने वैदिक सभ्यता मे व्याप्त सामाजिक विषमता तथा भेदभाव को वर्तमान आरक्षण का मूल आधार बताया गया है।

ज्योतिवराव फुले की आरक्षण को लेकर मांग

इसके अलावा याचिकाकर्ता ने कहा कि सदियों पुरानी असमान सामाजिक व्यवस्था को दूर करने महात्मा ज्योतिवराव फुले ने विलियम हंटर आयोग के समक्ष साल 1882 मे आरक्षण की मांग की गई थी | याचिका में आगे आरक्षण के समबंध मे तत्कालीन मैसूर राज्य के महाराजा वाडियार के द्वारा साल 1919 में गठित किए गए मिलर कमीशन की अनुशंषाओं को रेखांकित किया गया है।

साल 1932 मे ब्रिटिश भारत के लिए नया संविधान बनाने के उद्देश्य से इंग्लैंड मे आयोजित, गोलमेज़ सम्मेलन मे आरक्षण पर किए गए विचार विमर्श के आधार पर याचिका मे ओबीसी वर्ग को आनुपातिक आरक्षण का हकदार बताया गया है | 

याचिका में 26 जनवरी 1950 को संविधान लागू होने से आजाद भारत मे ओबीसी आरक्षण के अधिकारों से संबन्धित, काका कालेलकर, मण्डल आयोग, महाजन आयोग तथा गौरीशंकर बिशेन आयोग की रिपोर्टों का हावाला भी दिया गया है।

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नई याचिका क्यों ? 

16 जुलाई को याचिका पर सुनवाई कार्यवाहक मुख्य न्यायमूर्ति श्री संजीव सचदेवा तथा जस्टिस विनय सराफ़ की खंडपीठ द्वारा की गई। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने चुटकी लेते हुए कहा की ओबीसी आरक्षण से संबंधित इस कोर्ट मे लगभग 80 याचिकाएं विचारधीन हैं। ऐसे में जन हित याचिका को क्यों स्वीकार किया जाए।

जवाब में याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि उक्त याचिकाएं सारहीन हो चुकी हैं जो निरस्त किए जाने योग्य है। बाद में कोर्ट ने पूर्व से विचारधीन समस्त याचिकाओं को इस जनहित याचिका से लिंक कर दी। इस मामले की अगली सुनवाई अब 19 जुलाई को होगी। मामले में याचिकाकर्ता की ओर से पैरवी विनायक प्रसाद शाह , रामेश्वर सिंह ठाकुर, परमानंद साहू, पुष्पेंद्र शाह रूप सिंह मरावी ने की।

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