रिश्वत लेते पकड़े गए अफसर को श्रम विभाग ने दे दिया और काम, लोकायुक्त मांग रहा अभियोजन

लोकायुक्त पुलिस ने जून 2020 में एसएस दीक्षित को रिश्वत के मामले में पकड़ा था। आरोप था कि बेटमा (इंदौर) में श्रमोदय स्कूल की मेस के 15 लाख रुपए के बिल भुगतान के एवज में दीक्षित ने डेढ़ लाख रुपए की रिश्वत मांगी थी।

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Sandeep Kumar
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BHOPAL. मध्य प्रदेश में भ्रष्टाचार के मामलों पर सख्ती के दावे खोखले साबित हो रहे हैं। सरकारी महकमों में भ्रष्टाचार पर कार्रवाई के बजाय आरोपी अफसरों को अतिरिक्त प्रभार दिए जाने की परंपरा तक बन रही है। श्रम विभाग में ऐसा ही एक मामला सामने आया है, जिसमें रिश्वत के आरोप में पकड़े गए एसएस दीक्षित को विभाग में बरकरार रखा गया है। अब उन्हें तीन निगम-मंडलों का भी अतिरिक्त प्रभार सौंप दिया गया है। सूत्रों के अनुसार, इस मामले में विभागीय मंत्री की भी मंजूरी नहीं ली गई है। 

एसएस दीक्षित को श्रम विभाग के तीन महत्वपूर्ण पदों का प्रभार सौंपा गया है। इसमें सचिव, मध्यप्रदेश भवन एवं अन्य संनिर्माण कर्मकार कल्याण मंडल, सचिव, मध्यप्रदेश असंगठित शहरी/ग्रामीण कर्मकार कल्याण मंडल और कल्याण आयुक्त, मध्यप्रदेश श्रम कल्याण मंडल शामिल है। यह मामला इसलिए गंभीर है, क्योंकि लोकायुक्त पुलिस ने जून 2020 में इन्हें रिश्वत लेते हुए पकड़ा था। सरकारी नियमों के अनुसार, ऐसे मामलों में अभियोजन स्वीकृति दी जानी चाहिए थी, ताकि कानूनी कार्रवाई हो सके, लेकिन इसके बजाय दीक्षित को पदोन्नति जैसा लाभ दे दिया गया है। 

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क्या है पूरा मामला?

लोकायुक्त पुलिस ने जून 2020 में एसएस दीक्षित को रिश्वत के मामले में पकड़ा था। आरोप था कि बेटमा (इंदौर) में श्रमोदय स्कूल की मेस के 15 लाख रुपए के बिल भुगतान के एवज में दीक्षित ने डेढ़ लाख रुपए की रिश्वत मांगी थी। मुंबई के गौरव शर्मा ने इस मामले में शिकायत की थी, इसके बाद लोकायुक्त पुलिस ने दीक्षित को ट्रैप किया था। 
इस कार्रवाई के बाद उन्हें सस्पेंड कर दिया गया था। फिर मामला आगे बढ़ा। लोकायुक्त पुलिस ने 19 जुलाई 2024 को श्रम विभाग के प्रमुख सचिव को चिट्ठी लिखकर अभियोजन की स्वीकृति मांगी, ताकि दीक्षित पर कानूनी कार्रवाई की जा सके, लेकिन श्रम विभाग ने अभियोजन स्वीकृति जारी करने के बजाय, उन्हें फिर से उसी विभाग और पद पर बहाल कर दिया।

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प्रमुख सचिव ने दी तैनाती 

17 फरवरी 2025 को श्रम विभाग के प्रमुख सचिव उमाकांत उमराव ने एसएस दीक्षित को बड़े स्तर पर प्रशासनिक और वित्तीय कामों की जिम्मेदारी सौंप दी है। सूत्रों के अनुसार, इस फैसले के लिए विभागीय मंत्री से भी अनुमोदन नहीं लिया गया है। जब इस फैसले पर श्रम विभाग के प्रमुख सचिव उमाकांत उमराव से प्रतिक्रिया लेने के लिए 'द सूत्र' की टीम ने उनसे संपर्क किया तो उनकी ओर से कोई जवाब नहीं आया। 

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'द सूत्र' व्यू 

क्या भ्रष्टाचारियों को संरक्षण दे रहे बड़े अफसर? 

यह पूरा मामला प्रदेश की भ्रष्टाचार विरोधी नीति पर सवाल खड़े करता है। क्या यह सिस्टम की खामी है या फिर प्रभावशाली अफसरों को बचाने की साजिश? जिस अफसर पर रिश्वत के गंभीर आरोप लगे, जिस पर कार्रवाई लंबित हो, उसे बिना किसी जवाबदेही के अतिरिक्त काम देना किस नीति का हिस्सा है? क्या भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टॉलरेंस की बात सिर्फ दिखावा है?

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