भोपाल नगर निगम के खजाने में सेंध लगाकर अफसरों ने ठेकेदार को किया मालामाल

भोपाल नगर निगम ने ठेकेदार को फायदा पहुंचाने के चक्कर में सरकार को बट्टा लगाकर नए भवन के लिए 22.57 करोड़ की प्रशासकीय स्वीकृति के बावजूद लागत को 39 करोड़ तक पहुंचा दिया।

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Sanjay Sharma
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Photograph: (the sootr)

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BHOPAL. घपले-घोटाले हों या सरकारी योजनाओं के लाभ के वितरण में पक्षपात के आरोप, नगरीय निकाय अकसर इनसे घिरे नजर आते हैं। ऐसी ही सुर्खियों में रहने वाला भोपाल नगर निगम निर्माण एजेंसी को फायदा पहुंचाने के चक्कर में सरकार को करोड़ों का बट्टा लगाने के आरोपों में घिरा है। निगम के नए भवन के लिए विभाग से मिली 22.57 करोड़ की प्रशासकीय स्वीकृति के बावजूद अधिकारियों ने इसे बढ़ाकर 39 करोड़ तक पहुंचा दिया। ठेकेदार को जीएसटी में 6 फीसदी का अधिक भुगतान कराया गया और निर्माण अधूरा होने पर भी अमानत राशि वापस करा दी। यानी निगम के अफसर विभाग के नुकसान की परवाह छोड़कर ठेकेदार का हित साधने में लगे रहे। 

दरअसल भोपाल नगर निगम को नए भवन के निर्माण के लिए विभाग से 22.54 करोड़ रुपए की प्रशासकीय स्वीकृति मिली थी। भवन बनाने का वर्क ऑर्डर जारी होने के बाद फरवरी 2022 में ठेकेदार ने निर्माण कार्य शुरू किया। भवन निर्माण के लिए दो साल की अवधि तय की गई थी लेकिन अलग-अलग कारणों के चलते निर्माण में देरी हुई और अब यह काम करीब साल भर पिछड़ चुका है। इस बीच नगर निगम के अधिकारियों ने निर्माण लागत में वृद्धि का हवाला देते हुए ठेकेदार को फायदा पहुंचाने की कवायद शुरू कर दी। इसके लिए विभाग और मेयर इन काउंसिल को भी गलत जानकारी दी गई। 

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मेयर काउंसिल को भी अंधेरे में रखा 

नगर निगम में नेता प्रतिपक्ष शबिस्ता जकी का कहना है कि भवन निर्माण के लिए प्रशासकीय स्वीकृति 22.57 लाख आंकी गई थी। इसमें मेयर इन काउंसिल अधिकतम 20 फीसदी तक इजाफा कर सकती है। अधिकारियों ने मेयर इन काउंसिल को अंधेरे में रखा और दायरे से बाहर जाकर अतिरिक्त राशि में 50 फीसदी का इजाफा करा लिया। इससे निर्माण लागत 33.27 करोड़ तक पहुंच गई। कुछ महीने बाद एक बार फिर नगर निगम परिषद के पास प्रस्ताव भेज दिया और 19 फीसदी इजाफा कराने में कामयाब हो गए। जिससे 22 करोड़ की स्वीकृति वाले भवन की लागत 39.91 करोड़ से भी ऊपर पहुंच गई है। 

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लेटलतीफी के बदले पहुंचाया फायदा 

नगर निगम के भवन के निर्माण का ठेका लेने वाली एजेंसी पर अधिकारी कुछ ज्यादा ही मेहरबान रहे। दो साल में जो एजेंसी अनुबंध को पूरा कर निर्माण पूरा नहीं कर सकी उस पर कोई जुर्माना नहीं ठोका गया। उल्टा उसकी लागत बढ़ने की मांग पर प्रस्ताव तैयार कर कभी मेयर इन काउंसिल तो कभी निगम परिषद से बजट की राशि बढ़वाते रहे। अधिकारियों की मेहरबानी यहीं पर खत्म नहीं हुई, बल्कि काम अधूरा होने के बावजूद ठेकेदार की मांग पर 85 लाख का एफडीआर सिक्योरिटी डिपॉजिट वापस करा दिया। 

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जुर्माने को टाल अधिकारी दे रहे दलील 

निर्माण कार्य में हो रही लेटलतीफी का मामला निगम की बैठकों में उठने के बाद भी अधिकारियों का रवैया नहीं सुधरा है। वे अब भी ठेकेदार की तरफदारी में लगे हैं। निर्माण में देरी के लिए एजेंसी पर जुर्माना लगाने की पार्षदों की मांग को दरकिनार कर अधिकारी काम जल्द कराने की सफाई दे रहे हैं। निगम के इंजीनियर सुबोध जैन ने ठेकेदार की ओर से पार्षदों को जून के आखिरी सप्ताह तक काम पूरा कराने की सफाई दी है। उनका कहना था निर्माण का मुख्य काम पूरा हो चुका है। फिनिशिंग ही शेष रह गई है इसे भी जल्द पूरा करा लिया जाएगा। अब तक निर्माण पूरा न होने पर ठेकेदार पर कार्रवाई के सवाल पर वे चुप्पी साध गए।  

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6 प्रतिशत जीएसटी का अधिक भुगतान 

निर्माण कार्यों की टेंडर प्रक्रिया के दौरान रेट के साथ जीएसटी की जो दर कोट की जाती है वहीं कायम रहती है। भवन निर्माण के लिए प्रदेश में निर्माण एजेंसियां 12 प्रतिशत जीएसटी टेंडर रेट के साथ कोट करती हैं। नगर निगम के भवन के टेंडर के दस्तावेज में निर्माण एजेंसी ने 12 प्रतिशत जीएसटी का उल्लेख किया था। इसके बावजूद अधिकारियों ने नियम विरुद्ध जाकर 12 प्रतिशत की जगह 18 प्रतिशत अधिक जीएसटी का भुगतान करा दिया। यानी जीएसटी के भुगतान में भी नगर निगम को 6 प्रतिशत ज्यादा राशि का नुकसान उठाना पड़ा है। नगर निगम के अधिकारियों की इस कारगुजारी के उजागर होने और विपक्ष के आरोपों के बाद नगर निगम अध्यक्ष किशन सूर्यवंशी ने पूरे मामले में जांच कराने के निर्देश दिए हैं।  

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