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गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर घोषित पद्म पुरस्कारों में मध्य प्रदेश के निमाड़ क्षेत्र के साहित्यकार जगदीश जोशीला को पद्मश्री से सम्मानित किया गया है। निमाड़ी के इकलौते उपन्यासकार के रूप में पहचाने जाने वाले जोशीला ने इस उपलब्धि को निमाड़ और निमाड़ी बोली के सम्मान का प्रतीक बताया। जानें, निमाड़ी साहित्य के इस स्तंभ की प्रेरक यात्रा।
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जगदीश जोशीला: निमाड़ी साहित्य के पहले उपन्यासकार
76 वर्षीय जगदीश जोशीला के निमाड़ी गद्य का जनक माना जाता है। निमाड़ी में दो उपन्यास और हिंदी में 10 उपन्यासों समेत कुल 56 पुस्तकें लिखने वाले जोशीला ने साहित्य के माध्यम से निमाड़ और निमाड़ी बोली को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई है।
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माखनलाल चतुर्वेदी ने दिया 'जोशीला' उपनाम
प्रसिद्ध साहित्यकार माखनलाल चतुर्वेदी ने उन्हें 'जोशीला' उपनाम दिया। यह नाम उनकी रचनाओं और व्यक्तित्व की ऊर्जा को दर्शाता है। निमाड़ी के प्रति उनके जुनून ने उन्हें एक आंदोलनकारी साहित्यकार बना दिया।
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पद्मश्री: निमाड़ का सम्मान
जोशीला ने इस सम्मान को निमाड़ी और निमाड़ क्षेत्र का गौरव बताया। उन्होंने कहा, यह पुरस्कार निमाड़ी बोली को भाषा का दर्जा दिलाने की हमारी मुहिम को और मजबूत करेगा।ट
मजदूर परिवार से पद्मश्री तक का सफर
3 जून 1949 को खरगोन जिले के गोगावा में एक साधारण मजदूर परिवार में जन्मे जोशीला ने संघर्षों के बीच अपनी पढ़ाई पूरी की। इंदौर से साहित्य विशारद की उपाधि लेने के बाद उन्होंने साहित्य में अपना करियर बनाया।
संत सिंगाजी और निमाड़ी का योगदान
जोशीला ने निमाड़ के संत सिंगाजी पर 778 पेज का शोध उपन्यास लिखा। इसके अलावा, उन्होंने अहिल्या माता, जननायक टंट्या मामा, और आदि शंकराचार्य जैसे ऐतिहासिक पात्रों पर उपन्यास रचे।
निमाड़ी को भाषा का दर्जा दिलाने का संघर्ष
निमाड़ी को भाषा का दर्जा दिलाने के लिए जोशीला ने 30 साल तक पत्र लिखे और जनप्रतिनिधियों से अपील की। उनका कहना है कि इस प्रयास में राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी रही।
अखिल निमाड़ी लोक परिषद की स्थापना
2001 में जोशीला ने अखिल निमाड़ी लोक परिषद की स्थापना की। इस संगठन ने निमाड़ी बोली को एक मजबूत मंच दिया और इसे संरक्षित व प्रोत्साहित करने के लिए आंदोलन चलाए।
निमाड़ी साहित्य की समृद्ध विरासत
जोशीला ने निमाड़ी व्याकरण और शब्दकोष तैयार करके साहित्य को समृद्ध किया। उनकी दो प्रसिद्ध निमाड़ी रचनाएं – सरग-नरक यां छे और भाई की जड़ पाताल में – निमाड़ी साहित्य की धरोहर हैं।