रविकांत दीक्षित @ भोपाल
यह अपराध, राजनीति, आरोप-प्रत्यारोप, घपले-घोटाले या धर्म-अध्यात्म की खबर नहीं है… यह सट्टा, जुआ, और शराब की खबर भी नहीं है… आप पढ़ेंगे क्या...?
खबर की हेडिंग और इंट्रो परम्परागत खबरों से थोड़ा इतर है, क्योंकि यह खबर एक मर चुकी नदी को फिर जिंदा करने की कवायद से जुड़ी है खबर।
यह खबर है उस शहर की जिसे कभी दो नदियों वाला शहर कहे जाने पर गर्व था।
यह 45 बरस पहले दो दर्जन गांवों के खेतों को तर करने वाली एक नदी की खबर है। अपनी आंखों के सामने एक 'मां' को पल-पल घुटते-मरते देख चुके उन उम्रदराज लोगों की खबर है, जिन्होंने अपनी युवावस्था और जवानी में इसमें गोते लगाए थे। यह जनप्रतिनिधियों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, संगठनों और अफसरों के साझा व सकारात्मक प्रयासों की खबर है।
अब खबर है तो खबर बनेगी और छपेगी भी। मुझे लगता है आपको पढ़ना चाहिए। क्योंकि आप अपने बच्चों को गर्व से यह बता सकेंगे कि यह नदी आपकी आंखों के सामने फिर 'जिंदा' हुई है। अपेक्षा बस इतनी भर है कि जब आप अपने लाड़ले, लाडो को नदी की कहानी बताएं तो आपका सीना गर्व से भर जाना चाहिए, होंठों पर मुस्कान तैर जानी चाहिए। और यह तब होगा, जब आप भी अपने नागरिक होने का कर्तव्य निभाएंगे, नदी के शुद्धिकरण में अपना भरपूर योगदान देंगे।
चलिए अब शुरू करते हैं...
यह अतरंगी खबर भोपाल से 105 किलोमीटर दूर दिल्ली-मुंबई रेल मार्ग पर बसे गंजबासौदा ( Ganj Basoda ) की है। यहीं कभी कल-कल बहती थी सुंदर नदी पाराशरी ( Parashari River )। इस नदी का ना तो भूगोल की किसी किताब में जिक्र है और ना कोई नक्शा, मगर 40, 50 और 60 के दशक में जन्मे उन लोगों के जहन में यह उथली नदी गहराई से पैठ जमाए है, जिन्होंने पाराशरी को जिया है।
ये उन दिनों की बात है, जब मैं पत्रकारिता का ककहरा सीख रहा था। मेरे गुरु, वरिष्ठ अध्येता, पर्यावरणविद् और वरिष्ठ पत्रकार स्वर्गीय अनिल यादव अक्सर पाराशरी की चिंता करते थे। वे कहते थे, 'हमारे नगर के बीच से होकर बहने वाली बेचारी हमारी पाराशरी नदी। वे भी गंजबासौदा के उन सैकड़ों युवाओं में से एक थे, जो करीब साठ बरस पहले अपने मित्रों के साथ पाराशरी के साफ-स्वच्छ पानी में कभी कभार डुबकी लगा आते थे। अखबार में खबर लिखते वक्त वे अक्सर पाराशरी की यात्रा कहते थे। वे कहते थे कि सरकारी स्कूल से पीरियड गोल करके वे और उन जैसे कई छात्र पाराशरी में चुपचाप डुबकियां मार लेते थे।
50 हजार लोगों को निहाल करती थी पाराशरी
पाराशरी की यात्रा समझने के लिए 'द सूत्र' ने गंजबासौदा के उन तमाम किरदारों से बात की, जिन्होंने कभी इस नदी को बेहद करीब से देखा, जाना, समझा और जिया है। दरअसल, यह नदी ग्राम हिरनौदा के तालाब से निकलकर गंजबासौदा को दो हिस्सों में बांटते हुए करीब 10 किलोमीटर आगे बहकर बेतवा में मिल जाती है। यूं तो पाराशरी बहुत छोटी नदी है। यह मात्र 35 से 40 किलोमीटर का सफर करके आगे बेतवा में मिल जाती है, पर तब इसका असर करीब 50 हजार की आबादी पर पड़ता था। पाराशरी की रंगत से खेत दमकते थे, युवा चमकते थे।
ये खबर भी पढ़िये...
कहां गुम हो गई वो अविरल धारा
नगर पालिका प्रबंधन के साथ नदी को पुनर्जीवित करने के प्रयासों में जुटे सुरेंद्र दांगी कहते हैं, आज 60 बरस की उम्र पार कर चुके तब के सैकड़ों युवाओं ने पाराशरी में खूब गोते लगाए हैं। गर्मियों में भी इसकी अविरल धारा नजर आती थी, फिर यह क्षीणकाय धारा कहां गुम हो गई, किसी को पता ही नहीं चला। अतिक्रमण से लेकर हर वो काम हुए, जो नदी को मिटाने के लिए काफी थे। धीरे-धीरे नदी में गटर खोल दिए गए। आज पाराशरी गंदा नाला बनकर रह गई है। हालांकि वे इस बात से संतोष में हैं कि अब इसे फिर से जीवित करने के प्रयास में उनकी पंचतत्व संरक्षण समिति और नगर पालिका प्रशासन जुटा हुआ है।
बासौदा से गंगा तक गंदगी भेज रहे
आज महज कचरा फेंकने का गड्ढा बन चुकी पाराशरी नदी गंगा-यमुना के कछार में आती है, पर यह जानकारी आज के चुल्लू भर युवाओं को ही पता होगी। मित्रो, हमारे अंचल में बरसा पानी पाराशरी से होता हुआ ही बेतवा में पहुंचता है, जो आगे हमीरपुर, उत्तरप्रदेश में यमुना नदी में जा मिलता है। गौर करने वाली बात यही है कि यमुना तो गंगा की ही सहायक नदी है। इस तरह जाने- अनजाने में गंजबासौदा के हजारों हजार वाशिंदें अपनी गंदगी 'मां गंगा' तक भेजते रहे हैं।
ये खबर भी पढ़िये...
INDIA को मिली पहली अंडर वॉटर मेट्रो, जानें कैसे बनी है नदी के अंदर सुरंग
ऋषि के कमंडल से निकली जलधारा
वरिष्ठ भाजपा नेता देवेंद्र यादव कहते हैं, एक दौर था, जब पाराशरी नदी में हाथी डुब्बा पानी भरा रहता था, पर ऐसी दुर्दशा हुई कि आज गाजर घास और झाड़ियां हैं। पुरानी कहानियों को याद करते हुए वे कहते हैं कि पाराशर ऋषि के कमंडल के लुढ़कने से जलधारा निकली थी, इसलिए इसका नाम पाराशरी पड़ गया। पांच दशक पहले तक गंगा, यमुना और नर्मदा न देखने वालों के लिए पाराशरी मानो महानदी ही हुआ करती थी। बुजुर्ग, बच्चों को अकेले नदी पर जाने से रोकने के लिए कहते थे कि इसमें मगरमच्छ भी रहते हैं।
नदी ने कभी बलि नहीं ली, लोगों ने ही उसे मार दिया
नदी में गोता लगाने का सुख भोग चुके द सूत्र के चक्रेश महोबिया आज भी अपनी यादों में खो जाते हैं। उन्होंने बताया कि पाराशरी गंजबासौदा को दो भागों में बांटती है। शहर को जोड़ने के लिए नदी पर पत्थरों का मेहराबदार और मजबूत पत्थरों का पुल बंधा हुआ है। हालांकि ये पुल कब बनाया गया था, आज इसका जवाब देने वाला शायद शहर में कोई नहीं बचा। अपने बचपन को याद करते हुए वरिष्ठ पत्रकार चक्रेश कहते हैं, अपनी मित्र मंडली के बीच धाक जमाने के लिए कई युवा तो बरसात में चढ़ी नदी में कूद जाया करते थे। कई बार जब कोई अनहोनी हो जाए तो कहा जाने लगता था कि नदी हर साल बलि लेती है। नदी ने तो कभी बलि नहीं ली, पर शहरवासियों ने उसे मार दिया है।
अतिक्रमण ने नदी को लील लिया
शहर के वरिष्ठ समाजसेवी कांतिभाई शाह ने बताया, तब स्टेशन क्षेत्र में रहने वाले युवाओं का झुंड पंचवीर घाट पर डेरा डाले रहता था। 1960 के आसपास नदी में एक छोटा कुआं भी हुआ करता था। जिस पर पुराने समय का पंप और टंकी बनी थी। वहीं से तब स्टेशन के पास तीन पालियों में चलने वाले विशाल स्टैंडर्ड ऑयल एंड फ्लोर मिल को पानी दिया जाता था। अब नदी की स्थिति अच्छी नहीं है। उतना ही पानी रहता है, जो नदी में मिलने वाले नालों से बहकर पहुंच जाता है। अतिक्रमण ने नदी को लील लिया।
नदी शहर की आत्मा हुआ करती थी
नदी को करीब से देखने वाले घनश्याम दास साध भी अपना बचपन याद करते हैं। उन्होंने कहा, पांच दशक पहले तक पाराशरी से मवेशियों को पीने का पानी मिलता था। लोग नहाते थे, बच्चे इसी में तैरना सीखते थे। डोल ग्यारस पर भगवान का जलविहार, पितृपक्ष में पितरों का तर्पण, दूल्हा-दुल्हन के मोहर, जवारे-भुजरिया और माहुलिया का विसर्जन इसी नदी में होता था, पर अब नदी को देखकर दु:ख होता है। अच्छी बात यह है कि अब नगर पालिका ने नदी को जीवित करने के लिए युद्ध स्तर पर प्रयास शुरू किए हैं।
नगर पालिका ने उठाया बीड़ा
नगर पालिका अध्यक्ष शशि अनिल यादव ने बताया, पाराशरी के संरक्षण के लिए हम कई काम कर रहे हैं। नदी को गहरा और चौड़ा कर दिया गया है। दोनों किनारों पर 6 फीट गहरी नींव खोदकर, करीब 6 फीट ऊंची दीवार खड़ी की जा रही है। इस दीवार के ऊपर पत्थरों से पिचिंग की जाएगी, ताकि मिट्टी बहकर नदी में न जाए। इसके ऊपर दोनों तरफ रास्ता बनाया जाएगा और यहीं पौधे रोपे जाएंगे। इसी जगह एक पक्के घाट का निर्माण किया जाएगा।
thesootr links
- मध्य प्रदेश की खबरें पढ़ने यहां क्लिक करें
- छत्तीसगढ़ की खबरें पढ़ने यहां क्लिक करें
- रोचक वेब स्टोरीज देखने के लिए करें क्लिक