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MP News: मध्यप्रदेश के सागर जिले की शाहपुर नगर पंचायत से रिश्वतखोरी का एक गंभीर मामला सामने आया है। पटवारी रामसागर तिवारी पर एक किसान से जमीन के नामांतरण के बदले 20 हजार रुपये की रिश्वत मांगने का आरोप है। किसान की याचिका में यह भी कहा गया कि पटवारी ने कहा, "जब तक 20 हजार रुपये नहीं दोगे, तब तक नामांतरण नहीं होगा, चाहे प्रधानमंत्री के पास ही क्यों न चले जाओ।"
पूरे दस्तावेजों के बाद भी रिश्वत
दरअसल, किसान अनिरुद्ध श्रीवास्तव ने 29 मार्च 2025 को अपने चाचा राजेश श्रीवास्तव से एक भूखंड खरीदा। रजिस्ट्री वैध तरीके से हुआ और सभी दस्तावेज किसान के पास थे। इसके बाद किसान ने 8 मई 2025 को हल्का नंबर 107 के पटवारी रामसागर तिवारी को नामांतरण प्रक्रिया शुरू करने के लिए आवेदन दिया। दस्तावेज पूरे होने के बाद भी पटवारी ने नामांतरण के लिए 20 हजार रुपए की मांग की। इस मामले ने यह स्पष्ट कर दिया कि अब सरकारी दफ्तरों में बिना 'नजराना' दिए वैध काम भी नहीं होते।
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किसान को हर ओर निराशा
किसान अनिरुद्ध ने रिश्वत की मांग को लेकर स्थानीय प्रशासन से न्याय की आस लगाई। उन्होंने सागर कलेक्टर और संभागायुक्त को लिखित शिकायत दी। हालांकि, हैरान करने वाली बात यह रही कि इतनी गंभीर शिकायत के बावजूद कोई जांच नहीं हुई। न ही किसी स्तर पर जवाबदेही तय की गई। यह प्रशासनिक उदासीनता भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने के वादों की असलियत को दर्शाती है। थक-हारकर किसान ने अदालत का रुख करने का फैसला किया।
HC ने दिए FIR दर्ज करने के निर्देश
किसान अनिरुद्ध श्रीवास्तव ने जब देखा कि प्रशासन उनकी शिकायत नहीं सुन रहा, तो उन्होंने जबलपुर हाईकोर्ट में रिट याचिका दायर की। याचिका की सुनवाई जस्टिस विशाल मिश्रा की एकलपीठ ने की। कोर्ट ने मामले की गंभीरता को समझते हुए लोकायुक्त को निर्देश दिया कि FIR दर्ज की जाए। इसके साथ ही पटवारी रामसागर तिवारी के खिलाफ जांच कर विधिसम्मत कार्रवाई की जाए। यह आदेश भ्रष्टाचार के खिलाफ लाचार पीड़ितों के लिए मिसाल बन सकता है।
कोर्ट से मिला इंसाफ
इस आदेश ने साबित कर दिया कि अगर आम नागरिक अपनी आवाज कानूनी तरीके से उठाए, तो न्याय मिलता है। किसान अनिरुद्ध का साहस और अदालत तक जाना यह दर्शाता है कि भ्रष्ट व्यवस्था के खिलाफ लड़ाई जीती जा सकती है। इसमें उनके वकील हितेंद्र कुमार गोह्लानी की अहम भूमिका रही, जिन्होंने RPS लॉ एसोसिएट्स की ओर से कानूनी रणनीति के साथ याचिका प्रस्तुत की और न्यायालय को सच्चाई से अवगत कराया।
भ्रष्ट तंत्र से टकराया किसान
इस मामले से यह स्पष्ट हुआ कि निचले स्तर के अधिकारी भी जनता को त्रस्त कर सकते हैं। हालांकि, जब आम जनता डर के बजाय कानून का सहारा लेती है, तो ऐसी घटनाओं पर अंकुश लगाया जा सकता है। यह मामला एक किसान की जीत ही नहीं, बल्कि न्यायपालिका में आमजन की आस्था का प्रतीक भी है। लोकायुक्त की आगामी कार्रवाई पर सबकी नजरें रहेंगी, और उम्मीद की जाती है कि दोषी को उसके कृत्य के अनुसार सजा मिले, न कि उसके पद या पहचान का लाभ मिले।
अगर आप भी कभी किसी सरकारी कर्मचारी द्वारा रिश्वत, डराने या टालमटोल की नीति का शिकार हुए हैं, तो घबराएं नहीं। सबसे पहले संबंधित कार्यालय में लिखित शिकायत करें, अगर सुनवाई न हो तो लोकायुक्त या कोर्ट का दरवाजा खटखटाएं।
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