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The Sootr
इंदौर के पीथमपुर के रामकी में चल रहे यूका कचरे के ट्रायल रन की रिपोर्ट पर पीथमपुर बचाओ समिति ने सवाल उठाए हैं। समिति ने शुक्रवार को इंदौर में प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित कर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि पहला 10 मीट्रिक टन का ट्रायल रन फेल रहा है। जिसे सरकार सफल बता रही है। पहले ट्रायल रन से कोई सीख नहीं ली गई और जल्दबाजी में दूसरा ट्रायल रन भी शुरू कर दिया गया।
ट्रायल के नाम पर जनता से छिपाई गई सच्चाई?
समिति के अध्यक्ष डॉ. हेमंत कुमार हिरोले ने जानकारी दी कि पहले ट्रायल की पूरी रिपोर्ट आम जनता के सामने नहीं रखी गई। इस ट्रायल के दौरान पर्यावरण मानकों का सही तरीके से पालन नहीं किया गया, लेकिन सीपीसीबी (CPCB) और एमपीपीसीबी (MPPCB) ने बिना जांच के नए ट्रायल को मंजूरी दे दी। समिति ने मांग की है कि जब तक पहले ट्रायल की पूरी रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं की जाती और उसमें स्पष्टता नहीं दी जाती, तब तक दूसरा ट्रायल रोका जाए।
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समिति ने ये आरोप लगाए:
ऑनलाइन निगरानी (OCEMS) के दौरान स्टैक 1 और स्टैक 2 का तापमान नहीं दिखाया गया, जबकि यह प्रदूषण नियंत्रण का सबसे महत्वपूर्ण मानक है।
OCEMS रिपोर्ट में 3 मार्च को तापमान 100°C से भी कम बताया गया, जो सामान्य प्रक्रियाओं के विपरीत है।
2015 और 2025 की रिपोर्ट्स की तुलना करने पर पाया गया कि कई पैरामीटर और डेटा 2025 की रिपोर्ट में मनमाने ढंग से कॉपी-पेस्ट किए गए हैं।
रिपोर्ट में धातु (मेटल) और अन्य खतरनाक रसायनों की जांच के बारे में कोई स्पष्ट जानकारी नहीं दी गई।
डाईऑक्सिन और फ्यूरान जैसे अत्यंत जहरीले तत्वों की मात्रा को स्पष्ट नहीं किया गया, जिससे लोगों के स्वास्थ्य पर सीधा असर पड़ सकता है।
क्या जनता के पैसे से खिलवाड़ हो रहा है?
समिति ने सवाल उठाया है कि इस प्रोजेक्ट पर टैक्सपेयर्स का पैसा खर्च किया जा रहा है, लेकिन यह जनता के नुकसान का कारण बन सकता है। पीथमपुर, इंदौर, देवास, उज्जैन और आसपास के क्षेत्रों की जनता को इस कचरा निपटान प्रणाली से गंभीर खतरा हो सकता है।
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जनता और पार्षदों की राय को किया नजरअंदाज
नगर निगम पार्षदों और क्षेत्रीय नागरिकों की सहमति के बिना यूनियन कार्बाइड के खतरनाक कचरे को पीथमपुर में नष्ट करने की मंजूरी दी गई। इसका विरोध करने वाले कुछ नागरिकों से जबरन सहमति पत्र पर हस्ताक्षर करवा लिए गए, जो कानूनी रूप से संदिग्ध है।
पर्यावरण मानकों की अनदेखी
पहले ट्रायल में 72 घंटे की प्रक्रिया के दौरान 60 किलो लिक्विड वेस्ट जलाया गया, लेकिन वैज्ञानिक तरीके से इसकी माप नहीं की गई।
इंदौर के केमिकल कचरे से उत्पन्न प्रदूषण का असर नापने के लिए किसी वैज्ञानिक परीक्षण की जानकारी नहीं दी गई।
2015 के ट्रायल में हजारों लीटर पानी का इस्तेमाल किया गया, लेकिन इसकी रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं की गई।
न्यायालय तक जाएगी लड़ाई
समिति ने ऐलान किया है कि यदि पारदर्शिता नहीं बरती गई, तो वह उच्च न्यायालय में याचिका दायर करेगी। डॉ. हिरोले ने कहा, "हम इंदौर और आसपास के शहरों की जनता को इस खतरे से बचाने के लिए हर संभव प्रयास करेंगे।" उन्होंने कहा कि इस पूरे मामले में सरकार, पर्यावरण संस्थाओं और नगर निगम की जवाबदेही पर सवाल खड़े हो रहे हैं। बिना उचित जानकारी के यदि पीथमपुर जैसे इलाके में अत्यधिक खतरनाक कचरा जलाया जाता है, तो इसका प्रभाव लंबे समय तक जनता के स्वास्थ्य और पर्यावरण पर पड़ सकता है।
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जनता को जागरूक रहने की जरूरत
समिति ने जनता से अपील की है कि वह इस मुद्दे को गंभीरता से लें और अपने स्वास्थ्य व पर्यावरण की सुरक्षा के लिए आवाज उठाएं। सरकार और प्रशासन को भी चाहिए कि वे पारदर्शिता बरतें और वैज्ञानिक मानकों का सही तरीके से पालन करें।