पीथमपुर में यूनियन कार्बाइड कचरे के रामकी संयंत्र में निष्पादन को लेकर बवाल मचा हुआ है। सीएम डॉ. मोहन यादव की सरकार दो दिन चले हंगामे के बाद बैकफुट पर है। लेकिन इस मामले में अधिकारियों ने कम फजीहत नहीं कराई है। इसे लेकर ग्रुप आफ मिनिस्टर्स की 2011-12 के दौरान हुई विविध मीटिंग के मिनिट्स द सूत्र के पास है। इसमें साफ है कि किस तरह इस कचरे को पीथमपुर में ही निराकरण के लिए फैसला लिया गया, जबकि तत्कालीन समय रामकी संयंत्र विविध मानकों पर फेल था, फिर इसमें बदलाव हुए। लेकिन अधिकारी यह जानकारी ढंग से बता ही नहीं सके।
शिवराज सिंह ने कर दिया था मना
मप्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने इस कचरे के निराकरण के लिए सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में चल रहे केस के दौरान कई बार रामकी का दौरा किया और इसे परखा। इसमें भारी खामियां सामने आई। इसके चलते मप्र सरकार की शिवराज सिंह चौहान की सरकार ने 11 अगस्त 2010 को पत्र लिखकर ग्रुप ऑफ मिनिस्टर्स (जीओएम) को बता दिया कि पीथमपुर का रामकी संयंत्र इस कचरे को जलाने असमर्थ है और इसलिए इसका अन्य विकल्प खोजना जरूरी है।
विकल्प खोजे, महाराष्ट्र सरकार ने करा मना
इसके बाद जीओएम में इसके अन्य विकल्प के लिए बात हुई। सबसे पहले नागपुर में डीआरडीओ के बोरखेड़ी में इसे जलाने पर सहमति बनी। लेकिन महाराष्ट्र की कांग्रेस सरकार के प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड ने एनओसी देने से मना कर दिया और मामला रुक गया। कहा गया कि डीआरडीओ के संयंत्र में कचरा जलाने को लेकर आवश्यक उपकरण नहीं है। उल्लेखनीय है कि इसी तरह रामकी में भी व्यवस्था नहीं थी।
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इसके बाद महाराष्ट्र के तलोजा में आई बात
इसी दौरान लगी याचिका पर 22 सितंबर 2011 को 10 मीट्रिक टन यूका कचरा सेंपल लेकर ट्रायल करने के आदेश दिए गए। इसी दौरान महाराष्ट्र के तलोजा में महाराष्ट्र वेस्ट मैनेजमेंटस लिमिटेड द्वारा संचालित संयंत्र में इसके जलाने की बात उठी। मप्र पाल्यूशन कंट्रोल बोर्ड ने भी एनओसी जारी कर दी, लेकिन फिर महाराष्ट्र की कांग्रेस सरकार ने इसे मना कर दिया और कहा कि यह कचरा आपसी सहमति से जलना चाहिए और इसके लिए महाराष्ट्र सरकार को विश्वास में नहीं लिया गया। इसी बीच जर्मनी में भी कचरा भेजे जाने की बात आई लेकिन इसके बाद वहां से भी मना हो गया।
जीओएम ने यह टास्क फोर्स का दिया हवाला
इसके बाद साल फरवरी 2012 में हुई जीओएम का बैठक में कहा गया कि केंद्रीय कैबिनेट (यूपीए सरकार) के 26 जून 2010 के फैसले के अनुसार इसका निराकरण कचरे के निकट स्त्रोत यानी पीथमपुर में ही किया जाना चाहिए। मप्र सरकार ने भले ही अन्य विकल्पों की बात की लेकिन वह व्यावहारिक नहीं पाई गई। बैठक में पर्यावरण व जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के संयुक्त सचिव ने सचिव रसायन व पेट्रो केमिकल की अध्यक्षता में बनी टास्क फोर्स की रिपोर्ट का हवाला दिया जिसमे 350 मीट्रिक टन यूका कचरा पीथमपुर में ही जलाने की बात थी, के तहत मप्र सरकार को रामकी संयंत्र के लिए सभी वयवस्थाएं देखने और कमियां दूर कर मंजूरी जारी करने के लिए कहा गया। इसके लिए मप्र प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड को आदेश दिए गए।
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प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड की रामकी को लेकर यह थी प्ररांभिक रिपोर्ट
साल 13 मार्च 2012 में प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड का एक पत्र है, जिसमें साफ लिखा था कि रामकी के निरीक्षण के बाद पाया गया कि यहां व्यवस्थाएं पर्याप्त नहीं है और सेकेंडंरी चेंबर की डिजाइन पर भी विचार करना उचित होगा। निरीक्षण में यह गंभीर बात पाई गई ती कि सेकेंडरी चेंबर का ढक्कन खुलने पर वातावरण में जो गैस निष्कासित होती है उससे प्रदूषक तत्वों का शुद्दीकरण कैसे होता है, यह संयंत्र वाले नहीं बता सके, या कभी पावर फेल हुई, तो डीजी सेट एक्टिव करने में पांच मिनट का समय लगता है, इससे आशंका बनती है कि सेंकडरी चेंबर का ढक्कन खुलने पर इसमें जमा प्रदूषित गैसों का रिसाव बिना किसी उपचार के होगा।
लोकमैत्री ने चलाया था जन आंदोलन
बोर्ड का दौरा उस समय पीथमपुर औद्योगिक संगठन, लौकमैत्री संगठन द्वारा चलाए गए वृहद जनआंदोलन के चलते हुआ था। आंदोलन में प्रमुख भूमिका निभाने वाले गौतम कोठारी ने कहा कि इसके बाद ही रामकी संयंत्र में कई चलताउ कम बंद हुए और इसमें मल्टी इफेक्ट ई वेपोरेटर व अन्य सुविधाएं शुरू हुई।
बाद में लगा था मल्टी इफेक्ट ई वेपोरेटर
हालांकि इन कमियों को बाद में दूर करने का दावा किया गया। बोर्ड द्वारा बताई गई कमियों को दूर करने के लिए रामकी ने आठ करोड़ की कीमत का मल्टी इफेक्ट ई वेपोरेटर लगाया। यह वेपोरेटर इंसीनरेटर में कचरा जलने के बाद उठे धूल, पानी के कीचड़ को सोख लेता है और फिर धीरे-धीरे उसे भाप बनाकर वातावरण में छोड़ता है। रामकी की वैसे तो क्षमता 2500 किलो प्रति घंटे की है लेकिन यूका का कचरा केवल 90 किलो प्रति घंटे की की गति से ही जलेगा, जिससे किसी तरह की रिस्क नहीं होगी और जहरीला कचरा संयंत्र की पूरी क्षमता से जलेगा। बाद में बचे वेस्ट को सेवन लेयर तालाब बनाकर डंप किया जाएगा। जो पूरी तरह सुरक्षित होता है।
यूका का 39.6 मीट्रिक टन कचरा पहले दब चुका
साल 2014 यहां सुप्रीम कोर्ट के मार्च 2013 के आदेश पर दस मीट्रिक टन हिंदुस्तान इन्सेक्टीसाइड लिमिटेड प्लांट कोच्ची का दस मीट्रिक टन कचरा लाकर सफल ट्रायल हुआ था। इसकी रिपोर्ट के बाद फिर यूका का दन मीट्रिक टन कचरा लाया गया और इसका निष्पादन हुआ, जिसकी रिपोर्ट सफल हुई और ट्रायल रन सही रहा। वहीं इसके पहले जून 2008 में यूका का ही 39.6 मीट्रिक टन कचरा (लाइम स्लज) यहां लाकर दफन किया जा चुका है। यह लाइन स्लज कचरा था इसे सीमेंट्र के ब्लाक बनाकर दफन किया गया जो सुरक्षित है, अब चूंकि बाकि कचरा एसिडिक है इसलिए इसे भष्मक में ही जलाना है। इसमे सबसे घातक होता है जलने के बाद निकला धुआं, लेकिन अब मल्टी इफेक्ट ई वेपोरेटर लगने के बाद यह अधिक सुरक्षित हुआ है। जो धीरे-धीरे इस धुएं को वातावरण में छोड़ेगा।