प्लेगेरिज्म पर घिरे सेंट्रल यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर, क्यों थाने पहुंचा मामला

डॉ. हरिसिंह गौर सेंट्रल यूनिवर्सिटी प्लेगेरिज्म के एक मामले से चर्चा में आ गई है। प्लेगरिज्म यानी साहित्य की चोरी का यह मामला सेंट्रल यूनिवर्सिटी के फैकल्टी अफेयर्स डायरेक्टर से जुड़ा है।

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Ravi Singh
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 Dr Harisingh Gaur
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BHOPAL : देश भर में शैक्षणिक संस्थाओं और प्रमुख परीक्षा संचालन एजेंसियां इनदिनों कठघरे में। कहीं पढ़ाई पर सवाल खड़े हो रहे हैं तो कहीं भर्ती परीक्षा और उनके रिजल्ट विवाद की वजह बने हैं। ऐसे में प्रदेश की डॉ.हरिसिंह गौर सेंट्रल यूनिवर्सिटी ( Dr. Harisingh Gaur Central University ) प्लेगेरिज्म के एक मामले से चर्चा में आ गई है। प्लेगरिज्म यानी साहित्य की चोरी का यह मामला सेंट्रल यूनिवर्सिटी के फैकल्टी अफेयर्स डायरेक्टर से जुड़ा है। यूनिवर्सिटी प्रशासन द्वारा मामले पर चुप्पी साध लेने के बाद इसकी शिकायत सिविल लाइन पुलिस थाने में की गई है। DoFA चेयरमैन के साहित्य चोरी के मामले में घिरने के बाद अब यूनिवर्सिटी प्रशासन की भी किरकिरी हो रही है।

यूनिवर्सिटी की चुप्पी पर थाने पहुंचा मामला

डॉ.हरिसिंह गौर सेंट्रल यूनिवर्सिटी प्रदेश की पहली यूनिवर्सिटी भी है। हाल ही में डायरेक्टर ऑफ फैकल्टी अफेयर्स प्रो. अजीत जायसवाल पर प्लेगेरिज्म का आरोप लगाकर कुलपति प्रो.नीलिमा गुप्ता से शिकायत की गई है। प्रो.जायसवाल यूनिवर्सिटी में एंथ्रोपोलॉजी विभाग के अध्यक्ष भी हैं।

साहित्य चोरी से संबंधित तथ्य सौंपने पर भी यूनिवर्सिटी प्रशासन ने कार्रवाई नहीं की गई। इस पर शिकायतकर्ता अरविंद भट्ट सिविल लाइन थाने पहुंच गए। भट्ट ने पुलिस से प्रोफेसर पर साहित्य चोरी और धोखाधड़ी का केस दर्ज करने की मांग की है।

एंथ्रोपोलॉजी के मॉड्यूल कंटेंट पर खड़ा हुआ विवाद

दरअसल शोध जगत और विद्वानों की दुनिया में प्लेगेरिज्म ( plagiarism ) यानी की साहित्य की चोरी को सबसे खराब माना जाता है। अकसर शोध कार्य से जुड़े मामलों में इसके आरोप सबसे ज्यादा लगते हैं। डॉ.हरिसिंह गौर सेंट्रल यूनिवर्सिटी के प्रो. अजीत जायसवाल भी इनदिनों इन्हीं आरोपों से घिरे हैं।

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बताया जाता है प्रो. ने साल 2015 में यूजीसी और ईजीपी पाठशाला प्रोग्राम के तहत कोर्स कंटेंट तैयार किए थे। इसी में मानवीकरण की प्रक्रिया टाइटल वाला कंटेंट भी था। इस कंटेंट को एंथ्रोपोलॉजी के पहले पेपर के मॉड्यूल 6 में जोड़ा गया। प्लेगेरिज्म का विवाद इसी कंटेंट की  वजह से खड़ा हुआ है। शिकायत का आधार भी यही तथ्य है।

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बिहार से प्रकाशित पुस्तक से कंटेट चोरी का आरोप

जानकारी के अनुसार प्रो. जायसवाल ने मानवीकरण की प्रक्रिया टाइटल वाले कंटेंट को अपना बताया है। जबकि शिकायतकर्ता का कहना है यह प्रो.पी.नाथ की किताब फिजिकल एंथ्रोपोलॉजी का अंश है। यह किताब साल 2012 की है जिसे पटना के पब्लिकेशन से प्रकाशित किया था।

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इसी किताब के पेज नंबर 442 से लेकर आगे कई पन्नों की कॉपी करके प्रो.जायसवाल द्वारा कोर्स मॉड्यूल तैयार कर इसे अपना बताया गया है। शिकायतकर्ता भट्ट ने जायसवाल के अन्य शोध पत्र, पुस्तक और आलेखों में चोरी के कंटेंट का उपयोग करने अंदेशा भी शिकायत में दर्ज कराया है।

एकेडमिक जगत में बुरा क्यों है प्लेगेरिज्म

शोध और शैक्षणिक जगत में प्लेगेरिज्म को सबसे बुरा माना जाता है। इसको लेकर गंभीर प्रावधान भी हैं। यदि किसी पर आरोप साबित हो जाते हैं तो उसे नौकरी गंवाने के साथ ही क्रिमिनल केस का भी सामना करना पड़ सकता है। जिसको लेकर सेंट्रल यूनिवर्सिटी के डायरेक्टर ऑफ फैकल्टी अफेयर्स घिरे नजर आ रहे है।

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जानिए वह प्लेगेरिज्म है क्या। दरअसल शोध पत्रों, पुस्तकों, आलेखों से दूसरे राइटर के कंटेंट की चोरी या फिर अपने कंटेंट को अलग- अलग बताकर दो- दो बार अलग टाइटल से प्रकाशित करना इस श्रेणी में आता है। यह कॉपीराइट एक्ट 1957 की धारा 57 में यह अपराध है। इसके तहत दूसरों के कंटेट लेकर स्वयं लेखक होने का दावा नहीं किया जा सकता। इसके लिए जुर्माने के साथ साथ सजा का भी प्रावधान है।

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