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Photograph: (The Sootr)
BHOPAL. हायर एजुकेशन को कंट्रोल करने वाली संस्था विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) एक बार फिर विवादों के केंद्र में आ गई है। तय समय सीमा में विश्वविद्यालयों द्वारा आवश्यक जानकारी जमा करने के बावजूद UGC ने कई प्रतिष्ठित संस्थानों को 'डिफॉल्ट' घोषित कर दिया है। यह कार्रवाई बिना किसी सूची अपडेट के की गई, जिससे शिक्षाविदों और विश्वविद्यालय प्रशासकों में भारी आक्रोश फैल गया है।
शिक्षा क्षेत्र से जुड़े कई विशेषज्ञों का मानना है कि इससे न केवल संस्थानों की छवि धूमिल हो रही है, बल्कि छात्रों में अनावश्यक भ्रम भी पैदा हो रहा है। कई विश्वविद्यालय अब इस 'अनैतिक' फैसले के खिलाफ अदालत का रुख करने की तैयारी कर रहे हैं।
UGC की विवादास्पद कार्रवाई: नियमों का उल्लंघन या लापरवाही?
UGC ने हाल ही में जारी की गई सूची में कई राज्य सरकार द्वारा संचालित और निजी विश्वविद्यालयों को डिफॉल्ट कैटेगरी में डाल दिया। आयोग के अनुसार, यह कार्रवाई UGC एक्ट 1956 की धारा 13 के तहत जानकारी न जमा करने पर आधारित है। लेकिन प्रभावित कई विश्वविद्यालयों का दावा है कि उन्होंने समय पर सभी दस्तावेज भेज दिए थे। उदाहरण के तौर पर, मध्य प्रदेश का राजीव गांधी प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (RGPV) जैसी संस्थाएं इस सूची में शामिल हैं, जो पहले भी इसी तरह की गलती का शिकार हो चुकी हैं।
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क्या UGC की प्रक्रिया अवैध है?
शिक्षाविदों ने UGC की इस प्रक्रिया को 'अवैध' करार दिया है। दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर डॉ. अजय सिंह कहते हैं कि "UGC के समस्त नियमों का पालन करने वाले संस्थानों को बिना जांच के डिफॉल्ट घोषित करना न केवल अनुचित है, बल्कि उच्च शिक्षा की गुणवत्ता पर भी सवाल उठाता है।" यह विवाद तब और गहरा गया जब पता चला कि UGC ने सूची अपडेट करने में देरी की, जिससे पुरानी और अप्रासंगिक जानकारी पर आधारित फैसला लिया गया। आयोग ने 1 अप्रैल 2025 तक की अपडेटेड लिस्ट जारी की थी, लेकिन इसमें कई संस्थानों की हालिया रिपोर्ट्स को नजरअंदाज किया गया।
एडमिशन प्रकिया हो रही प्रभावित
इस कार्रवाई का असर छात्रों पर भी पड़ रहा है। कई विश्वविद्यालयों में एडमिशन प्रक्रिया प्रभावित हो गई है, क्योंकि अभिभावक अब डिग्री की वैधता पर सवाल उठा रहे हैं। एक सर्वे के अनुसार, प्रभावित संस्थानों में नामांकन में 15-20% की गिरावट दर्ज की गई है। UGC की यह 'गैर-जिम्मेदाराना' हरकत उच्च शिक्षा मंत्रालय के लिए भी शर्मिंदगी का सबब बन रही है।
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विश्वविद्यालयों ने दी कोर्ट जाने की धमकी
कई विश्वविद्यालय अब UGC के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की योजना बना रहे हैं। महाराष्ट्र के 17 राज्य विश्वविद्यालय और 9 निजी संस्थान, जो डिफॉल्ट लिस्ट में शामिल हैं, ने संयुक्त रूप से एक बयान जारी किया है। इनमें मुंबई विश्वविद्यालय और सावित्रीबाई फुले पुणे विश्वविद्यालय जैसे बड़े नाम शामिल हैं। इनका कहना है कि राज्य सरकार के सभी नियमों का पालन करने के बावजूद UGC द्वारा 'डिफॉल्ट' जैसे अपमानजनक शब्दों का इस्तेमाल अनैतिक है।
एक प्रभावित विश्वविद्यालय के कुलपति ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, "हमने ऑम्बड्सपर्सन नियुक्ति और एंटी-रैगिंग नॉर्म्स की पूरी जानकारी समय पर भेजी थी। फिर भी हमें डिफॉल्टर घोषित करना न्याय के खिलाफ है। हम हाईकोर्ट में अपील करेंगे।" इसी तरह, आंध्र प्रदेश और केरल के कुछ निजी विश्वविद्यालय भी इस सूची में फंसे हैं, जहां फेक यूनिवर्सिटी लिस्ट के साथ डिफॉल्ट घोषणा ने भ्रम की स्थिति पैदा कर दी।
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आईआईटी जैसे संस्थान भी लिस्ट में शामिल
UGC की लिस्ट में IIT बॉम्बे, IIT खड़गपुर, IIM बॉम्बे जैसे टॉप संस्थान भी शामिल हैं, जो एंटी-रैगिंग नियमों के कथित उल्लंघन के लिए नोटिस का सामना कर रहे हैं। यह विवाद जून 2025 में शुरू हुआ, जब UGC ने 89 संस्थानों को शो-कॉज नोटिस जारी किए। विशेषज्ञों का कहना है कि यह कार्रवाई UGC की आंतरिक प्रक्रियाओं की कमजोरी को उजागर करती है।
UGC की विश्वसनीयता पर सवाल
शिक्षा विशेषज्ञ UGC की इस कार्रवाई को 'प्रशासनिक लापरवाही' बता रहे हैं। नेशनल एजुकेशन पॉलिसी (NEP 2020) के तहत UGC को अधिक पारदर्शी और सहयोगी भूमिका निभानी चाहिए, लेकिन यह घटना उलट दिख रही है। प्रमुख शिक्षा नीति विशेषज्ञ डॉ. रीता शर्मा ने मामले पर कहा कि "डिफॉल्ट घोषणा से विश्वविद्यालयों की फंडिंग प्रभावित होती है, जो अंततः छात्रों को नुकसान पहुंचाती है। UGC को डिजिटल ट्रैकिंग सिस्टम अपनाना चाहिए ताकि ऐसी गलतियां न हों।"
इसके अलावा, राज्य सरकारें भी सक्रिय हो रही हैं। उत्तर प्रदेश, जहां सबसे अधिक फेक यूनिवर्सिटी (8) पाई गई हैं, ने UGC से स्पष्टीकरण मांगा है। एक रिपोर्ट के मुताबिक, 2025 में UGC ने 21 फेक यूनिवर्सिटी की लिस्ट जारी की, लेकिन डिफॉल्ट लिस्ट में वास्तविक संस्थानों को शामिल करना भ्रम पैदा कर रहा है।
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यूजीसी ने दोहराई पुरानी गलतियां
यह पहली बार नहीं है जब UGC ऐसी विवादास्पद कार्रवाई कर रहा है। 2024 में भी 157 विश्वविद्यालयों को ऑम्बड्सपर्सन न नियुक्त करने के लिए डिफॉल्टर घोषित किया गया था, जिसमें कई सरकारी संस्थान शामिल थे। बाद में गलती स्वीकारते हुए UGC ने संशोधित सूची जारी की। मध्यप्रदेश के राजीव गांधी टेक्निकल यूनिवर्सिटी (आरजीपीवी) का मामला इसी का उदाहरण है, जहां आयोग को अदालत में सफाई देनी पड़ी।
विशेषज्ञों का मानना है कि ये दोहराई जाने वाली गलतियां UGC की विश्वसनीयता को कमजोर कर रही हैं। एक अध्ययन के अनुसार, पिछले दो वर्षों में UGC के 30% फैसलों पर अदालती हस्तक्षेप हुआ है। यदि यह सिलसिला जारी रहा, तो उच्च शिक्षा क्षेत्र में सुधार की प्रक्रिया पटरी से उतर सकती है।