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MP NEWS: जबलपुर में निजी स्कूली वाहनों के नाम पर चल रहे स्कूल वैन और ओवरलोडिंग ऑटो तो किसी से छिपा नहीं है। महंगे-महंगे निजी स्कूलों के द्वारा चलाई जा रही स्कूल बसें भी नियमों को ताक पर रखकर बच्चों की सुरक्षा से खिलवाड़ कर रहे हैं। अब यह मामला हाईकोर्ट पहुंच चुका है और कोर्ट ने जबलपुर कलेक्टर सहित एसपी यातायात से जवाब मांगा है।
हाईकोर्ट ने कलेक्टर, एसपी से मांगा जवाब
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की डबल बेंच ने बच्चों की सुरक्षा से जुड़े संवेदनशील मुद्दे पर सख्त रुख अपनाया है। जबलपुर शहर में सड़कों पर स्कूल बसों की अनियंत्रित पार्किंग और बच्चों को सड़क के बीचोंबीच उतारने की आदत अब अदालत की नजर में आ चुकी है। जस्टिस सुरेश कुमार कैत और जस्टिस एस. धर्माधिकारी की पीठ ने इस विषय पर सुनवाई की है। जस्टिस ने प्रदेश के मुख्य सचिव, जबलपुर के संभागायुक्त, कलेक्टर, नगर निगम आयुक्त समेत तमाम सभी प्रमुख अधिकारियों को नोटिस जारी किया है। कोर्ट ने इस मामले में चार सप्ताह में जवाब मांगा है।
बचपन की सुरक्षा अब अदालत के दरवाजे पर
यह याचिका जबलपुर निवासी अधिवक्ता जसवीन गुजराल द्वारा दाखिल की गई है, जो की चिंता का विषय है। विशेषकर स्कूलों तक पहुंचने की प्रक्रिया में बच्चे खतरे का सामना कर रहे हैं। उससे बचने के लिए यह याचिका दायर की गई है। याचिका में सुप्रीम कोर्ट द्वारा "बचपन बचाओ आंदोलन बनाम भारत सरकार" केस में जारी किए गए दिशा-निर्देशों का हवाला दिया गया है। जिनमें कहा गया था कि बच्चों की सुरक्षा और देखभाल को प्राथमिकता दी जाए। इसके बाद वर्ष 2022 में राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने स्पष्ट गाइडलाइन जारी की थी, जिसके अनुसार स्कूल वाहनों की पार्किंग स्कूल परिसर के भीतर होना अनिवार्य है। बावजूद इसके, आज भी अधिकांश स्कूल इस नियम का खुलेआम उल्लंघन कर रहे हैं।
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सड़कों पर उतरते हैं मासूम बच्चे
याचिकाकर्ताओं ने इस बात पर गंभीर चिंता जताई है कि शहर के अधिकांश निजी स्कूलों की बसें सड़कों के किनारे पार्क की जाती हैं। स्कूल परिसर में पर्याप्त जगह होते हुए भी यह प्रबंधन लापरवाही बरतता है और बच्चों को बाहर सड़क पर ही उतार दिया जाता है। सुबह के समय जब यातायात अपने चरम पर होता है, तब स्कूल बसें, ऑटो और वैन एक के पीछे एक रुकती हैं, जिससे पूरे इलाके में जाम की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। न केवल ट्रैफिक प्रभावित होता है, बल्कि छोटे बच्चों की जान को भी हर दिन खतरा रहता है। एक छोटी सी चूक बड़ी दुर्घटना में बदल सकती है।
राष्ट्रीय राजमार्ग मंत्रालय की गाइडलाइन
स्कूल बसों के संचालन और निगरानी से जुड़े नियम केवल राज्य परिवहन विभाग तक सीमित नहीं हैं। केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (CBSE) और भारत सरकार के सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय द्वारा भी इस पर सख्त दिशा निर्देश जारी किए गए हैं।
CBSE के दिशा-निर्देशों के अनुसार, स्कूल प्रबंधन की जिम्मेदारी है कि वे छात्रों की परिवहन सुरक्षा के सभी मानदंडों का पालन करें। इसके तहत प्रत्येक स्कूल को एक परिवहन समन्वयक नियुक्त करना अनिवार्य है और हर बस यात्रा के दौरान एक शिक्षक की उपस्थिति भी सुनिश्चित की जानी चाहिए। इसके अलावा, प्रत्येक स्कूल वाहन में स्पीड गवर्नर, फर्स्ट ऐड बॉक्स, अग्निशमन यंत्र, और ड्राइवर तथा अटेंडेंट का नाम, संपर्क नंबर सहित पहचान स्पष्ट रूप से प्रदर्शित होना चाहिए। वहीं, राष्ट्रीय राजमार्ग मंत्रालय द्वारा जारी अधिसूचना G.S.R. 868(E) के अनुसार, जिस वाहन में ड्राइवर को छोड़कर तेरह या अधिक यात्रियों की क्षमता हो और जिसका उपयोग विशेष रूप से स्कूली छात्रों के परिवहन के लिए किया जाता हो, वही "स्कूल बस" की परिभाषा में आता है। अधिसूचना में यह भी स्पष्ट किया गया है कि ऐसी सभी बसें पीले रंग की होनी चाहिए। उन पर स्कूल का नाम लिखा हो, खिड़कियों पर ग्रिल, 40 किमी/घंटा की अधिकतम गति नियंत्रक, भरोसेमंद ताले, और फिटनेस सर्टिफिकेट अनिवार्य होना चाहिए। साथ ही, बस का चालक वैध भारी वाहन ड्राइविंग लाइसेंस धारण करता हो, उसे कम से कम पांच वर्षों का अनुभव हो और पिछले एक वर्ष में कोई गंभीर यातायात उल्लंघन न हुआ हो, यह भी अनिवार्य शर्तों में शामिल है।
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क्या कहती है स्कूली वाहन नीति?
मध्य प्रदेश में स्कूली वाहनों की सुरक्षा को लेकर स्पष्ट नीतियां बनाई गई हैं, जिनका पालन हर स्कूल और परिवहन संचालक के लिए अनिवार्य है। ये नियम सिर्फ दिखावे के लिए नहीं, बल्कि बच्चों की सुरक्षा के लिए जीवन-मरण का सवाल हैं....
1. स्कूल बस का वर्गीकरण: केवल एम-2 और एम-3 श्रेणी के वाहन, जिनमें ड्राइवर को छोड़कर कम से कम 13 यात्रियों की क्षमता हो, ही उपयोग किए जा सकते हैं।
2. अनुमति और रंग: हर वाहन का परमिट सक्षम अधिकारी द्वारा जारी होना चाहिए, और सभी वाहन पीले रंग से पेंट किए हों।
3. पहचान चिन्ह: वाहन के दोनों ओर "स्कूल बस" लिखा हो। यदि वाहन किराए पर लिया गया हो तो "On School Duty" आगे और पीछे अंकित हो।
4. सुरक्षा उपकरण: हर बस में स्टॉप सिग्नल आर्म, स्पीड गवर्नर और संबंधित प्रमाण-पत्र अनिवार्य हैं।
5. स्टेप की ऊंचाई: वाहन में रिट्रैक्टिंग स्टेप हो, जिसकी ऊंचाई 220 मिमी से अधिक न हो।
6. सिंबल: बस के ऊपर 350 मिमी आकार का "स्कूल बस" सिंबल होना चाहिए।
7. पट्टी और नाम: दोनों ओर 150 मिमी चौड़ी सुनहरे भूरे रंग की पट्टी हो, जिस पर स्कूल का नाम लिखा हो।
8. आपातकालीन निकास: पिछली साइड में इमरजेंसी डोर और एग्जिट की व्यवस्था हो।
9. खिड़की सुरक्षा: खिड़कियों पर हॉरिजॉन्टल ग्रिल एवं दरवाजों पर भरोसेमंद लॉक अनिवार्य।
10. सीसीटीवी: सभी वाहनों में सीसीटीवी कैमरा होना अनिवार्य है।
11. स्टोरेज रैक: बच्चों के बैग, लंच और पानी के लिए सीटों के नीचे रैक होना चाहिए।
12. क्षमता का पालन: पंजीकरण क्षमता से अधिक बच्चों को वाहन में न बैठाया जाए।
13. स्कूल की ओर से पार्किंग: वाहन स्कूल वाली साइड पर ही रुकें।
14. पार्किंग स्कूल में: बस पार्किंग स्कूल परिसर में ही हो। ड्राइवर के पास 5 साल का अनुभव और वैध ड्राइविंग लाइसेंस हो।
15. पुलिस सत्यापन: ड्राइवर का पुलिस सत्यापन अनिवार्य।
16. अटेंडेंट की व्यवस्था: वाहन में अटेंडेंट हो; लड़कियों की सवारी पर महिला अटेंडेंट होना जरूरी।
17. वर्दी और पहचान: ड्राइवर-कंडक्टर वर्दी में हों, नाम-पट्टिका और लाइसेंस नंबर के साथ।
18. ब्लैक फिल्म निषेध: खिड़कियों पर काली फिल्म न हो।
19. फर्स्ट ऐड और अग्निशमन यंत्र: अनिवार्य रूप से वाहन में फर्स्ट ऐड बॉक्स और फायर एक्सटिंग्विशर होना चाहिए।
20. ट्रैफिक संकेत: बस में ट्रैफिक संकेत बोर्ड लगे हों।
21. गति सीमा और ब्रेकर: स्कूलों के बाहर 25 किमी प्रति घंटा की गति सीमा और स्पीड ब्रेकर की व्यवस्था हो।
22. धुंध में पीली लाइट: सर्दियों में धुंध के दिनों में पीली लाइट अनिवार्य।
हाईकोर्ट ने खींचा अफसरों का ध्यान
इस जनहित याचिका की सबसे बड़ी उपलब्धि यह रही कि इसमें सिर्फ स्कूलों को ही दोषी नहीं ठहराया गया, बल्कि पूरी प्रशासनिक व्यवस्था पर सवाल उठाए गए। याचिका में राज्य के मुख्य सचिव से लेकर जिला स्तर के अधिकारियों तक को पक्षकार बनाया गया है। हाईकोर्ट की युगल पीठ ने यह स्पष्ट किया है कि बच्चों की सुरक्षा केवल स्कूलों की जवाबदेही नहीं है, बल्कि शासन और प्रशासन की भी साझा जिम्मेदारी है। चार सप्ताह की समय सीमा में मांगा गया जवाब इस बात का संकेत है कि अब इस मुद्दे को नजरअंदाज करना संभव नहीं होगा।
जनता की भागीदारी भी जरूरी
यह जरूरी है कि इस मुद्दे को केवल अदालत और प्रशासन तक सीमित न रखा जाए। हर अभिभावक, शिक्षक, स्कूल संचालक और नागरिक को यह समझना होगा कि सड़कों पर बसें खड़ी करके हम अपने ही बच्चों की सुरक्षा से खिलवाड़ कर रहे हैं। हाईकोर्ट की यह कार्रवाई एक चेतावनी भी है और सुधार की दिशा में पहला कदम भी। अब यह हम सब पर निर्भर करता है कि हम इसे जिम्मेदारों पर छोड़ दें या जन चेतना की अलख जलाकर व्यवस्था में बदलाव लाएं।