प्रमोशन में आरक्षण के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका, सरकार की मंशा पर उठे सवाल

लंबे समय से रुके हुए प्रमोशन का रास्ता खोलने के बाद अब एक बार फिर यह मामला कानूनी विवाद में उलझ गया है। हाईकोर्ट ने सरकार को नोटिस जारी करते हुए मौखिक आश्वासन मांगा है कि अगली सुनवाई तक कोई भी प्रमोशन नहीं किए जाएंगे।

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Neel Tiwari
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मध्यप्रदेश की नई प्रमोशन नीति 2025 को लेकर कानूनी और संवैधानिक विवाद एक बार फिर गहरा गया है। अनारक्षित श्रेणी के सरकारी कर्मचारियों द्वारा दायर याचिकाओं पर सोमवार को हुई सुनवाई में जबलपुर हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से कई महत्वपूर्ण सवाल पूछे। 

याचिकाकर्ताओं की ओर से अधिवक्ता सुरेश मोहन गुरु ने अदालत में तर्क रखे। उन्होंने कहा कि नई नीति सुप्रीम कोर्ट के 'यथा स्थिति बनाए रखने' के निर्देशों को निष्प्रभावी करती है। यह नीति आर. बी. राय बनाम मध्यप्रदेश शासन के आदेश से बचने के लिए जल्दबाज़ी में लागू की गई है। आपको बता दें कि प्रमोशन में आरक्षण के नए नियम लागू होने के बाद सरकार एक भी डीपीसी (विभागीय पदोन्नति समिति की बैठक) नहीं कर पाई।

सुप्रीम कोर्ट के आदेश को दरकिनार करने की कोशिश

अधिवक्ता सुरेश मोहन गुरु ने कोर्ट को बताया कि सुप्रीम कोर्ट में जरनैल सिंह बनाम भारत संघ मामले में यह पहले ही तय हो चुका है कि प्रमोशन में आरक्षण केवल तब दिया जा सकता है जब यह साबित हो कि संबंधित वर्ग का प्रतिनिधित्व अपर्याप्त है। इसके लिए ठोस परिमाणात्मक आंकड़ों (quantifiable data) की आवश्यकता होती है। बावजूद इसके, राज्य सरकार ने वर्ष 2002 की नीति के लंबित रहने और उस पर status quo (यथास्थिति) लागू होने के बावजूद 2025 में नई नीति लागू कर दी।

सुप्रीम कोर्ट का जरनैल सिंह वाला फैसला

अलग-अलग ग्रुप के डाटा में पाई गई थी विसंगतियां

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क्या आर. बी. राय केस के फैसले से बचने बनी नई नीति

सुनवाई के दौरान कोर्ट ने यह भी पाया कि मध्यप्रदेश हाईकोर्ट के आर. बी. राय बनाम मध्यप्रदेश शासन मामले में साफ कहा गया था कि यदि 2002 की प्रमोशन नीति संविधान के अनुरूप नहीं पाई जाती, तो हाईकोर्ट उसमें prospective overruling (भविष्य के लिए अमान्यता) की व्यवस्था नहीं कर सकता। यह विशेष रूप से सुप्रीम कोर्ट के एक पुराने फैसले "स्टेट ऑफ हिमाचल प्रदेश बनाम नूरपुर प्राइवेट बस ऑपरेटर्स यूनियन (1999)" के हवाले से कहा गया था।

सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के बावजूद कैसे बनी नई नीति- HC

हाईकोर्ट में एक्टिंग चीफ जस्टिस संजीव द्विवेदी और जस्टिस विनय सराफ की डिविजनल बेंच ने राज्य सरकार से सीधे सवाल किया कि जब वर्ष 2002 की नीति पर सुप्रीम कोर्ट ने अंतिम निर्णय तक रोक लगा रखी है और जरनैल सिंह जैसे फैसलों में प्रमोशन में आरक्षण को लेकर स्पष्ट दिशानिर्देश मौजूद हैं, तो सरकार ने बिना तुलनात्मक अध्ययन के नई नीति कैसे बना दी?, सरकार की ओर से अधिवक्ता ने कोर्ट को बताया कि सालों से प्रमोशन लंबित होने के कारण सरकार में कार्यरत कर्मचारियों के कई वरिष्ठ पद रिक्त हैं, प्रमोशन ना हो पाने के कारण कर्मचारियों सहित सरकारी सिस्टम में भी अव्यवस्था की स्थिति है, जिसे देखते हुए यह प्रमोशन नीति लागू की गई है लेकिन कोर्ट ने इस बहाने को नहीं माना।

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सुप्रीम कोर्ट के 6 मापदंड जो नई नीति पर भारी पड़ सकते हैं

हाईकोर्ट ने इस बात पर विशेष जोर दिया कि सुप्रीम कोर्ट के जरनैल सिंह केस और एम नागराजन में जो 6 प्रमुख बिंदु तय किए गए थे, वे किसी भी प्रमोशन नीति की वैधता की कसौटी हैं। इन्हें सामान्य भाषा में ऐसे समझा जा सकता है:

  1. SC/ST वर्ग का प्रतिनिधित्व कम होना का ठोस डाटा होना चाहिए

  2. यह आंकड़े विभाग, पद, स्तर किस इकाई से लिए गए हैं यह भी स्पष्ट होना चाहिए

  3. सिर्फ जनसंख्या प्रतिशत को आधार बनाना प्रमोशन में आरक्षण के लिए गलत है।

  4. सरकार को यह समीक्षा करनी होगी कि अब भी प्रतिनिधित्व कम है या नहीं।

  5. यह नीति भविष्य के लिए लागू की जा रही है तो यह अवैध होगा।

  6. सिर्फ सैंपल डेटा के आधार पर फैसले नहीं लिए जा सकते हैं।

जब तक स्पष्ट जवाब नहीं, तब तक प्रमोशन नहीं

सरकार की ओर से महाधिवक्ता ने कहा कि 2025 की नीति सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के तहत तैयार की गई है, लेकिन जब कोर्ट ने पूछा कि क्या 2002 और 2025 की नीतियों के बीच कोई तुलनात्मक चार्ट बनाया गया है, तो सरकार ने जवाब देने के लिए समय मांगा। सरकार की ओर से महाधिवक्ता ने कोर्ट से निवेदन किया कि इस पर अभी कोई अंतरिम राहत न दी जाए। इस पर कोर्ट ने मौखिक रूप से निर्देश दिया कि जब तक यह स्पष्ट नहीं होता कि नई नीति सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के अनुरूप है, तब तक कोई प्रमोशन आदेश जारी न किया जाए। लिखित रोक नहीं दी गई, लेकिन कोर्ट ने सरकार से मौखिक भरोसे की अपेक्षा की।

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संवैधानिक टकराव का गंभीर मामला, अगली सुनवाई होगी निर्णायक

मध्यप्रदेश सरकार की नई प्रमोशन नीति न केवल संविधानिक सवालों के घेरे में है, बल्कि यह सीधे-सीधे सुप्रीम कोर्ट के आदेशों और हाईकोर्ट के पूर्व निर्णयों में भी घिरती नजर आ रही है। मंगलवार 15 जुलाई की सुनवाई में यह तय हो सकता है कि सरकार की नीति टिकेगी या उसे वापस लेना पड़ेगा।

पदोन्नति के बिना ही रिटायर हो गए कर्मचारी

प्रदेश में पदोन्नति में आरक्षण के विवाद के कारण एक लाख से ज्यादा कर्मचारी और अधिकारी बिना प्रमोशन के रिटायर हो चुके हैं। हालांकि सरकार ने उन्हें क्रमोन्नति और समयमान वेतनमान के जरिए प्रमोशन जैसा वेतन देना शुरू कर दिया है, लेकिन प्रमोशन नहीं मिलने के कारण उन्हें पुराने कार्यों को ही निभाना पड़ रहा है। कर्मचारियों और अधिकारियों की हताशा को देखते हुए सरकार ने कोर्ट में मामले की सुनवाई जारी रहने के बावजूद एक हल निकालने की कोशिश की है।

प्रमोशन का नया तरीका क्या है?

पदों का वर्गीकरण:

  • जो पद रिक्त होंगे, उन्हें SC-ST (16%-20%) और अनारक्षित श्रेणियों में बांटा जाएगा।
  • पहले SC-ST वर्ग को पद आवंटित किए जाएंगे, इसके बाद बाकी पदों के लिए अवसर दिए जाएंगे।

लिस्ट बनाने के दो तरीके:

1. क्लास-1 अधिकारी (जैसे DPT क्लर्क) के लिए लिस्ट मेरिट और सीनियरिटी दोनों के आधार पर तैयार होगी।
2. क्लास-2 और निम्न पदों के लिए लिस्ट सीनियरिटी के आधार पर बनाई जाएगी।

ACR की आवश्यकता होगी

कर्मचारियों के प्रमोशन के लिए उनकी गोपनीय रिपोर्ट (ACR) का उत्कृष्ट होना आवश्यक है।

  • पिछले 2 वर्षों में कम से कम एक रिपोर्ट 'आउटस्टैंडिंग' होनी चाहिए, या
    पिछले 7 वर्षों में कम से कम 4 रिपोर्ट 'A+' होनी चाहिए।
    यदि किसी कर्मचारी की गलती से ACR नहीं बनी है, तो उसका प्रमोशन संभव नहीं होगा।

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