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JABALPUR:मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने एक अहम आदेश में लोक निर्माण विभाग (PWD) के प्रभारी चीफ इंजीनियर एस.सी. वर्मा के जाति प्रमाणपत्र की जांच का रास्ता खोल दिया है। जस्टिस विवेक अग्रवाल और जस्टिस विवेक जैन की डबल बेंच ने यह आदेश जारी करते हुए साफ किया कि अब राज्य स्तरीय उच्च स्तरीय जाति जांच समिति इस मामले की समीक्षा करेगी। तीन माह के भीतर अपनी रिपोर्ट पेश करेगी। हालांकि यह जांच इस बात पर निर्भर करेगी की वर्मा के खिलाफ राष्ट्रीय आयोग में कोई मामला लंबित है या नहीं।
2016 के आदेश पर दायर हुई रिव्यू पिटीशन
इस मामले में याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया कि पीडब्ल्यूडी के वरिष्ठ अधिकारी एस.सी. वर्मा का जाति प्रमाणपत्र संदिग्ध है और इसकी जांच आवश्यक है। इस मामले में 2016 में एकल पीठ ने यह निर्देश दिया था कि जब तक मामला राष्ट्रीय आयोग के समक्ष लंबित है, तब तक उनके खिलाफ किसी तरह की कठोर कार्रवाई नहीं की जाए। इसी पुराने आदेश को आधार बनाकर वर्मा के खिलाफ कोई जांच आगे नहीं बढ़ पाई थी। इसी आदेश के खिलाफ अब रिव्यू पिटीशन दायर की गई थी।
राष्ट्रीय आयोग में नहीं है कोई मामला लंबित: याचिकाकर्ता
याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता प्रीतिंकर दिवाकर और अधिवक्ता अंशुल तिवारी ने दलील दी कि अब यह मामला राष्ट्रीय आयोग में लंबित नहीं है। इसलिए, 2016 में पारित आदेश स्वतः ही अप्रभावी हो जाता है और राज्य स्तरीय जाति जांच समिति को बिना किसी बाधा के प्रमाणपत्र की जांच करनी चाहिए। राज्य सरकार की ओर से शासकीय अधिवक्ता नितिन गुप्ता पेश हुए और अदालत को मामले की स्थिति से अवगत कराया।
राष्ट्रीय आयोग में नहीं है मामला लंबित
हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि यदि राष्ट्रीय आयोग के समक्ष कोई मामला लंबित नहीं है तो ‘नो कोर्सिव एक्शन’ यानी कठोर कार्रवाई न करने का आदेश स्वतः ही समाप्त माना जाएगा। अदालत ने राज्य स्तरीय जाति जांच समिति को निर्देश दिया कि शिकायत मिलने पर वह एस.सी. वर्मा के जाति प्रमाणपत्र की जांच कर तीन माह के भीतर रिपोर्ट प्रस्तुत करे। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि रिपोर्ट के आधार पर वर्मा की पदस्थापना की उपयुक्तता तय की जाएगी।
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जांच रिपोर्ट सामने आने के हाईकोर्ट पहुंचने का निर्देश
हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता को यह स्वतंत्रता दी कि यदि जांच समिति की रिपोर्ट वर्मा के जाति प्रमाणपत्र को विवादित ठहराती है, तो वह फिर से हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटा सकते हैं। इसके साथ ही, अदालत ने यह भी कहा कि मामले की लागत (cost) का निर्धारण भी इस जांच समिति की रिपोर्ट पर निर्भर करेगा। इस आदेश के साथ ही याचिका डिस्पोज कर दी गई है।
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कमेटी की जांच के बाद होगा सच्चाई का खुलासा
यह आदेश न केवल पीडब्ल्यूडी जैसे महत्वपूर्ण विभाग में उच्च पद पर बैठे एक अधिकारी की प्रामाणिकता पर सवाल खड़ा करता है, बल्कि MP के प्रशासनिक तंत्र पर भी गहरा असर डाल सकता है। यदि जांच में जाति प्रमाणपत्र असत्य पाया जाता है, तो यह विभागीय नियुक्तियों और पदोन्नतियों की पारदर्शिता पर भी गंभीर प्रश्न खड़े करेगा।