वन विभाग व जेल विभाग भर्ती विवाद में हाईकोर्ट करेगा मेरिट पर सुनवाई : सुप्रीम कोर्ट

मध्य प्रदेश में वन विभाग और सहायक जेल अधीक्षक भर्ती परीक्षा 2022-23 से जुड़े विवाद में सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट को याचिकाओं पर सुनवाई करने का आदेश दिया है। यह मामला उन अभ्यर्थियों से संबंधित है जिनके परिणाम को PEB ने बिना कारण रोका था।

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Neel Tiwari
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Photograph: (THESOOTR)

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मध्य प्रदेश में आयोजित वन विभाग और सहायक जेल अधीक्षक भर्ती परीक्षा 2022-23 से जुड़ा बड़ा विवाद अब सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया है। हाईकोर्ट में चीफ जस्टिस की बेंच ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश के हवाले से इस मामले की सुनवाई करने से इनकार कर दिया था।

अब सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में साफ कहा है कि याचिकाकर्ताओं के आवेदन करने पर हाईकोर्ट को इस मामले में याचिकाओं पर उनके गुण दोष के आधार पर सुनवाई करनी होगी और इस पर स्वतंत्र रूप से विचार करना होगा।

इस आदेश के बाद उन सैकड़ों अभ्यर्थियों को राहत की उम्मीद जगी है जिनका रिजल्ट withheld कर दिया गया था। अब सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर जबलपुर हाईकोर्ट वन विभाग भर्ती परीक्षा विवाद पर सुनवाई करेगा और मेरिट के आधार पर फैसला करेगा।

सहायक जेल अधीक्षक भर्ती से जुड़ा मामला 

पहले PEB के नाम से जाने वाले कर्मचारी चयन मंडल भोपाल (ESB) द्वारा वर्ष 2022-23 में आयोजित वन विभाग एवं सहायक जेल अधीक्षक भर्ती परीक्षा में बड़े पैमाने पर गड़बड़ियों के आरोप लगे है। 

मनमाने ढंग से रिजल्ट रोकने करने के आरोप 

इस मामले में पहले मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में दायर की गई याचिका में आरोप थे कि शासन ने 13% पदों को होल्ड श्रेणी में रखकर रिजल्ट रोका था, जबकि सैकड़ों अभ्यर्थियों को withheld सूची में डाल दिया गया। इनमें से अधिकांश अभ्यर्थी सामान्य और पिछड़ा वर्ग से थे।

याचिकाकर्ता अभ्यर्थियों का कहना है कि वे वास्तव में 87% पदों पर चयनित थे, लेकिन PEB ने मनमाने ढंग से उनके परिणाम को withheld कर दिया। इस मुद्दे पर अभ्यर्थियों ने आरपीएस लॉ एसोसिएट के माध्यम से जबलपुर हाईकोर्ट की डिविजन बेंच में याचिकाएं (WP/20051/2025 और WP/19946/2025) दाखिल कीं। इन याचिकाओं की ओर से सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में पैरवी सीनियर एडवोकेट रामेश्वर सिंह ठाकुर, एडवोकेट विनायक प्रसाद शाह ने की।

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हाईकोर्ट ने सुनवाई से किया था इंकार

हाईकोर्ट में प्रथम सुनवाई के दौरान महाधिवक्ता कार्यालय ने दलील दी कि याचिकाकर्ता 13% होल्ड पदों से जुड़े हैं और इस संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट द्वारा 21 मार्च 2025 को पारित एक ट्रांसफर केस के आदेश का हवाला दिया।

याचिकाकर्ताओं का कहना है कि महाधिवक्ता कार्यालय ने हाईकोर्ट को गुमराह किया, क्योंकि वे वास्तव में 87% पदों के विरुद्ध चयनित थे और केवल परीक्षा एजेंसी ने उनका रिजल्ट withheld किया था।महाधिवक्ता कार्यालय की इस दलील को स्वीकार करते हुए जस्टिस संजीव सचदेवा की डिविजन बेंच ने 20 जून 2025 को याचिकाओं पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया था।

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सुप्रीम कोर्ट में दी गई चुनौती

हाईकोर्ट के इस आदेश को याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट में SLP क्रमांक 27360/2025 के माध्यम से चुनौती दी। याचिकाकर्ताओं की ओर से सीनियर एडवोकेट रामेश्वर सिंह ठाकुर, एडवोकेट विनायक प्रसाद शाह ने पैरवी की।

SC ने दिया हाईकोर्ट में आवेदन करने का निर्देश

सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस मनोज मिश्रा और जस्टिस उज्ज्वल भुयान की बेंच ने मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि हाईकोर्ट ने जो कार्यवाही रोकी थी, वह सुप्रीम कोर्ट आदेश (21 मार्च 2025) के मद्देनजर की गई थी। लेकिन याचिकाकर्ताओं की दलील है कि उनका मामला उस ट्रांसफर केस से सीधे तौर पर संबंधित नहीं है। यदि यह सही है, तो अभ्यर्थी हाईकोर्ट के समक्ष आवेदन दाखिल करके यह स्पष्ट करें।

सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश में हस्तक्षेप करने से इनकार करते हुए याचिकाकर्ताओं को हाईकोर्ट में फिर से आवेदन दायर करने की स्वतंत्रता दी। साथ ही यह स्पष्ट किया कि सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर कोई विशेष राय नहीं दी है जिसके बाद अब याचिकाकर्ताओं के आवेदन पर हाईकोर्ट को यह तय करना होगा कि इस मामले की सुनवाई होगी या नहीं।

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हाईकोर्ट ही लेगा इस मामले में अंतिम फैसला

इस आदेश के बाद अब जबलपुर हाईकोर्ट सुनवाई में यह तय करना होगा कि withheld किए गए अभ्यर्थियों की याचिकाओं पर सुनवाई हो और उनकी मेरिट के आधार पर फैसला किया जाए।

अभ्यर्थियों को उम्मीद है कि हाईकोर्ट अब उनके मुद्दों पर गंभीरता से विचार करेगा और न्याय दिलाएगा। इस पूरी कार्यवाही का सार यह है कि सुप्रीम कोर्ट ने अभ्यर्थियों के लिए रास्ता खोल दिया है और अब फैसला हाईकोर्ट को करना है कि withheld अभ्यर्थियों के साथ न्याय हुआ या नहीं।

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