/sootr/media/media_files/2025/09/16/reservation-in-promotion-2025-09-16-16-31-34.jpg)
Photograph: (thesootr)
मप्र शासकीय कर्मचारी के पदोन्नति में आरक्षण को लेकर कोर्ट में दायर याचिका में यह आरोप लगाए गए हैं कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश का सरकार और अनारक्षित वर्ग दोहरा फायदा उठा रहे हैं। एक और तो यथा स्थिति के चलते अधिकारी और कर्मचारी पदों पर काबिज है तो वहीं दूसरी ओर नया नियम बनाकर यथा स्थिति की अवहेलना की गई है।
16 सितंबर को हुई सुनवाई में याचिकाकर्ताओं ने कोर्ट के सामने यह मुद्दा उठाया कि सरकार और अनारक्षित वर्ग के लोग सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की व्याख्या अपनी सुविधानुसार कर रहे हैं। उनका कहना था कि एक ओर सुप्रीम कोर्ट के यथास्थिति आदेश के कारण 2016 से पहले हुए प्रमोशन अब तक कायम हैं, वहीं दूसरी ओर सुप्रीम कोर्ट के यथा स्थिति वाले आदेश सहित सरकार के द्वारा लगाई गई याचिका के आधारों पर नया नियम बना दिया गया, जिसमें 2022 के नियमों जैसे विवादित प्रावधान शामिल हैं।
मध्य प्रदेश सरकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता सीएस वैधनाथन और महाधिवक्ता प्रशांत सिंह ने पक्ष रखते हुए कहा कि 2002 के नियमों को सुप्रीम कोर्ट ने कभी स्थगित नहीं किया था, बल्कि केवल पहले से हुए प्रमोशन पर यथास्थिति का आदेश दिया गया था। उन्होंने यह भी दलील दी कि नया नियम भविष्य से लागू होने वाला है, इसलिए इसका असर पहले किए गए प्रमोशनों पर नहीं पड़ेगा।
सरकार ने भरोसा दिलाया कि सभी प्रमोशन अंतिम आदेश के अधीन रहेंगे, लेकिन कोर्ट ने इस बयान को रिकॉर्ड करने से मना करते हुए कहा कि यदि नियमों में इसका उल्लेख नहीं है तो केवल मौखिक आश्वासन मान्य नहीं होगा। कोर्ट ने स्पष्ट निर्देश दिया कि इस स्थिति पर GAD विभाग को लिखित रूप से सफाई देनी होगी।
ये खबरें भी पढ़ें...
TET अनिवार्य: MP सरकार की चुप्पी, लेकिन UP सरकार का बड़ा कदम, टीईटी के खिलाफ जाएगी सुप्रीम कोर्ट
लैंड पुलिंग के खिलाफ किसान शक्ति का प्रदर्शन, उज्जैन की सड़कों पर ट्रैक्टर-ट्रॉली लेकर पहुंचे
अभी जारी रहेगी प्रमोशन पर रोक
सरकार ने कोर्ट से गुहार लगाई कि प्रमोशन पर लगी रोक हटाई जाए, लेकिन कोर्ट ने साफ कर दिया कि जब तक इस मामले में कोर्ट को पूरी स्पष्टता नहीं मिलती तब तक हाईकोर्ट कोई अलग आदेश नहीं दे सकता। सुनवाई के दौरान कोर्ट में आरबी राय और जरनैल सिंह केस का हवाला दिया गया, जिसके अनुसार सरकार को प्रमोशन में आरक्षण लागू करने से पहले यह साबित करना होगा कि संबंधित वर्गों का प्रतिनिधित्व पर्याप्त नहीं है।
सरकार ने तर्क दिया कि वर्तमान में करीब 59% प्रमोशन के पद खाली पड़े हैं, जिस पर कोर्ट ने कहा कि सामान्य वर्ग से सामान्य वर्ग और आरक्षित वर्ग से आरक्षित वर्ग की पदोन्नति तो की जा सकती है, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट से इस पर छूट प्राप्त है। कोर्ट ने इस मामले की आगे की सुनवाई के लिए सुनीता जौहरे केस का उल्लेख करते हुए कहा कि इस तरह के मामलों में डिविजनल बेंच ही अंतिम स्थिति तय करेगी।
ये खबरें भी पढ़ें...
अब 25 सितंबर को अगली सुनवाई
चीफ जस्टिस संजीव सचदेवा और जस्टिस विनय सराफ की डिविजनल बेंच ने बताया कि इस तरह की करीब 30 से 40 याचिकाएं लंबित हैं, जिन्हें एक साथ क्लब कर सुना जाएगा। साथ ही, कोर्ट ने सरकार को आदेश दिया कि प्रमोशन नियम 2025 में सुप्रीम कोर्ट और लंबित याचिकाओं के हवाले से जो प्रावधान जोड़े गए हैं, यदि वे खारिज होते हैं तो पहले से हुए प्रमोशन का क्या होगा, इस पर स्पष्टता पेश करें।
इस मामले में ओबीसी संगठनों ने भी हस्तक्षेप किया है और सरकार का समर्थन करते हुए नए नियमों को सही ठहराया है। हस्तक्षेपकर्ता के द्वारा इस याचिका पर भी आपत्ति उठाते हुए यह कहा गया कि याचिकाकर्ता इस नियम से सीधे प्रभावित नहीं है इसलिए यह याचिका सुनवाई योग्य ही नहीं है।
हालांकि, कोर्ट में बताया गया कि सभी याचिकाकर्ता शासकीय कर्मचारी हैं और इसके बाद कोर्ट ने आपत्ति को खारिज कर दिया।अब सबकी निगाहें 25 सितंबर को होने वाली सुनवाई पर टिकी हैं, जब सरकार को कोर्ट में अपना विस्तृत पक्ष रखना होगा।