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Photograph: (the sootr)
भोपाल. पॉश इलाका आमतौर पर उस जगह को कहा जाता है, जहां सुविधाएं, शांति और सामाजिक समझदारी का स्तर थोड़ा ऊपर होता है। यहां रहने वाले ज्यादातर लोग पढ़े-लिखे, जागरूक और कानून का पालन करने वाले होते हैं, लेकिन राजधानी भोपाल के बहुमंजिला तुलसी टॉवर मामले में हालात इससे कुछ अलग हैं।
दरअसल,इस टॉवर के ज्यादातर रहवासी टॉवर के 'ए'और'बी' ब्लॉक की छत पर हुए बेजा कब्जे से खासे परेशान हैं। इसे टॉवर में रहने वालों ने ही अंजाम दिया। इनमें एक वरिष्ठ सेवानिवृत आईपीएस, दूसरे एक निजी अस्पताल के संचालक तो तीसरे एक दैनिक अखबार के मालिक हैं। इनमें से किसी ने अपना शौक पूरा करने टॉवर की कॉमन छत पर स्विमिंग पूल तो किसी ने बालकनी और टेरेस गार्डन बना लिया।
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पेंट हाउस बिकने से बड़ी समस्या
पहले तुलसी टॉवर के बारे में जानते हैं । दरअसल,मप्र गृह निर्माण मंडल ने कुछ साल पहले भोपाल में तीन बड़े हाउसिंग प्रोजेक्ट्स लांच किए। इनमें एक तुलसी नगर क्षेत्र में बना बहुमंजिला तुलसी टॉवर है। यह टॉवर जहां खड़ा है, वहां कभी पंचायत एवं सामजिक न्याय विभाग का डायरेक्टेड हुआ करता था।
मंडल ने 12 माले के इस टॉवर में शुरुआती दौर में कुल 96 फ्लैट्स तैयार किए। शहर की प्राइम लोकेशन होने से फ्लैट भी हाथों हाथ और महंगे दाम पर बिक गए। खरीदने वालों का पजेशन भी मिल गया और मंडल ने लीज डीड भी। इसमें साफ लिखा गया है कि टॉवर की छत सभी रहवासियों के लिए कॉमन होगी।
समस्या तब शुरू हुई जब बोर्ड ने तेरहवें माले यानी छत पर बने तीन पेंट हाउस को भी बेच दिया। पहला पेंट हाउस एक अस्पताल संचालक, दूसरा सेवानिवृत आईपीएस महान भारत सागर व तीसरा एक दैनिक के प्रमुख आशुतोष गुप्ता को बेचा गया।
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छत पर बनाए स्वीमिंग पूल, टॉयलेट, बालकनी
सूत्रों के मुताबिक, पेंट हाउस मालिकों ने कोरोना काल का बेहतर उपयोग किया। जब सारे शहर में सन्नाटा पसरा हुआ था, तब इन्होंने टॉवर की छत को अपने कब्जे में लिया। इस पर अपने-अपने शौक व जरूरत के मुताबिक, स्वीमिंग पूल, टॉयलेट, टेरेस गार्डन, बालकनी व अन्य निर्माण कराए।
अन्य रहवासियों की पहुंच इन तक न हो इसके चलते लिफ्ट लॉबी एरिया पर दरवाजा लगाकर इस पर ताला जड़ दिया गया। इससे आपात स्थिति में उपयोग के लिए बना फायर डक्ट भी बंद हो गया। वहीं टॉवर लिफ्ट की पहुंच भी टॉवर के बाकी रहवासियों के लिए सिर्फ 12वें माले तक सीमित हो गई।
ताजी हवा में सांस लेना हुआ दूभर
यानी आप भले ही टॉवर में रह रहे हैं, लेकिन छत पर पहुंचकर ताजी हवा में सांस नहीं ले सकते। छत और सुकून छिना तो टॉवर में विरोध के सुर उभरे। पीड़ितों नें मंडल का दरवाजा खटखटाया। विरोध व शिकवे-शिकायत बढ़ी तो मंडल ने भी पेंट हाउस मालिकों को कई बार नोटिस थमाए।
इनमें शिकायतों का हवाला देकर उनसे अतिरिक्त निर्माण हटाने के लिए कहा गया। बोर्ड ने यह चेतावनी भी दी फायर डक्ट को खोला जाए। सीवर लाइन व जल प्रदाय वाली लाइन में कोई छेड़छाड़ या बदलाव न किया जाए लेकिन मंडल की चेतावनी का अतिरिक्त निर्माण करने वालों पर कोई असर नहीं हुआ।
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रेरा नियमों की भी अनदेखी
निजी ठेकेदारों की तरह फ्लैट बेचकर बेफिक्र हुए हाउसिंग बोर्ड के नोटिस महज औपचारिकता बनकर रह गए। दरअसल,बोर्ड सिर्फ नोटिस देने तक सीमित रहा। उसने यह तो माना कि अतिरिक्त निर्माण लीज शर्तों के खिलाफ हैं, लेकिन इसे हटाने के लिए उसने कोई कार्रवाई नहीं की। जबकि यह रेरा नियमों व इससे मिली अनुमति के भी खिलाफ है।
मंडल के इस रवैए से टॉवर के बाकी रहवासी अब खुद को ठगा सा महसूस कर रहे हैं। यहीं रहने वाले एक वरिष्ठ अधिकारी देवेंद्र वर्मा ने कहा- हमने भी महंगे दाम पर फ्लैट खरीदा। क्या मालूम था,खुले में सांस लेना हमारे लिए दूभर हो जाएगा। छत के रास्ते हमारे लिए बंद हैं और मंडल के अधिकारी चुप्पी साधे हुए हैं।
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'हमने तो सशर्त खरीदा था पेंट हाउस'
मंडल की ही तरह, टॉवर रहवासी संघ के पदाधिकारी भी अब इस अतिरिक्त निर्माण के साथ खड़े नजर आते हैं। बताया जाता है कि शुरुआत में संघ ने भी इसका विरोध किया। रहवासियों का संगठन बनाने को लेकर भी बात अदालतबाजी तक जा पहुंची, लेकिन समस्या नहीं सुलझी। टॉवर छत पर तीन लोगों के अतिरिक्त निर्माण को लेकर रहवासी संघ अध्यक्ष राजेंद्र आगल कहते हैं- मामले में दम नहीं है। इसे ठंडा ही रहने दें।
वहीं, पेंट हाउस नंबर दो के मालिक महान भारत सागर का कहना है कि हमने तो पेंट हाउस इसी शर्त पर खरीदा था कि सामने छत के ओपन स्पेस का उपयोग भी वह अपने मुताबिक करेंगे। सागर, हाउसिंग बोर्ड भोपाल संभाग 6 के तत्कालीन कार्यपालन यंत्री पवन दामाड़े के उस पत्र का भी हवाला देते हैं,जो उन्होंने मंडल के उपायुक्त को साल 2020 में लिखा था। इसमें पेंट हाउस मालिकों के लिए छत के ओपन स्पेस उपयोग की बात कही गई। पेंट हाउस 3 के मालिक आशुतोष गुप्ता ने भी कुछ इसी तरह की बात कही।
मुंह जुबानी वादा,लिखित कुछ नहीं
इधर,मंडल सूत्रों का दावा है कि छत निजी उपयोग की बात सिर्फ मुंह जुबानी रही। न तो इसे मंडल के बोर्ड से मंजूरी मिली न प्रशासनिक स्तर पर कोई आदेश जारी हुआ।
यही वजह है कि मंडल समय-समय पर नोटिस देकर कानूनी औपचारिकता की पूर्ति कर रहा है, ताकि वक्त जरूरत काम आए। वहीं कार्रवाई न कर वह मुंह जुबानी किया गया वादा भी निभा रहा है।
मंडल के नए आयुक्त डॉ. राहुल हरिदास फाटिंग प्रकरण से अंजान हैं। उन्होंने कहा कि वह इस बारे में जानकारी जुटाएंगे।