एमपी में आउटसोर्सिंग भर्तियों को लेकर बवाल, हाईकोर्ट में दायर हुई जनहित याचिका

याचिका में यह भी कहा गया है कि जो हजारों कर्मचारी आउटसोर्सिंग के माध्यम से विभिन्न सरकारी विभागों में काम कर रहे हैं। उन्हें किसी भी प्रकार की नौकरी की सुरक्षा प्राप्त नहीं है।

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Neel Tiwari
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MP PIL filed High Court
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MP NEWS: मध्य प्रदेश में सरकारी विभागों में बड़े पैमाने पर चल रही आउटसोर्सिंग भर्तियों को लेकर अब कानूनी लड़ाई शुरू हो चुकी है। अजाक्स संघ ने इस भर्ती प्रक्रिया को असंवैधानिक और मानव गरिमा के विरुद्ध बताते हुए  मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की है। संघ का कहना है कि सरकार ने ऐसी व्यवस्था लागू कर दी है, जिसमें इंसानों को वस्तु की तरह खरीदा और बेचा जा रहा है, और इसे ही 'आउटसोर्सिंग' का नाम दे दिया गया है। याचिका में इस पूरी व्यवस्था को 'मानव तस्करी' जैसा अमानवीय कृत्य करार देते हुए तत्काल रोक लगाने की मांग की गई है।

वस्तुओं की तरह खरीदे जा रहे हैं श्रमिक

दरअसल, वर्ष 2015 में बनाए गए 'मध्य प्रदेश भंडारण क्रय एवं सेवा उपार्जन नियम' मूलतः वस्तुओं की खरीदी से जुड़े थे। 31 मार्च 2022 को राज्य के वित्त विभाग ने इन नियमों में संशोधन कर एक नया अध्याय जोड़ा, जिसके तहत अब 'सेवा' यानी मानव श्रमिकों की खरीद को भी इन नियमों में शामिल कर दिया गया। इस बदलाव के बाद सरकार ने सभी विभागों को आदेश दिए कि चतुर्थ श्रेणी जैसे पदों की पूर्ति अब एजेंसियों के जरिए आउटसोर्सिंग से की जाए। अजाक्स संघ का कहना है कि यह प्रावधान संविधान सहित सेवा नियमों, श्रम कानूनों और आरक्षण व्यवस्था के भी खिलाफ है।

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ना नौकरी की सुरक्षा, ना वेतन की गारंटी

याचिका में यह भी कहा गया है कि जो हजारों कर्मचारी आउटसोर्सिंग के माध्यम से विभिन्न सरकारी विभागों में काम कर रहे हैं। उन्हें किसी भी प्रकार की नौकरी की सुरक्षा प्राप्त नहीं है। उन्हें न तो स्थायी कर्मचारी माना जाता है, न ही श्रमिकों जैसे अधिकार दिए जाते हैं। एजेंसियों की मर्जी पर उनका वेतन घटाया-बढ़ाया जाता है और जब चाहे उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया जाता है। अचरज की बात यह है कि कर्मचारी ऐसे मामलों में ना तो लेबर कोर्ट सहित सेवा न्यायाधिकरण में जा सकते हैं, ना ही किसी अदालत में न्याय मांग सकते हैं, जिससे वे पूरी तरह शोषण के शिकार बनते हुए नजर आ रहे हैं।

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मुख्यमंत्री को भी सौंपा ज्ञापन

अजाक्स संघ ने इस मुद्दे पर मुख्यमंत्री को भी ज्ञापन सौंपा है, संघ ने कहा है कि सरकार के प्रत्येक विभाग में स्वीकृत पद, वेतनमान और आरक्षण की व्यवस्था पहले से मौजूद है, फिर भी प्राइवेट एजेंसियों से कर्मचारियों की “खरीदी” कर उन्हें सरकार में काम पर लगाया जा रहा है। यह सिर्फ बेरोजगारी बढ़ाने वाला फैसला नहीं, बल्कि लोकतांत्रिक और संवैधानिक मूल्यों का भी उल्लंघन है। संघ ने चेताया है कि अगर समय रहते इस अमानवीय व्यवस्था को रोका नहीं गया, तो यह पूरे समाज में असंतोष, शोषण और संवैधानिक संकट पैदा कर देगी।

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सबकी निगाहें अदालत के फैसले पर टिकी

यह जनहित याचिका WP/15917/2025 के रूप में ठाकुर लॉ एसोसिएट्स के जरिए दाखिल की गई है, जिसकी सुनवाई 5 मई 2025 को जबलपुर हाईकोर्ट में होगी। चूंकि यह मामला पूरे प्रदेश में लागू हो चुकी भर्ती नीति से जुड़ा है, इसलिए इससे न केवल हजारों अस्थायी कर्मचारियों का भविष्य तय होगा, बल्कि यह भी साफ होगा कि क्या किसी लोकतांत्रिक राज्य में इंसानों को ठेका बनाकर काम पर लगाना संवैधानिक रूप से जायज है या नहीं। इस मामले की सुनवाई 5 में 2025 को तय की गई है जिसके बाद मध्य प्रदेश में आउटसोर्स कर्मचारी के भविष्य का फैसला होने सहित कोर्ट से एक बड़ा आदेश जारी होने की उम्मीद है।

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