संघ के पूर्व पदाधिकारियों का 1.50 करोड़ विवाद में FIR, जेल और बेल, आखिर धाराएं हटी कैसे

हाईकोर्ट मध्य प्रदेश में पुलिस ने 29 फरवरी 2024 को जानकारी पेश की। इसमें बताया गया कि मेरू इन्फ्रा प्रोजेक्ट के सुनय जैन द्वारा मिली शिकायत पर जांच के बाद 420 व 406 धारा घटित होना पाया गया...

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Sandeep Kumar
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संजय गुप्ता @ INDORE. इंदौर में दो साल पुराने 1.50 करोड़ की धोखाधड़ी में संघ के दो पूर्व पदाधिकारियों ( राकेश दुबे और महावीर जैन ) के 1.50 करोड़ की धोखाधड़ी विवाद में FIR हुई, चार साल बाद जेल हुई और दो दिन में बेल यानि जमानत। लेकिन इस बीच में सबसे बड़ा सवाल उठा कि आखिर धाराएं हटी क्यों औऱ् कैसे? पूरे मामले में पुलिस की भूमिका ही सबसे ज्यादा संदिग्ध है।

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क्यों उठ रहे पुलिस की भूमिका पर सवाल 

1. पलासिया पुलिस ने राकेश दुबे के खिलाफ मिली सुनय जैन की शिकायत पर प्ररांभिक जांच के बाद 31 अगस्त 2021 को 420 व 406 की धारा में केस दर्ज किया। 

2. इसके बाद से ही इंदौर विभाग के पूर्व संपर्क प्रमुख राकेश दुबे और संघ से जुड़े रहे महावीर जैन के बीच विवाद काफी बढ़ गया।

3 इस केस में जब लंबे समय तक गिरफ्तारी व अन्य प्रक्रिया आगे नहीं बढ़ी तो महावीर जैन ने हाईकोर्ट इंदौर में याचिका दार की और सीएम हेल्पलाइन में शिकायत दर्ज की।

4.सीएम हेल्पलाइन में पुलिस ने यह कहकर शिकायत दर्ज की कि- आवेदक की शिकायत की जांच थाना पलासिया पुलिस उपायुक्त जोन 3 से कराई गई। इसमें डीपीओ (जिला अभियोजक अधिकारी) से राय लेकर 467, 468, 471 की धाराएं बढ़ाई गई है। आरोपी दुबे की तलाश की गई, लेकिन नहीं मिलने से फरारी पंचनामा बनाया गया। आरोपी गिरफ्तारी से बचने के लिए जगह बदलता रहता है। गिरफ्तारी के लिए ईनाम की घोषणा की गई है।

5. वहीं हाईकोर्ट मध्य प्रदेश में पुलिस ने 29 फरवरी 2024 को जानकारी पेश की। इसमें बताया गया कि- मेरू इन्फ्रा प्रोजेक्ट के सुनय जैन द्वारा मिली शिकायत पर जांच के बाद 420 व 406 धारा घटित होना पाया गया। जांच के बाद राकेश दुबे पर 467, 468 व 471 की धारा भी बढ़ाई गई। आरोपी लगातार फरार है और गिरफ्तारी शेष है।

6. हाईकोर्ट के केस और आचार संहिता में वारंट होने के चलते दबाव में पुलिस को 10 अप्रैल को दुबे को गिरफ्तार करना पड़ा। भले ही पुलिस फरार बताती रही, लेकिन वह इंदौर में सार्वजनिक तौर पर मौजूद थे। 

7.दस अप्रैल को जिला कोर्ट में जब दुबे को पेश किया गया तब पुलिस ने किसी तरह के अनुबंध को मिलने और धाराएं हटने की बात नहीं कही।

8. उधर कोर्ट से भले ही दुबे को जेल भेजने के आदेश हुए लेकिन मेडिकल कारण से वह एमवा में एडमिट हुए।

9. इसी दौरान 12 अप्रैल को फिर जमानत याचिका लगी। इसमें पुलिस ने अचानक एक रिपोर्ट पेश करते हुए दुबे और कंपनी के बीच एक अनुबंध होने की बात कही, जिसमें कहा गया कि इस अनुबंध के तहत दुबे को खाता संचालित करते रहने की पात्रता थी। इसलिए केस में से 467, 468, 471 की धारा हटा दी गई। इसके आधार पर दुबे की जमानत हो गई। इन्हीं धाराओं के कारण गिरफ्तारी हुई थी और यही जमानत में बाधा थी। 

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अनुबंध की जानकारी देते हुए पुलिस ने यह बताया

इस मामले में पुलिस ने प्रारंभिक जांच के बाद इसमें शिकायत सही पाते हुए दुबे के खिलाफ 467, 468, 471 की धारा और बढ़ा दी। लेकिन बाद में और जांच की तो पाया कि कंपनी के अनुबंध में ही लिखा है कि जब तक कंपनी का नया खाता नहीं खुलता है, पुराना खाता चलता रहेगा और दुबे इसे संचालित करते रहेंगे, प्रथम पक्ष द्वारा इसमें कोई आपत्ति नहीं ली जाएगी। इसलिए केस में कूटरचा कर बैंक से चेक के जरिए 1.50 करोड़ रुपए अवैध रूप से निकालकर आर्थिक लाभ प्राप्त करना व कूटरचित दस्तावेजों का उपयोटग करना विवेचना में नहीं पाया गया। इसलिए केस से 467. 468. 471 धारा हटा दी गई। 

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यह अनुबंध अचानक कैसे आया?

दरअसल सबसे बडा सवाल यह है कि जब पुलिस ने दिसंबर 2020 में केस लिया, और जांच करने के बाद धाराएं बढ़ाई तो क्या उन्हें उस समय यह अनुबंध नहीं मिला, जिसमें दुबे को खाते चलाते रहने के अधिकार मिले हुए थे? फिर पुलिस ने जांच क्या की थी और फिर अनुबंध था तो फिर केस ही क्यों बना? शिकायत ही फिर गलत थी। 

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इसमें लग रहे इस तरह के आरोप?

इसी के चलते पुलिस की कार्यशैली पर आरोप लग रहे हैं।

यह अनुबंध सादे कागज पर है, रजिस्टर्ड नहीं है।

इसमें कंपनी के सभी डायरेक्टर के हस्ताक्षर नहीं है

किसी भी कंपनी में यह प्रावधान नहीं होता है कि डायरेक्टर पद से हटने के बाद भी खाता संचालित करता रहे

वहीं हाईकोर्ट में, सीएम हेल्पलाइन में या पहले जमानत आवेदन के समय यह अनुबंध सामने क्यों नहीं आया? जबकि पुलिस तो 420 की एफआईआर सीधे दर्ज करती ही नहीं, पहले प्रारंभिक इस तरह पर जांच होती है और इसके बाद मामला एसपी स्तर पर जाता है और फिर मंजूरी के बाद केस होता है? फिर अनुबंध था तो केस क्यों हुआ और केस हुआ तो फिर धाराएं कैसे बढ़ी और घटी

दुबे के विरोधी पक्ष का आरोप

सबसे बड़ा आरोप दुबे के विरोधी पक्ष का यह है कि- दुबे को जमानत दिलाने के लिए, और क्योंकि अन्य डायरेक्टर सुनय जैन, नवीन जैन का दुबे के साथ समझौता हो गया, यह अनुबंध 12 अप्रैल के एक दिन पहले ही बैक़डेट में तैयार कराया गया। इसी के चलते दोनों ने कोर्ट में जमानत पर आपत्ति भी नहीं ली और फिर उसी दौरान एक महावीर जैन के खिलाफ लंबी-चौड़ी जाहिर सूचना जारी कर दी।  

दुबे ने कहा अनुबंध हुआ था, मुझे तो सात करोड़ भी नहीं दिए गए

इस मामले में राकेश दुबे ने द सूत्र से बात करते हुए अपनी बात रखी। उन्होंने साफ कहा कि- अनुबंध हुआ था, हमने अनुबंधी और सभी बातें पुलिस को जानकारी दी, जिसे सामने वालों ने छिपाया था। जो कहा जा रहा है कि मुझे कंपनी छोड़ने के बदले में खाते में 7.12 करोड़ रुपए मिले, वह सही नहीं है, मेरे साथ धोखाधड़ी की गई। रही बात डायरेक्टर पद से हटने के बाद भी खाता संचालित करने की, तो वह इसलिए अनुबंध हुआ था क्योंकि प्रॉपर्टी में कई जगह मेरा बड़ा हिस्सा लगा था, वह प्रॉपर्टी पर कुछ भी होता तो मुझे मेरा हिस्सा आता, इसलिए तय हुआ था कि मेरा खाता संचालित होता रहेगा, ताकि इस राशि की हिस्सेदारी सही तरीके से हो। 

क्या है पूरा 1.50 करोड़ रुपए का विवाद

मेरू इन्फ्रा कंपनी में सुनय जैन, नवीन जैन, राकेश दुबे व अन्य पार्टनर थे। सितंबर 2020 में दुबे पार्टनरशिप से अपना हिस्सा सात करोड़ रुपए लेकर अलग हो गए। लेकिन उन पर सुनय जैन ने पलासिया थाने में दिसंबर 2020 में शिकायत दर्ज कराई कि कंपनी से अलग होने के बाद भी दुबे ने 50-50 लाख रुपए के तीन चेक से कंपनी के आईसीआईसीआई बैंक खाते से राशि निकाली और अपने निजी खाते में शिफ्ट कर डेढ़ करोड़ रुपए की धोखाधड़ी की। बाद में दुबे ने महावीर जैन को सड़क पर रोककर जान से मारने की धमकी दी गई। इस मामले में दुबे पर 420 व 406 धारा में केस दर्ज हुआ। इस मामले में बीजेपी के पिछड़ा वर्ग प्रकोष्ठ के प्रदेश उपाध्यक्ष नानुराम कुमावत का भी नाम आया, लेकिन उनका समझौता हो गया।

FIR राकेश दुबे महावीर जैन