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सालों बाद सरदार सरोवर प्रोजेक्ट एक बार फिर चर्चा में आ गया है। समाजसेवी मेधा पाटकर सहित चार पीड़ितों की हाईकोर्ट इंदौर में दायर याचिका में चौंकाने वाली बात सामने आई। इस पर हाईकोर्ट डबल बैंच को कहना पड़ा कि चार जिले खरगोन, बड़वानी, अलीराजपुर, धार के कलेक्टर को बुलाने की बजाय बेहतर है कि हम सीधे अतिरिक्त मुख्य सचिव (एसीएस) डॉ. राजेश राजौरा को ही बुलाते हैं।
हाईकोर्ट ने 14 अक्टूबर को राजौरा को बुलाया
हाईकोर्ट ने अतिरिक्त मुख्य सचिव राजेश राजौरा को 14 अक्टूबर को बेंच के सामने पेश होने के आदेश दिए हैं। साथ ही राजौरा को निर्देश दिया गया कि वह संपूर्ण रिट याचिका का अध्ययन करें, विशेष रूप से तथाकथित स्वामित्व दस्तावेज, अर्थात् प्रोजेक्ट में पीड़ितों को मिले प्लॉट आवंटन पत्र के पंजीकरण से संबंधित मुद्दों का अध्ययन करें। साथ ही एक प्रस्ताव लेकर आएं कि पिछले 20-21 वर्षों से जारी किए गए इन प्रमाणपत्रों को कैसे पंजीकृत किया जा सकता है।
हाईकोर्ट ने आगे कहा कि बी. आर. वासुदेवन, निदेशक (सिविल) ई.एण्ड आर. विंग, नर्मदा नियंत्रण प्राधिकरण, जो न्यायालय में उपस्थित हैं, को निर्देश दिया जाता है कि वह एसीएस डॉ. राजेश राजौरा को अग्रिम रूप से अवगत कराएं ताकि वह चारों जिलों के कलेक्टर से परामर्श कर प्रभावी उत्तर के साथ न्यायालय में उपस्थित हो सकें। इस मामले को प्राथमिकता के आधार पर लिया जाना आवश्यक है।
क्या है मुद्दा
मेधा पाटकर और पीड़ितों ने इंदौर हाईकोर्ट में यह पक्ष रखा कि इस प्रोजेक्ट के तहत जो प्लॉट आवंटन पीड़ितों को होने थे, उसमें भारी गड़बड़ियां की गई हैं। यह बातें झा कमीशन में भी आ चुकी हैं। लेकिन अभी समस्या यह है कि जो प्लॉट दिए गए हैं, उनमें केवल भूखंड नंबर लिखा है। इसमें जमीन के सर्वे नंबर, सीमांकन, चतुर सीमा से लेकर अन्य मूलभूत जानकारियां ही नहीं हैं।
इसके चलते पीड़ितों को अभी तक इन प्लॉट का स्वामित्व ही विधिक रूप से नहीं मिला है। ना ही इनका विधिवत पंजीकरण हुआ है। प्लॉट के मालिकान पर मालिक का नाम ही नहीं चढ़ा है। इसके चलते ना बैंक लोन की पात्रता है, ना ही भवन अनुज्ञा जैसी मंजूरियां विधिवत मिल रही हैं। पीड़ितों ने कहा कि सीमांकन, नामांतरण जैसी मूल बातें ही राजस्व रिकॉर्ड में नहीं हुई हैं, जबकि 22 साल बीत चुके हैं। पीड़ितों को स्वामित्व टाइटल वाले दस्तावेज ही नहीं मिले हैं।
पाटकर और पीड़ितों ने यह भी कोर्ट को बताया
पीड़ितों और मेधा पाटकर ने कोर्ट को बताया कि प्लॉट आवंटन के नियमों के परे जाकर यह सारा काम हुआ है। नियम था कि खेती की जमीन के पांच किमी के दायरे में भूखंड दिए जाएंगे, लेकिन बड़वानी जिले के पिछोड़ी गांव में तो 20-25 किमी दूर जाकर दिए गए। साल 2001 में ली गई 62 एकड़ जमीन अभी भी खाली पड़ी है। इस प्रोजेक्ट में 192 गांव के 32 हजार लोग प्रभावित हुए थे।
इसमें था कि ग्रामीण क्षेत्र में 60 बाय 90 यानी 5400 वर्गफीट का और शहरी सीमा में 60 बाय 40 यानी 2400 वर्गफीट का प्लॉट दिया जाएगा। लेकिन कुछ जगहों पर तो एक ही प्लॉट नंबर दो लोगों को दे दिया गया, रजिस्ट्री नहीं की गई और अभी भी प्लॉट में एनवीडीए का नाम डाला हुआ है, जो प्लॉट आवंटित के नाम पर होना था। सीमांकन तक नहीं किया गया, कोई मैपिंग नहीं की गई, ना ही बंटाकन है, ना सर्वे नंबर है, ना ही भूखंड की कोई बाउंड्री तय की गई। दलालों ने मिलकर जमकर भ्रष्टाचार किया।
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