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JABALPUR. सटोरिये सतीश सनपाल का न जाने क्या दबाव है कि जबलपुर पुलिस और अभियोजन उसे बैकडोर से मदद कर रहे हैं। विवेचना की कमजोरी से बरी हुए आरोपियों के खिलाफ अपील नहीं की जा रही है। जबलपुर प्रशासन इस मामले में डरा हुआ नजर आ रहा है। यह घटनाक्रम देखकर ऐसा लगता है कि पुलिस सटोरिये से कह रही है, हम ही दर्द देंगे, हम ही दवा देंगे।
महादेव सट्टा और फरार सटोरिये सतीश सनपाल से जुड़ा जबलपुर का बड़ा गिरोह पुलिस ने उजागर किया था। इसके बाद पुलिस को खूब वाहवाही मिली। लेकिन 10 अरब का संदिग्ध लेन-देन, 2 करोड़ की जब्ती और फर्जी सेल कंपनियों के सामने आने के बावजूद, विवेचना में सटोरियों की गैंग को सहायता दी गई। इस कारण एक-एक कर सभी आरोपी बरी होते जा रहे हैं।
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अरबों का लेनदेन सामने
जबलपुर में फर्जी सेल कंपनियों और सट्टा नेटवर्क से जुड़े मामले सामने आए हैं। इन मामलों ने पुलिस और अभियोजन की विवेचना क्षमता पर सवाल उठाए हैं। दुबई में बैठे सटोरिये सतीश सनपाल ने जबलपुर में अरबों रुपए का अवैध सट्टा व्यापार किया। 12 फर्जी सेल कंपनियों के जरिए 10 अरब रुपए का लेन-देन हुआ। 2 करोड़ रुपए से ज्यादा की जब्ती हुई।
महीनों की विवेचना के बावजूद सतीश सनपाल के कई आरोपी बरी हो रहे हैं। सवाल यह नहीं कि सबूत नहीं थे, बल्कि यह है कि पुलिस और अभियोजन ने किस तरह मदद की। विवेचना को कैसे कमजोर किया गया, इसकी पूरी जानकारी खबर में मिलेगी। सबसे पहले, यह मामला क्या था, जानते हैं।
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2 करोड़ की जब्ती और 10 अरब का ट्रांजैक्शन
जबलपुर में 2022 और 2023 में फर्जी सेल कंपनियों और सट्टा नेटवर्क का एक बड़ा मामला सामने आया। फरार आरोपी सतीश सनपाल ने अपने गुर्गों के साथ मिलकर सट्टा और जुए से अर्जित काले धन को वैध बनाने के लिए 12 फर्जी कंपनियां बनाई थीं।
इनमें प्रमुख कंपनियां थीं: Vishwasaniya Technology Pvt. Ltd., Nutritite Traders Pvt. Ltd., Lunchoonette Café OPC Pvt. Ltd., Washette Services OPC Pvt. Ltd., Mutation Solution OPC Pvt. Ltd., और Admonitor Consultancy Services OPC Pvt. Ltd. ये सभी कागजों पर मौजूद थीं। इन फर्जी कंपनियों के बैंक खातों के जरिये ₹10,03,03,53,054 (दस अरब तीन करोड़ तीन लाख तिरेपन हजार चौवन रुपए) जमा किए गए और 10,01,78,44,219 रुपए (दस अरब एक करोड़ अठहत्तर लाख चवालीस हजार दो सौ उन्नीस रुपए) निकाले गए।
खातों में 2,12,81,584 रुपए (दो करोड़ बारह लाख इक्यासी हजार पांच सौ चौरासी रुपए) शेष थे। Nutritite Traders Pvt. Ltd. से जुड़े एचडीएफसी और आईसीआईसीआई बैंक खातों में 47 करोड़ 01 लाख 26 हजार 155.70 रुपए जमा हुए। 46 करोड़ 89 लाख 89 हजार 555.60 रुपए निकाले गए। जांच के दौरान 2 करोड़ से अधिक की रकम जब्त की गई थी।
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कमजोर पुलिस पड़ताल से मिला आरोपियों को लूपहोल
सनपाल से जुड़े एक मामले की सुनवाई के दौरान विवेचना अधिकारी दिनेश गौतम ने स्वीकार किया कि आरोपियों के बैंक खातों की ठोस जांच नहीं की गई। कॉल डिटेल रिकॉर्ड (CDR) तक प्राप्त नहीं किए गए। पूरी कार्यवाही केवल व्हाट्सएप चैट के स्क्रीनशॉट पर आधारित रही। पंचनामा के अनुसार, 18 दिसंबर 2022 को मात्र 37 मिनट में लिए गए 47 स्क्रीनशॉट न तो अदालत में प्रदर्शित किए गए और न ही उनके मूल स्रोत को प्रमाणित किया गया। अदालत ने कहा कि इन स्क्रीनशॉट्स के आधार पर अपराध को साबित नहीं किया जा सकता।
बैंक रिकॉर्ड थे, लेकिन अदालत तक नहीं पहुंचे
इस पूरे मामले में एक्सिस बैंक, यस बैंक, एचडीएफसी बैंक और बैंक ऑफ इंडिया से संबंधित कई पत्राचार सामने आए। लेकिन एक जैसी कमी हर जगह दिखी। स्टेटमेंट, केवाईसी और लेन-देन का मूल रिकॉर्ड कोर्ट में प्रदर्शित ही नहीं किया गया। सभी दस्तावेज फोटोकॉपी के रूप में थे, जिन्हें न तो प्राथमिक साक्ष्य माना गया और न ही द्वितीयक साक्ष्य। अदालत ने स्पष्ट कहा कि ऐसे दस्तावेज अभियोजन को कोई लाभ नहीं दिला सकते।
हार्डडिस्क, पेनड्राइव और फोरेंसिक रिपोर्ट
विवेचना के दौरान एक हार्डडिस्क और पेनड्राइव भी जब्त की गई, जिनमें आरोपियों के मोबाइल डेटा की कॉपी थी। लेकिन न विवेचना अधिकारी यह बता सके कि इनमें ऐसा कौन-सा तथ्य है जो अपराध सिद्ध करता हो। न ही अदालत के अवलोकन में कोई आपराधिक सामग्री सामने का सके। डिजिटल फोरेंसिक रिपोर्ट और धारा 65-B के प्रमाण पत्र बहुत देरी से कोर्ट के सामने लाए गए। लेकिन उन्हें प्रदर्शित कराने का प्रयास भी अदालत ने खारिज कर दिया। नतीजा यह हुआ कि डिजिटल सबूत भी बेअसर साबित हुए।
12 फर्जी कंपनियां, लेकिन किसने खोली?
सट्टा और जुए के काले धन को सफेद करने के लिए 12 फर्जी सेल कंपनियां खोली गईं थीं। लेकिन इन कंपनियों के डायरेक्टर कौन थे। किसके दस्तावेजों से रजिस्ट्रेशन हुआ और पैसे किसने जमा और निकाले। इन बुनियादी सवालों के जवाब विवेचना में दर्ज ही नहीं किए गए। कोर्ट ने कहा कि जिन लोगों के नाम से कंपनियां खोली गईं, उनसे न तो पूछताछ हुई और न ही उन्हें आरोपी या साक्षी बनाया गया।
पूरे सिस्टम पर खड़ा हुआ सवाल
इस पूरे मामले ने जबलपुर पुलिस और अभियोजन की कार्यप्रणाली पर बड़ा प्रश्नचिह्न लगा दिया है। एक तरफ अरबों रुपए के संदिग्ध लेन-देन का दावा। दूसरी तरफ अधूरी विवेचना, अप्रमाणित दस्तावेज और तकनीकी लापरवाही।
नतीजा यह हुआ कि जिन पर सट्टे के काले धन को सफेद करने का आरोप था, वे कानूनी खामियों के सहारे एक-एक कर बाहर निक रहे हैं। सरकार की ओर से अभियोजन पक्ष ने अब तक इस मामले में अपील भी करना मुनासिब नहीं समझा। जबकि ऐसे मामलों में प्रशासन को जल्द से जल्द आदेश के खिलाफ अपील करनी चाहिए।
यह मामला यह भी दिखाता है कि कमजोर विवेचना और नियमों का पालन न होने से बड़े अपराध अदालत में ढहा दिए जाते हैं। आज सवाल केवल सटोरियों का नहीं, बल्कि सिस्टम का है। क्या अगली बार दर्द देने के साथ दवा भी सही तरीके से दी जाएगी, या विवेचना की खामियों का फायदा अपराधियों को मिलता रहेगा?
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