संजय शर्मा, BHOPAL. हायर एजुकेशन और यूनिवर्सिटी में चल रही इस घपलेबाजी के खिलाफ छात्रों ने फिर आंदोलन की राह पकड़ ली है। RGPV (राजीव गांधी प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय) में 100 करोड़ से ज्यादा के घोटाले की परतें अब भी खुलना बाकी हैं। छात्रों के आंदोलन के बाद टेक्निकल एजुकेशन मिनिस्टर के आदेश पर तत्कालीन कुलपति और घोटाले के साथियों पर केस भी दर्ज हो चुका है, लेकिन टेक्निकल यूनिवर्सिटी में जमे घपलेबाजों को बचाने की कोशिश अब भी जारी है। यूनिवर्सिटी के करोड़ों रुपए निजी खाते में डिपॉजिट कराने, करोड़ों के मनमाने निर्माण, नियुक्ति-प्रतिनियुक्ति में नियमों की अनदेखी, फर्नीचर-लैपटॉप खरीद में गड़बड़ी में नाम आने के बाद भी पूर्व प्रभारी कुलसचिव को बचाया जा रहा है। इसे यूनिवर्सिटी और टेक्निकल एजुकेशन डिपार्टमेंट के सिस्टम की कारगुजारी नहीं तो और क्या कहा जाए।
एक दर्जन शिकायतों में तत्कालीन प्रभारी कुल सचिव जिम्मेदार
छात्र संगठन 2021 में टेक्निकल एजुकेशन डिपार्टमेंट के आदेश पर हुई जांच रिपोर्ट को उजागर कर रहे हैं। इसमें एक दर्जन शिकायतों में तत्कालीन प्रभारी कुल सचिव वित्तीय गड़बड़ी के लिए जिम्मेदार ठहराए गए, लेकिन फिर इस जांच रिपोर्ट को दबा दिया गया। यूनिवर्सिटी कैंपस में प्रदर्शन कर रहे छात्रों ने इस जांच रिपोर्ट को दबाने के लिए कुशवाह के संरक्षक की भूमिका निभाने वाले तत्कालीन कुलपति और FD घोटाले में आरोपी बने सुनील कुमार की मनमानी समिति पर सवाल उठाए हैं। छात्रों ने कुलपति रूपम गुप्ता को जांच प्रतिवेदन में दोषी पाए गए पूर्व प्रभारी कुलसचिव की भूमिका की सूक्ष्म जांच और कार्रवाई कराने मांगपत्र सौंपा हैं। साथ ही छात्रों ने भ्रष्टाचार में लिप्त अधिकारी को बचाने की कोशिश होने पर बड़े आंदोलन की चेतावनी भी दी है।
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लूट की परतों को यहां का सिस्टम दबाने में लगा है
RGPV के छात्र यूनिवर्सिटी के फंड की लूट के खिलाफ पिछले कुछ माह से आंदोलन चला रहे हैं। विद्यार्थी परिषद के शामिल होने और छात्र आंदोलन के उग्र होने पर 100 करोड़ के FD के फर्जीवाड़े की परतें खुलनी शुरू हुई थीं। मामला उछलने पर टेक्निकल एजुकेशन और यूनिवर्सिटी की साख बचाने मंत्री इंदर सिंह परमार को आना पड़ा था। तब पुलिस ने कुलपति सुनील कुमार और इस घपले में शामिल अन्य लोगों पर केस दर्ज किया था। लेकिन FIR के बाद यूनिवर्सिटी में मची लूट की परतों को यहां का सिस्टम दबाने में लग गया है। छात्रों में इसको लेकर रोष बना हुआ था और वे पूरी कार्रवाई की मांग पर अड़े हुए थे। गुरुवार को छात्र यूनिवर्सिटी कैंपस पहुंचे और प्रदर्शन शुरू कर दिया। छात्र 2021 में टेक्निकल एजुकेशन विभाग के एडिशनल डायरेक्टर राकेश खरे और उज्जैन गवर्नमेंट इंजीनियरिंग कॉलेज के प्रोफेसर डॉ. एसके जैन की जांच रिपोर्ट को लहरा रहे थे। इस जांच रिपोर्ट में दोनों अधिकारियों ने शिकायत के 12 बिंदुओं पर तत्कालीन प्रभारी कुल सचिव और करोड़ों के घोटाले में शामिल रहे डॉ. एसएस कुशवाह को दोषी बताया गया था।
फर्नीचर, लैपटॉप खरीदी में सामने आई थी गड़बड़ी
जांच के दौरान साल 2015 में खरीदे गए 32 लाख रुपए के फर्नीचर का गड़बड़झाला भी उजागर हुआ था। इतनी भारी संख्या में यूनिवर्सिटी में आए फर्नीचर का दस्तावेजों में भी उल्लेख नहीं मिला और हास्यास्पद तो यह था की किसी को इसकी खबर भी नहीं लगी और कुलपति ने तीन साल बाद 2018 में क्लियरेन्स का आदेश जारी कर दिया। उपकुलसचिव ने जब शंका होने पर अपराध दर्ज कराने का उल्लेख किया लेकिन इसे टाल दिया गया। यूनिवर्सिटी के लिए लैपटॉप खरीदी की प्रक्रिया में भी गड़बड़ी की गई। जिस कॉन्फिग्रेशन को अप्रूव किया गया था उससे हटकर लाखों रुपए की खरीदी की गई।
एग्जीक्यूटिव कौंसिल और फाइनेंस कमेटी को भी रखा अंधेरे में
टेक्निकल एजुकेशन कमिश्नर के आदेश पर हुई जांच के दौरान यह भी पाया गया की प्रभारी कुलसचिव रहते हुए एसएस कुशवाह द्वारा संविदा शिक्षकों को वेतनमान देने में भी वित्तीय अनियमितता की है। इसकी जानकारी को यूनिवर्सिटी की फाइनेंस और एग्जीक्यूटिव कौंसिल से भी छिपाया गया। दोनों की मीटिंग एक ही दिन एक घंटे के अंतराल से रखी गईं एग्जीक्यूटिव कौंसिल में सवा साल पहले पारित प्रस्ताव को मीटिंग में न रखकर सदस्यों को गुमराह किया गया। मामला कोर्ट में होने के बाद भी प्रभारी कुलसचिव ने बिना गाइडलाइन बनाए संविदा शिक्षकों का वेतन बढ़ाकर 40 हजार रुपए कर दिया। एक चिन्हित कॉलेज से चार प्रोफेसरों की नियम विरुद्ध प्रतिनियुक्ति की गई और उन्हें वेतन भी बढ़ाकर दिया गया। MBA प्रोग्राम न होने के बाद भी यूनिवर्सिटी में इसके लिए प्रतिनियुक्ति की गई।
टेस्टिंग कंसल्टेंसी के नाम पर जमकर की लूट
जांच रिपोर्ट में यह भी सामने आया था की प्रभारी कुल सचिव कुशवाह ने साल 2009 से ही लगातार टेस्टिंग कंसल्टेंसी के नाम पर यूनिवर्सिटी में जमकर लूट मचाई थी। साल 2016 में उन्होंने साढ़े सात लाख रुपया भी लिया था। जबकि नियम में इतनी अधिक राशि इस मद में नहीं ली जा सकती, जांच अधिकारियों ने इस राशि की वसूली करने का अभी समर्थन किया था। कुशवाह के प्रभाव में आने के बाद यूनिवर्सिटी कैंपस में निर्माण कार्यों में भी जमकर धांधली हुई है। अपने कार्यकाल में उनके द्वारा 170 करोड़ के वर्क आर्डर जारी किए गए हैं। लेकिन इन कामों में डिजाइन-ड्राइंग का ध्यान रखा गया न तकनीकि परिक्षण की जरूरत महसूस की गई। इस अवधि में सबसे ज्यादा रुपया पुराने निर्माण के मेंटेनेंस के नाम पर उड़ाया गया और लेखा-जोखा भी नहीं रखा गया।
कैंटीन के ठेके में भी धांधली से नहीं चूके
अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के महानगर मंत्री प्रभाकर मिश्र के अनुसार दो अधिकारियों की जांच रिपोर्ट में यूनिवर्सिटी कैंपस में कैंटीन के ठेके में भी गड़बड़ी सामने आई है। कुशवाह ने दिखावे के लिए टेंडर प्रक्रिया शुरू की और रेट बुलाए। 2019 में टेंडर फॉर्म जारी किए, अगले ही दिन इसे जमा करने की तारीख रखी गई और एक दिन बाद इसे खोलना निर्धारित किया गया। लेकिन दस्तावेजों में निविदा 25 दिन पहले यानी 16 अक्टूबर खोली जा चुकी थी। यही नहीं दस्तावेजों में ठेका जनवरी 2020 में दिया गया, जबकि mp tendere procurement system govt पर यह तीन महीने बाद यानी 3 मार्च को देना दर्शाया गया है।