स्कूलों में 70 हजार पद खाली, मंत्री मानने को तैयार नहीं... इधर, बयान को लेकर सियासत चरम पर

मध्यप्रदेश में एक तरफ स्कूलों में शिक्षक नहीं हैं। चयनित अभ्यर्थियों को जॉइनिंग नहीं दी जा रही है। दूसरी ओर अतिथि भी परेशान हैं। कुल मिलाकर स्थिति दो फाड़ वाली हो गई है। अतिथि मंत्री के बयान का विरोध कर रहे हैं और चयनित अभ्यर्थी समर्थन कर रहे हैं...

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Jitendra Shrivastava
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रामकृष्ण गौतम, BHOPAL. हंगामा है क्यों बरपा... एक बयान ही तो आया है। जी हां, सही पढ़ा आपने। मध्यप्रदेश में इन दिनों शिक्षा मंत्री उदय प्रताप सिंह के अतिथि शिक्षकों को लेकर दिए गए बयान पर हंगामा बरपा है। इसके दोनों पहलू हैं। एक हिसाब से मंत्री सही कह रहे हैं, क्यों​कि अति​थि शिक्षकों को जब जॉइन कराया गया था, तब उन्हें सेवा शर्तें बताई गई थीं। इस लिहाज से उनका बयान ठीक कहा जा सकता है, पर इसका दूसरा पक्ष यह है कि अतिथि शिक्षकों के साथ वादाखिलाफी की गई है। वादाखिलाफी ऐसी है पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने चुनाव से पहले अपनी सभाओं में बार-बार इस बात पर जोर दिया था कि अतिथि शिक्षकों को नियमित किया जाएगा, लेकिन ऐसा नहीं किया गया है। 
अब एक तरफ स्कूलों में शिक्षक नहीं हैं। चयनित अभ्यर्थियों को जॉइनिंग नहीं दी जा रही है। दूसरी ओर अतिथि भी परेशान हैं। कुल मिलाकर स्थिति दो फाड़ वाली हो गई है। अतिथि मंत्री के बयान का विरोध कर रहे हैं और चयनित अभ्यर्थी समर्थन कर रहे हैं। 
देखिए हर पहलू को उजागर करती 'द सूत्र' की यह पड़ताल भरी खबर। 

आंकड़े... जो बताते हैं हकीकत 

मध्यप्रदेश के सरकारी स्कूलों में शिक्षकों के करीब 70 हजार पद खाली हैं। स्थिति ऐसी है कि 1 हजार 275 स्कूलों में एक भी शिक्षक नहीं हैं। 6 हजार 858 स्कूल एक शिक्षक के भरोसे चल रहे हैं। बड़े शहरों के स्कूल भी राम भरोसे हैं, इनमें भोपाल के 7, ग्वालियर के 18, इंदौर के 16 और जबलपुर के 15 स्कूल शामिल हैं। भोपाल के 43 स्कूलों में मात्र एक ही शिक्षक पहली से 5वीं तक की कक्षाओं में पढ़ा रहे हैं। वहीं, पूरे प्रदेश की बात करें तो कुल 1 लाख 22 हजार सरकारी स्कूल हैं, जहां 1 करोड़ 10 लाख से ज्यादा छात्र पढ़ रहे हैं। 

असर : नीति के हिसाब से पढ़ाई नहीं 

अब आप कल्पना कीजिए कि जब स्कूलों में शिक्षकों की ये स्थिति है तो पढ़ाई-लिखाई की क्या हालत होगी? शिक्षकों की कमी के चलते प्रदेश में राष्ट्रीय शिक्षा नीति के मुताबिक काम ही नहीं हो पा रहे हैं। विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार भी इस पर सवाल खड़े करते हैं। इधर, मंत्री ये मानने को तैयार ही नहीं हैं कि शिक्षा विभाग में अतिथियों के 70 हजार पद खाली हैं। 

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अतिथि शिक्षकों की नाराजगी

इधर, शिक्षा मंत्री उदय प्रताप सिंह के अतिथि शिक्षकों को लेकर दिए गए बयान के बाद प्रदेश में अतिथि शिक्षक नाराज हो गए हैं। उनका कहना है कि वे 16 साल से स्कूलों में पढ़ा रहे हैं। इतने वर्षों में उन्हें उनका हक नहीं देंगे तो वो कब्जा भले न करें, लेकिन अपना अधिकार तो मांगेंगे। अतिथि शिक्षक मुफ्त में रोटियां नहीं तोड़ रहे हैं और न ही मंत्रीजी के घर पर रुके हैं। 

च​यनित अभ्यर्थी बोले- हम क्या गधे चराएंगे?

विपक्ष के नेता भी शिक्षा मंत्री और सरकार को कोस रहे हैं। कांग्रेस का कहना है कि जब चुनाव में वोट बटोरने थे तो तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और बीजेपी इन्हीं अतिथि शिक्षकों की वंदना कर रही थी। अब शिक्षा मंत्री इन्हीं का अपमान कर रहे हैं। दूसरी तरफ दो-दो परीक्षाएं पास करने वाले शिक्षक भर्ती के उम्मीदवार अतिथि शिक्षकों पर मंत्री के बयान का समर्थन कर रहे हैं। उनका कहना है कि मंत्री ने सही कहा है। अगर अतिथि शिक्षक नियमित हो जाएंगे तो कड़ी मेहनत करके दो-दो परीक्षाएं पास करने वाले क्या गधे चराएंगे? अतिथियों को पहले से ही भर्ती में 25% आरक्षण मिल रहा है। ऐसे में उन उम्मीदवारों का क्या होगा, जो मेरिट में आने के बावजूद अनरिजर्व हैं? यानी जिन्हें कोई कोटा नहीं मिला। कुल मिलाकर मध्यप्रदेश में अब शिक्षकों का मामला सियासी रूप ले चुका है। कांग्रेस लगातार रोजगार की दिशा में सरकार की नीतियों को लेकर तीखे सवाल उठा रही है।

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