BHOPAL. शिक्षा का अधिकार के तहत बच्चों को पढ़ाने वाले निजी स्कूल अब डीपीआई से लेकर मंत्रालय तक चक्कर काट रहे हैं। मध्यप्रदेश के 30 हजार से ज्यादा स्कूल संचालकों को सरकार ने दो साल से बच्चों को पढ़ाने की एवज में भुगतान नहीं किया है। सरकार पर इन दो सालों में करीब 800 करोड़ रुपए का कर्ज चढ़ गया है। राशि नहीं मिलने से छोटे निजी स्कूलों का प्रबंधन गड़बड़ा गया है, लेकिन अब भी सरकार से भुगतान को लेकर स्थिति स्पष्ट नहीं हुई है।
दो साल से प्रतिपूर्ति का इंतजार
प्रदेश सरकार शिक्षा का अधिकार अधिनियम के तहत निजी स्कूलों में प्रवेश लेने वाले बच्चों की पढ़ाई का खर्च उठाती है। इसके लिए प्रति छात्र 5200 रुपए फीस सालाना जमा करनी होती है। प्रदेश में हर साल निजी स्कूल 60 हजार से 90 हजार बच्चों को आरटीई के तहत पढ़ाते हैं। दो साल पहले तक इन बच्चों की पढ़ाई पर होने वाले खर्च का भुगतान सरकार की ओर से किया जा चुका है। यह राशि भी स्कूल संचालकों को कई चक्कर काटने के बाद मिली थी। अब दो साल से फिर इन स्कूलों को आरटीई के तहत दिए गए प्रवेश का भुगतान नहीं किया गया है। यह राशि करीब 800 करोड़ रुपए हो गई है।
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आश्वासन के बाद भी नहीं भुगतान
करोड़ों रुपए के भुगतान के लिए निजी स्कूलों के संचालक सैकड़ों चक्कर डीपीआई, राज्य शिक्षा केंद्र और मंत्रालय में लगा चुके हैं। दो साल से प्रतिपूर्ति राशि का भुगतान नहीं होने और अधिकारियों की टालमटोल के बाद बीते दिनों एक प्रतिनिधिमंडल स्कूल शिक्षा मंत्री राव उदयप्रताप सिंह से भी मुलाकात कर चुका है। मंत्री की ओर से भुगतान का आश्वासन दिए जाने के बावजूद अब तक स्कूलों को यह राशि नहीं मिली है। स्कूलों को सरकार से शैक्षणिक सत्र 2023-24 और 2024-25 में दिए गए प्रवेश की राशि चाहिए हैं। स्कूल शिक्षा विभाग द्वारा निजी स्कूलों में आरटीई के तहत पढ़ने वाले बच्चों का सत्यापन भी करा चुका है लेकिन राशि के भुगतान में टालमटोल जारी है।
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अंचल के स्कूलों में पढ़ाई पर असर
बीते दो साल से सरकार की ओर से आरटीई की प्रतिपूर्ति राशि नहीं दी गई और अब नया शैक्षणिक सत्र शुरू हो गया है। इसमें भी सूचना का अधिकार के माध्यम से निजी स्कूलों में बच्चों के प्रवेश दिलाए गए हैं। इस सत्र में ऐसे बच्चों की संख्या एक लाख से ऊपर पहुंचने का अनुमान है। कस्बाई और ग्रामीण क्षेत्रों में संचालित निजी स्कूलों की स्थिति सरकार से राशि न मिलने से चरमरा गई है। छोटे स्कूल तो शिक्षकों को वेतन देने की स्थिति में भी नहीं हैं और कई शिक्षकों ने स्कूलों में पढ़ाना छोड़ दिया है। इसका सीधा असर यहां प्रवेश लेने वाले छात्रों की पढ़ाई पर हो रहा है। प्राइवेट स्कूल एसोसिएशन के प्रांत अध्यक्ष अजीत सिंह का कहना है कि अंचल के छोटे_छोटे स्कूलों की स्थिति पर सरकार को ध्यान देना चाहिए। अधिकारियों से लेकर मंत्री स्तर तक बात हो चुकी है लेकिन अब भी कहीं से भुगतान को लेकर पुख्ता आश्वासन नहीं मिला है।
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