वल्लभ भवन की सुरक्षा में झोल! तीन दिन तक रिटायर्ड SI के भरोसे रहा मंत्रालय

मध्य प्रदेश राज्य मंत्रालय सुरक्षा के लिहाज से काफी संवेदनशील स्थान है। जहां सुरक्षा के नाम पर बड़ा अमला तैनात है। बावजूद इसके यहां सुरक्षा से समझौते की बात सामने आई है।

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Ravi Awasthi
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BHOPAL. राज्य मंत्रालय में भारी-भरकम सुरक्षा अमले की तैनाती के बावजूद ,क्या यहां की सुरक्षा का जिम्मा सिर्फ मौखिक व अस्थाई तौर पर तीन दिन के लिए किसी रिटायर्ड पुलिस कर्मी को सौंपी जा सकती है? वह भी तब ,जब इस अवधि में राज्य के मुखिया यानी मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की मौजूदगी मंत्रालय में पूरे समय रही हो।

सेवानिवृत एसआई ने संभाली सुरक्षा की कमान

शायद आप भी हैरत में होंगे कि यह कैसे हो सकता है,लेकिन वल्लभ भवन की सुरक्षा से यह खिलवाड़ यहां की सुरक्षा का जिम्मा संभाल रहे जिम्मेदार अधिकारी ही कर रहे हैं। पुलिस मुख्यालय को मिली एक शिकायत के मुताबिक,गत मार्च में 22 से 24 तारीख तक यहां की सुरक्षा का दायित्व  एक सेवानिवृत उप निरीक्षक इंदर सिंह चौहान ने निभाया।

इस दौरान वह मंत्रालय की सुरक्षा में तैनात सौ से अधिक पुलिस कर्मियों को  ना सिर्फ कमांड करते रहे,बल्कि मुख्यमंत्री मोहन यादव के मंत्रालय आने-जाने की सूचना व सुरक्षा से जुड़े अन्य मामलों के दिशा-निर्देश भी वॉकी-टॉकी पर देते रहे। उनके इन दिशा-निर्देशों को एक आडियो क्लिप भी सामने आई। हालांकि, यह विभागीय जांच का विषय है और द सूत्र इसकी पुष्टि भी नहीं करता।

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सीएसओ की सिंगापुर यात्रा ने बिगाड़ा माजरा

दरअसल,मंत्रालय के मौजूदा मुख्य सुरक्षा अधिकारी अविनाश शर्मा इस अवधि में सिंगापुर की अपनी पांच दिवसीय निजी यात्रा पर थे। उनकी गैर मौजूदगी में मंत्रालय की सुरक्षा का प्रभार उनके नजदीक बताए जाने वाले प्रधान आरक्षक विनय यादव के पास रहा। विनय मूलत: लालघाटी भोपाल के रहवासी हैं। बताया जाता है कि इसी दौरान सुरक्षा प्रभारी के घर गमी हो गई। इसके चलते उन्हें 13 दिन के अ​लिखित अवकाश पर रहना पड़ा।   

इधर,मंत्रालय सुरक्षा में तैनात किसी तीसरे अधिकारी को यह दायित्व न मिल जाए,इसके चलते रिटायर्ड  एसआई इंदर सिंह चौहान का तीन दिन के लिए मंत्रालय में सुरक्षा का दायित्व संभालने के लिए राजी किया गया। उन्होंने अपनी सेवाएं भी दीं।

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चाइना ऐप से मंत्रालय की सुरक्षा

सुरक्षा को लेकर की गई उक्त फौरी वैकल्पिक व्यवस्था से समझा जा सकता है कि मंत्रालय में मुख्य सुरक्षा अधिकारी या इसके प्रभार का दायित्व संबंधित के लिए कितना अहम है। हैरत की बात यह कि मंत्रालय जैसे संवेदनशील स्थल की सुरक्षा को लेकर मौजूदा बल एक चाइनीज जीपीएस ऐप का उपयोग कर रहा है।

गूगल मैप की मदद से तैयार इस एप को सुरक्षा के लिहाज से भरोसेमंद नहीं कहा जा सकता।  बताया जाता है कि सीएसओ की विदेश यात्रा के दौरान भी इसका उपयोग जरूरी दिशा-निर्देशों के लिए किया जाता रहा। रात में सुरक्षा बल की तैनाती के दौरान मंत्रालय इमारत के पोर्च को रोशन रखा जाना व चेक पोस्ट केबिन के दरवाजों को कुंडी विहीन किए जाने से, यहां तैनात अमला स्वयं को काफी असहज महसूस कर रहा है। 

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प्रवेश पास बनाने में बड़ा खेल

इधर, मंत्रालय सूत्रों का दावा है कि वल्लभ भवन की सुरक्षा के नाम पर बड़ा झोल यहां बनने वाले आंगुतकों के प्रवेश पास को लेकर भी है। मंत्रालय में कार्यालयीन दिनों में दो से तीन हजार बाहरी अधिकारी व गैर सरकारी लोग अपने कामकाज के सिलसिले में पहुंचते हैं।

इनके वाहनों के एक दिन से लेकर छह माह तक के अस्थाई पास बनाने का जिम्मा मुख्य सुरक्षा अधिकारी एवं मंत्रालय स्टॉफ के पास है। इनके अलावा एक बड़ी संख्या उन ठेकेदारों,इनके वाहन व मजदूरों की है जो मंत्रालय ही नहीं सतपुड़ा व विंध्याचल भवन में आए दिन होने वाले निर्माण,रिनोवेशन व सफाई आदि काम करते हैं।

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फर्जी पासधारक पकड़ा पर कार्रवाई नहीं

सूत्रों के मुताबिक,बीते माह ही स्वयं को डिप्टी कलेक्टर बताने वाले संकेत राजेंद्र कुलकर्णी नामक एक व्यक्ति के वाहन को मंत्रालय सुरक्षा कर्मियों  ने धरदबोचा। इसके वाहन क्रमांक एमपी 09 टीबी 6105 व इसके चालक को हिरासत में लेकर एमपी नगर पुलिस को सौंपा गया,लेकिन ना तो फर्जी अधिकारी पकड़ाया,ना ही उसके वाहन व चालक को लेकर ही कोई कार्रवाई हुई।

मंत्रालय परिसर में ऐसे कई वाहन धड़ल्ले से प्रवेश पा रहे हैं जिनके अस्थायी पास की मियाद काफी पहले खत्म हो चुकी है। दरअसल,यहां आंगुतकों के वाहन पास ही इस अंदाज में बनाए जाते हैं कि ना तो इनमें तारीख स्पष्ट तौर पर दिखती है न जारीकर्ता के हस्ताक्षर। दस्तखत भी स्कैच पेन की जगह पेंसिल से किए जाते हैं ताकि जरूरत पड़ने पर इसे मिटाया जा सके। प्रवेश पत्र कार्यालय में सीसीटीवी भी ऐसी जगह लगाए गए जो इन्हें लगाए जाने की मंशा को पूरा नहीं करते।

मंत्रालय कर्मी पर भी संगत का असर

कहते हैं,संगत का असर तो होता ही है। मंत्रालय की सुरक्षा शाखा में सामान्य प्रशासन विभाग ( जीएडी )की ओर से भी एक कर्मचारी की पदस्थापना का प्रावधान है। इसी प्रक्रिया के तहत जीएडी के एक कर्मचारी पुष्पेंद्र कटियार(चित्र में सीएसओ शर्मा के साथ कटियार) बीते करीब 15 सालों से सुरक्षा कार्यालय में अपनी सेवाएं दे रहे हैं। सुरक्षा के जिम्मेदारों से कटियार की ऐसी पटरी बैठी कि सुरक्षा कार्यालय में ​पुलिस और गैर पुलिस कर्मी में भेद करना मुश्किल होता है।

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पीएचक्यू का आदेश मंत्रालय सुरक्षा में लागू नहीं

पुलिस मुख्यालय अपने मैदानी अमले की पदस्थापना को लेकर काफी संवेदनशील है। वह समय-समय पर इस तरह के आदेश भी जारी करते रहा कि किसी भी मैदानी कर्मचारी को  एक ही ​स्थान पर पांच साल से अधिक पदस्थ न रखा जाए,लेकिन मंत्रालय सुरक्षा बल में तैनात जिला पुलिस कर्मचारियों के मामले में इस आदेश पर अमल नहीं हो रहा है।

यहां कई पुलिस कर्मी लंबे समय से पदस्थ रहकर व्यवस्था में अपनी स्थायी पहचान बना चुके हैं। कुछ तो ऐसे हैं जो निजी वाहन पर भी पुलिस की लाल-नीली बत्ती का इस्तेमाल कर रहे हैं।

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