शाहबानो केस पर बनी हक मूवी पर सुनवाई पूरी, HC में फिल्म डायलॉग से दोनों पक्षों ने दी दलील

इंदौर का चर्चित शाहबानो केस फिर सुर्खियों में है। शाहबानो केस पर आधारित फिल्म "हक" 7 नवंबर को रिलीज हो रही है। फिल्म में इमरान हाशमी और यामी गौतम मुख्य कलाकार हैं। शाहबानो की बेटी सिद्दीका बेगम ने फिल्म पर रोक के लिए केस दायर किया है।

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Sanjay Gupta
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Indore. देश को हिला देने वाला इंदौर का सबसे चर्चित शाहबानो केस एक बार फिर सुर्खियों में हैं। फिल्म एक्टर इमरान हाशमी और यामी गौतम धर अभिनीत फिल्म हक सात नवंबर को रिलीज हो रही है। यह फिल्म इसी केस पर आधारित बताई गई है। अब इस फिल्म की रिलीज पर रोक के लिए शाहबानो की बेटी सिद्दीका बेगम ने केस दायर किया है। इस मामले में सोमवार के बाद मंगलवार को करीब 50 मिनट तक लंबी बहस चली। इसमें सुनवाई के बाद ऑर्डर रिजर्व रख लिया गया है। सुनवाई के दौरान दोनों ही पक्षों ने फिल्म के ट्रेलर में दिखाए गए डायलॉग के आधार पर अहम दलीलें रखी।

इन सभी को बनाया गया है पक्षकार

इसमें शाहबानो की बेटी सिद्दीका बेगम की तरफ से अधिवक्ता तौसीफ वारसी ने याचिका लगाई है। याचिका में फिल्म रिलीज पर रोक की मांग की गई है। केस में केंद्र सरकार, सेंट्रल बोर्ड ऑफ फिल्म सर्टिफिकेशन यानी सेंसर बोर्ड, इंसोमेनिया मीडिया एंड कंटेट सर्विसेस लिमिटेड प्रोड्यूसर ऑफ फिल्म हक, बावेजा स्टूडियोज प्रालि, जंगलीस पिक्चर्स और डायरेक्टर सुपर्ण वर्मा को पक्षकार बनाया गया है। 

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सुनवाई के दौरान इन्होंने रखे तर्क

केस में केंद्र की ओर से रोमेश दवे ने पक्ष रखा। वहीं जंगलीज प्रोड्यूसर की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अजय बागड़िया ने और इंसोमेनिया की ओर से अधिवक्ता एचवाय मेहता व अधिवक्ता चिन्मय मेहता ने पक्ष रखे। इसमें फिल्मों के डायलॉग व सेंसर बोर्ड के नियमों व अन्य कोर्ट केस फैसले के आधार पर याचिका को खारिज करने की मांग की गई। 

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अधिवक्ताओं ने इन केस के आधार पर दी दलील

वरिष्ठ अधिवक्ता बागडिया ने कहा कि यह काल्पनिक चित्रण है, यह बायोपिक नहीं है। इसमें महिला के संघर्ष को दिखाया गया है, इसमें दो अहम डायलॉग है जो टीचर व ट्रेलर में हैं। एक बानो तो बहाना है, हम पर हमला तो पुराना है। कौम के साथ गद्दारी की है। यह बताता है कि किस तरह महिलाओं के लिए हालात थे और कैसे लड़ाई की गई। यह व्यक्तिगत मामला नहीं है। इसी तरह अधिवक्ता एचवाय मेहता द्वारा भी सेंसर बोर्ड के नियमों के तहत बताया गया कि फिल्म को सर्टिफिकेट मिल गया है। क्या कोई ऐसा नियम है जो सर्टिफिकेट को रोकता है। ऐसा कोई नियम नहीं है। इसमें किसी तरह की प्राइवेसी में दखल नहीं दिया गया है। 

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याचिकाकर्ता के अधिवक्ता ने यह कहा

वहीं याचिकाकर्ता के अधिवक्ता ने कहा कि टीजर आते ही 25 सितंबर को हमने लीगल नोटिस दिया और ट्रेलर आते ही याचिका दायर की है। यह याचिका पब्लिसिटी स्टंट नहीं है, इसके जरिए शाहबानो की प्रतिष्ठा को चोट पहुंचाई जा रही है। एक परिवार की प्राइवेसी में दखल दी जा रही है। फिल्म में इस तरह के डायलॉग हैं कि- कौम के साथ गद्दारी की है, तुम यदि एक सही मुसलमान होती, तुम एक नेक और वफादार बीवी होती। इससे साफ है कि शाहबानो पर फिल्म है। इस पर रोक लगाई जाए। परिवार से इसमें किसी तरह की मंजूरी नहीं ली गई है। 

क्या है देश को हिलाने वाला शाहबानो केस?

शाहबानो इंदौर की रहने वाली एक मुस्लिम महिला थी। साल 1975 में शाहबानो के पति मोहम्मद अहमद खान ने उसे तलाक दे दिया। शाहबानो और उसके 5 बच्चों को उनके हाल पर छोड़ दिया गया। उस समय शाहबानो की उम्र 59 साल की थी। शाहबानो ने बच्चों के लिए हर महीने गुजारा भत्ता देने की मांग की। लेकिन उसके पति ने मोहम्मद अहमद खान ने शाह बानो को तीन तलाक (तलाक-ए-बिद्दत) दे दिया। इसके बाद उसने किसी भी तरह की मदद करने से इनकार कर दिया। 

निचली कोर्ट, हाईकोर्ट से होते हुए मामला सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ तक पहुंचा। शाहबानो ने कहा कि तीन तलाक के बाद इद्दत की मुद्दत तक ही तलाकशुदा महिला की देखरेख की जिम्मेदारी उसके पति की होती है। तलाक के बाद गुजारा भत्ता देने का कोई प्रावधान नहीं है। मामला मुस्लिम पर्सनल लॉ से जुड़ा था। लड़ाई सुप्रीम कोर्ट तक पहुंची। पांच जजो की संविधान पीठ ने 23 अप्रैल 1985 को मुस्लिम पर्सनल लॉ बॉर्ड के आदेश के खिलाफ जाते हुए शाहबानो के पति को आदेश दिया कि वो गुजारा भत्ता दें। 

सुप्रीम कोर्ट के आदेश के तहत हर महीने मोहम्मद अहमद खान को 179.20 रुपए देने थे। इस आदेश में संविधान पीठ ने सरकार से 'समान नागरिक संहिता' की दिशा में आगे बढ़ने की अपील की थी। लेकिन 'समान नागरिक संहिता' वाले टिप्पणी और इस फैसले को लेकर मुस्लिम पर्सनल लॉ बॉर्ड ने जमकर नाराजगी जताई और विरोध से झुकते हुए राजीव गांधी सरकार ने मुस्लिम महिला (तलाक में संरक्षण का अधिकार) कानून 1986 सदन में पेश किया। एक तरह से उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलट दिया। 

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फैसले से यह हुआ असर, बीजेपी उभरी

साल 1984 के लोकसभा चुनाव में महज 2 सीटों पर चुनाव जीतने वाली बीजेपी ने इसे मुद्दा बनाया। बीजेपी ने सरकार पर तुष्टीकरण का आरोप लगाया दबाव बढ़ता देखकर राजीव गांधी की सरकार ने एक के बाद एक फैसले लिए। अयोध्या में राम मंदिर का ताला खुलवाया गया। हालांकि सरकार के इस फैसले ने नए राजनीतिक मुद्दों को जन्म दिया। आखिर में इसकी समाप्ति अयोध्या मंदिर बनकर हुई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस मुद्दे को कई बार उठा चुके हैं कि उन्हें (कांग्रेस) को संविधान से कोई मतलब नहीं। अपने वोट बैंक के लिए सुप्रीम कोर्ट के शाहबानो फैसले को ही उन्होंने पलट दिया।

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