सीएम मोहन यादव ने SC और HC जस्टिस की उपस्थिति में उठाया इंदौर का शाहबानो केस, अयोध्या फैसले का भी जिक्र

इंदौर में आयोजित एक अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी में सीएम ने शाहबानो केस और अयोध्या फैसले का जिक्र किया। इसके साथ ही, उन्होंने न्याय की परंपराओं और उनके प्रभाव पर भी चर्चा की।

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Sanjay Gupta
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INDORE. शनिवार को इंदौर में सुप्रीम कोर्ट, हाईकोर्ट जज, वकील और अन्य प्रमुख लोगों की मौजूदगी में इंटरनेशनल कॉन्फ्रेंस का उद्घाटन हुआ। इस सत्र में मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव भी शामिल हुए। यहां उन्होंने अपने चार मिनट के छोटे से भाषण में कई ऐतिहासिक घटनाओं का जिक्र किया। इसमें एक मामला शाहबानो केस का था। इसने देश की राजनीति को हिला दिया और बीजेपी की नींव रखी। वहीं, दूसरा मामला भावनात्मक अयोध्या केस का था।

क्या बोले सीएम डॉ. मोहन यादव

सीएम मोहन यादव (CM Mohan Yadav) ने कहा कि मध्यप्रदेश में न्याय की परंपरा दो हजार साल पुरानी है, जो राजा विक्रमादित्य के समय से चली आ रही है। इंदौर में हो रहे इस आयोजन के दौरान उन्होंने शाहबानो केस का उदाहरण दिया, जिसका फैसला सुप्रीम कोर्ट से हुआ था। उन्होंने कहा कि प्रजातंत्र में कोई दाग लगता है, तो हमारे सामने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को फिर से परिभाषित करते हुए प्रधानमंत्री ने सुप्रीम कोर्ट की महत्ता को बढ़ाया है। यह हमारे लिए गर्व की बात है।

इसके अलावा, समाज में कई बार ज्वलंत मुद्दों को टालने की परंपरा थी, लेकिन अब सीना ठोककर फैसले लिए जाते हैं। साथ ही, उन्हें लागू कराकर दुनिया के अंदर भारत के प्रजातंत्र को मजबूती दी जाती है। सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या जैसा फैसला भी करके दिखाया है, जो सभी के लिए सौभाग्य की बात है। सीएम ने यह भी कहा कि पीएम नरेंद्र मोदी के समय ही न्याय की देवी की आंखों से पट्टी हटाई गई। आज भले ही एआई और ऑनलाइन का जमाना हो, लेकिन न्याय की आत्मा बदलने वाली नहीं है। वह हमेशा समानता, पारदर्शिता और जल्द फैसले पर आधारित रहेगी।

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क्या है देश को हिलाने वाला इंदौर का शाहबानो केस

शाहबानो इंदौर की रहने वाली एक महिला थी। साल 1975 में शाहबानो के पति मोहम्मद अहमद खान ने उसे तलाक दे दिया। शाहबानो और उसके 5 बच्चों को उनके हाल पर छोड़ दिया गया। उस समय शाहबानो की उम्र 59 साल की थी।

शाहबानो ने बच्चों के लिए हर महीने गुजारा भत्ता देने की मांग की। लेकिन उसके पति ने मोहम्मद अहमद खान ने शाहबानो को तीन तलाक (तलाक-ए-बिद्दत) दे दिया। इसके बाद उसने किसी भी तरह की मदद करने से इनकार कर दिया।

निचली कोर्ट, हाईकोर्ट से होते हुए मामला सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ तक पहुंचा। शाहबानों ने कहा कि तीन तलाक के बाद इद्दत की मुद्दत (इंतजार का समय) तक ही तलाकशुदा महिला की देखरेख की जिम्मेदारी उसके पति की होती है।

तलाक के बाद गुजारा भत्ता देने का कोई प्रावधान नहीं है। मामला मुस्लिम पर्सनल लॉ से जुड़ा था। लड़ाई सुप्रीम कोर्ट तक पहुंची। 23 अप्रैल 1985 को सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संविधान पीठ ने मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के आदेश के खिलाफ फैसला सुनाया। साथ ही, शाहबानो के पति को गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के तहत हर महीने मोहम्मद अहमद खान को 179.20 रुपए देने थे।

इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से समान नागरिक संहिता लागू करने की अपील की। इस टिप्पणी पर मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने कड़ी आपत्ति जताई। इस विरोध से झुकते हुए राजीव गांधी सरकार ने मुस्लिम महिला (तलाक में संरक्षण का अधिकार) कानून 1986 सदन में पेश किया। ऐसे में एक तरह से उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलट दिया।

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फैसले से यह असर, बीजेपी उभरी

साल 1984 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी सिर्फ 2 सीटों पर जीत पाई थी, लेकिन इसने शाहबानो मामले को बड़ा मुद्दा बना लिया। बीजेपी ने सरकार पर तुष्टीकरण का आरोप लगाया। दबाव बढ़ने के बाद राजीव गांधी की सरकार ने एक के बाद एक फैसले लिए। अयोध्या में राम मंदिर का ताला खोलने का फैसला लिया, हालांकि इस फैसले ने नए राजनीतिक मुद्दों को जन्म दिया। आखिर में इसकी समाप्ति अयोध्या मंदिर बनकर हुई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कई बार कहा कि कांग्रेस को संविधान से कोई फर्क नहीं पड़ता और अपने वोट बैंक के लिए उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का शाहबानो फैसला पलट दिया।

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संगोष्ठी में यह सभी हुए शामिल-

शनिवार को इंदौर के ब्रिलियंट कन्वेंशन सेंटर में संगोष्ठी शुरू हुई। इसका आयोजन मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय और मध्यप्रदेश राज्य न्यायिक अकादमी ने किया। इस आयजन में डेनिश पेटेंट और ट्रेडमार्क ऑफिस ने भी सहयोग किया है। संगोष्ठी का विषय था "Involving Horizons: Navigating Complexity & Innovating in Commercial & Arbitration Law in Digital World"। इसमें मध्यप्रदेश के जज, नामी वकील और लॉ स्टूडेंट्स शामिल हुए। इसका उद्देश्य वाणिज्यिक और मध्यस्थता कानून के डिजिटल प्लेटफॉर्म्स में बदलाव पर वैश्विक स्तर पर सार्थक चर्चा और विचार-विमर्श का एक मंच प्रदान करना था।

संगोष्ठी के मुख्य अतिथि के रूप में मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव और सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति जितेन्द्र कुमार माहेश्वरी, न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाह, न्यायमूर्ति राजेश बिंदल और न्यायमूर्ति अरविन्द कुमार उपस्थित हुए। इसके अलावा, न्यायमूर्ति संजीव सचदेवा, मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश, तुषार मेहता, भारत के सॉलिसिटर जनरल, मारिया स्कु, डेनिश पेटेंट एंड ट्रेडमार्क ऑफिस की डेप्युटी डायरेक्टर जनरल, एरलिंग वेस्टर्गार्ड, विशेषज्ञ सलाहकार, मत्तियास कार्लसन डिनेट्ज, सीनियर एडवाइजर, डॉ. क्रिश्चियन बर्गक्विस्ट, एसोसिएट प्रोफेसर, पेटर पेत्रोव, जज, और डॉ. लुइज बोइसन, आई. पी. काउंसलर भी इस कार्यक्रम में उपस्थित हुए।

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संगोष्ठी में होंगे 6 सत्र-

संगोष्ठी के दौरान दो दिनों में छह तकनीकी सत्र होंगे। इन सत्रों में प्रौद्योगिकी और वाणिज्यिक कानून के बदलते पहलू, इंटरनेट मध्यस्थों की जिम्मेदारी, ऑनलाइन वाणिज्य में निष्पक्ष प्रतिस्पर्धा, भारत और यूरोपीय संघ के नजरिए से मध्यस्थता कानून की रूपरेखा, ऑनलाइन अवैध गतिविधियों का आपराधिक प्रवर्तन और बौद्धिक संपदा एवं नवाचार जैसे समकालीन विषयों पर चर्चा की जाएगी। संगोष्ठी का समापन सत्र रविवार, 12 अक्टूबर 2025 को होगा।

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