सिंहस्थ 2028 के लिए उज्जैन में शिप्रा जल से सिंचित 50,000 बांस उगाए, साधु-संत लहराएंगे धर्म ध्वजाएं
शिप्रा नदी के तट पर बांस के 50,000 से अधिक पौधे लगाना एक दूरदर्शी कदम है — इससे न केवल हरियाली और प्राकृतिक सौंदर्य में वृद्धि होगी, बल्कि यह साधु-संतों के लिए एक श्रद्धापूर्ण वातावरण भी प्रदान करेगा जहाँ वे धर्मध्वजाएं लहरा सकेंगे।
उज्जैन (Ujjain) में सिंहस्थ महापर्व 2028 (Simhastha 2028) को लेकर तैयारियां जोर पकड़ रही हैं। इस बार आयोजन को धार्मिकता के साथ-साथ पर्यावरणीय दृष्टिकोण से भी विशेष महत्व दिया गया है। उज्जैन वन विभाग ने शिप्रा नदी (Shipra River) के तट पर 10.72 हेक्टेयर भूमि में 50,000 से अधिक बांस (Bamboo) के पौधे लगाए हैं। इन पर सिंहस्थ में साधु-संतों द्वारा धर्मध्वजाएं (Dharma Dhwaja) लहराई जाएंगी।
इन बांसों की प्रजाति 'बेंबूसा बाल्कोआ' (Bambusa Balcooa) है, जिसे रीवा (Rewa) फ्लोरीकल्चर लैब से लाए गए बीजों से वर्ष 2018 में रोपा गया था। अभी इनकी लंबाई 20 से 25 फीट हो चुकी है और अगले दो वर्षों में ये 30 फीट तक की ऊँचाई प्राप्त कर लेंगे। सिंहस्थ के तीन माह पहले इनकी कटाई कर इन्हें मेला प्रशासन को सौंप दिया जाएगा ताकि सभी अखाड़ों और संतों को इन्हें निःशुल्क वितरित किया जा सके।
- कुल बांस: - 50,000+ - स्थान: - उज्जैन, शिप्रा तट - सिंचाई: - केवल शिप्रा नदी का जल - प्रजाति: -Bambusa Balcooa - उपयोग: -धर्मध्वजा (Religious Flags) फहराने के लिए - वितरण: -13 अखाड़ों और साधु-संतों को निःशुल्क
धर्म से जुड़ी आस्था और पर्यावरण का संगम
उज्जैन के डीएफओ पीडी ग्रेब्रियल ने बताया कि बांस सनातन धर्म में विशेष धार्मिक महत्व रखता है। यह पहल श्रद्धा और सतत विकास का प्रतीक है। सिंहस्थ के दौरान जब ये 30 फीट ऊंचे बांस धर्मध्वजाओं से सजेंगे, तो यह संपूर्ण उज्जैन को एक आध्यात्मिक और सांस्कृतिक रंग में रंग देगा।
इधर डिप्टी रेंजर अनिल सैन के अनुसार, बांस की सिंचाई के लिए आधुनिक विधियों का उपयोग किया जा रहा है, जिससे हर पौधा स्वस्थ और परिपक्व बन सके। यह न केवल आयोजन को भव्य बनाएगा बल्कि उज्जैन की पहचान को वैश्विक स्तर पर और भी मजबूत करेगा।
प्रश्न 1: उज्जैन सिंहस्थ 2028 के लिए बांस कहां और क्यों उगाए जा रहे हैं?
उत्तर: उज्जैन के शिप्रा नदी के किनारे 10.72 हेक्टेयर भूमि पर 50,000 बांस धर्मध्वजाओं के लिए उगाए जा रहे हैं। इनका उद्देश्य धार्मिक परंपरा और पर्यावरणीय संतुलन को बनाए रखना है।