" श्रम योजनाओं में भ्रष्टाचार का शक, सोशल ऑडिट से सरकार जानेगी सच "

मध्य प्रदेश सरकार को मजदूरों की मौत व उनके घायल होने पर दी जाने वाली अनुग्रह राशि वितरण में गड़बड़ी की आशंका है। प्रदेशभर में सोशल आडिट से इसे उजागर करने की तैयारी है।

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Ravi Awasthi
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Labour
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भोपाल।

मध्य प्रदेश सरकार को मजदूरों की मौत व उनके घायल  होने पर दी जाने वाली अनुग्रह राशि वितरण में बड़ी गड़बड़ी की आशंका है। इसके चलते प्रदेशभर में सोशल आडिट के जरिए इसे उजागर करने की तैयारी है,लेकिन विभागीय अफसर इसमें भी पेंच फंसा रहे हैं। 

दरअसल,सालभर पहले भोपाल नगर निगम में श्रमिकों के नाम पर करीब दो करोड़ रुपए की गड़बड़ी उजागर हुई थी। घोटाले के लिए जिम्मेदारों ने कुछ जिंदा लोगों को भी मृत बताकर रकम हड़प ली। इनमें अशोका गार्डन के मो.कमर,चांदबड़ की उर्मिला रायकवार व जहांगीराबाद निवासी मुमोबाई शामिल हैं। ​जो जीवित हैं,लेकिन इनके नाम के दो लाख रुपए हड़पने उन्हें जीते जी मार दिया गया। 

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ये 17 अधिकारी,कर्मचारियों पर लगे आरोप

मामले का खुलासा हुआ तो निगम मुख्यालय में हड़कंप मच गया। विभागीय पड़ताल में ऐसे 133 मामले सामने आए। इनमें 95 की ​नस्तियां ही गायब कर दी गई।

निगम के तत्कालीन जोनल अधिकारी सत्यप्रकाश बड़गैंया,परितोष रंजन परसाई,अवध नारायण मकोरिया,मयंक जाट,अभिषेक श्रीवास्तव,अनिल कुमार शर्मा,सुभाष जोशी,मृणाल खरे वार्ड प्रभारी अनिल प्रधान,चरण सिंह खंगराले,शिवकुमार गोफनिया,सुनील सूर्यवंशी,मनोज राजे,कपिल कुमार बंसल,व तीन कर्मचारी सुधीर शुक्ला,नवेद खान व रफत अली पर गड़बड़ी के आरोप लगे।

दिखावा ​साबित हुए जिम्मेदारों के बयान

गरीब मजदूरों के नाम पर हुए घोटाले से निगम की किरकिरी हुई जो जिम्मेदारों ने बड़े बयान दिए। महापौर मालती राय ने मीडिया से तब  कहा था-मृत्यु योजना की राशि में गड़बड़ी करने वालों को सख्त सजा होनी चाहिए। ऐसी मानसिकता वालों को छोड़ेंगे नहीं,लेकिन हुआ कुछ नहीं।

न आरोपी अमले के खिलाफ थाने में अपराध दर्ज हुआ न ही ये ज्यादा दिन निलंबित रहे। सभी आरोपियों को चंद दिनों बाद ही बहाल कर पहले से बेहतर पदस्थापना दे दी गई। अलबत्ता,लोकायुक्त पुलिस ने एक शिकायत पर प्रकरण दर्ज कर जांच शुरू की,लेकिन इसकी भी गति बेहद धीमी बनी हुई है। 

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अब सोशल आडिट कराने की तैयारी

भोपाल नगर निगम से जुड़ा यह मामला बीते दिनों राज्य विधानसभा में उठा तो विभागीय मंत्री प्रहृलाद पटेल ने प्रदेशभर में इसका सोशल आडिट कराए जाने की बात कही। यह आडिट बीते दो साल यानी 2022-23 व 2023-24 के लिए होगा। मंशा यही है कि अन्य निकाय  व पंचायत क्षेत्रों में भी इस तरह के मामले हैं तो वे सामने आ सकें। 

श्रम ने पंचायत ​विभाग पर डाली  जिम्मेदारी 

मंत्री के आश्वासन को पूरा करने में श्रम विभाग की भी कोई बहुत रुचि नहीं है। उसने सोशल आडिट की जिम्मेदारी पंचायत विभाग को सौंप दी है। इसे लेकर विभाग के सचिव बसंत कुर्रे कहते हैं-मैंने तो चंद दिन पहले ही सचिव का दायित्व संभाला है। मंत्री जी ने कहा है तो आडिट होगा।

वहीं श्रम कल्याण मंडल कार्यालय प्रमुख व सहा​यक सचिव रजनी मालवीय कहती हैं-श्रम विभाग के पास तो सोशल आडिट कराने की कोई सुविधा है नहीं। पंचायत विभाग का अपना बड़ा नेटवर्क है। इसे देखते हुए उससे यह काम करने को कहा गया है। 

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