बिजली सब्सिडी से निजात पाने की कवायद
भोपाल। मप्र के 81लाख किसान सिंचाई के लिए बिजली कंपनियों पर आश्रित हैं। जिन्हें भारी-भरकम बिल अदा करने के बाद वक्त पर बिजली नहीं मिलती। दूसरी तरफ सरकार को भी सस्ती बिजली के नाम पर हर साल 24 हजार करोड़ से अधिक रकम इन कंपनियों को अदा करना पड़ रहा है,लेकिन अब ऐसा नहीं होगा। सात सालों के इंतजार के बाद किसान अब सूरज से खुद बिजली बनाकर सिंचाई कर सकेंगे।
सात सालों में न सोलर पंप मिला न अनुदान
दरअसल,सोलर पंप से सिंचाई को लेकर योजनाएं पहले से हैं। इनमें मुख्यमंत्री सोलर पंप और पीएम कुसुम योजना शामिल हैं। इनमें किसानों को 1 एचपी से 7.5 एचपी तक के सोलर पंप 83 से 65 तक अनुदान पर दिए जाते हैं,लेकिन योजनाएं प्राथमिकताओं में शामिल नहीं रहीं।
नतीजा यह हुआ कि साल 2017 से बीते सप्ताह तक 34 हजार किसानों ने सरकार के पास अपनी अर्जी लगाई,लेकिन न पंप मिला न अनुदान।
इसके विपरीत किसानों को सस्ती बिजली देने के नाम पर सरकार को हर साल बिजली कंपनियों को 20 से 25 हजार करोड़ रुपए अदा करने पड़े। यह रकम भी साल दर साल बढ़ रही है। इसके राज्य के बजट का एक बड़ा हिस्सा सिर्फ बिजली अनुदान पर खर्च हो रहा है।
पोर्टल खुला तो 3 दिन में हुए 17 हजार पंजीयन
सस्ती बिजली के नाम पर जारी इस भारी रकम को लेकर समीक्षा हुई तो सरकार ने रास्ता बदला। जोर एक बार सौलर एनर्जी पर दिया गया। तय हुआ कि साल में दस लाख किसानों को सूरज से बिजली बनाने के लिए प्रेरित किया जाए ताकि किसानों पर भी साढ़े सात हजार रुपए सालाना बिल की मार न पड़े और सरकार पर अनुदान की।
सोलर पंप से जुड़ी दोनों ही योजनाओं को लेकर बीते सप्ताह ही मप्र उर्जा विकास निगम ने पोर्टल खोला।नतीजतन,तीन दिन में ही 17 हजार नए किसानों ने पंप के लिए अपना पंजीयन करा लिया। वहीं,पुराने आवेदकों को भी नई तकनीक से जुड़ने की आस बनी। सूत्रों का दावा है कि पुराने आवेदकों में सिर्फ साढ़े हजार ऐसे हैं जिन्होंने पंजीयन के साथ तय रकम भी जमा की थी।
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मप्र ही तय कर सकेगा वितरक कंपनी
सोलर पंप योजनाओं से जुड़ा पोर्टल कोरोना काल के दौरान बंद हुआ। नतीजतन,साल 2017 से लंबित आवेदनों पर भी निर्णय नहीं हो सका। आगे भी इसके बंद होने की एक बड़ी वजह,केंद्र सरकार की नीतियां रहीं।
दरअसल, सोलर पंप पर 30 प्रतिशत अनुदान केंद्र व इतनी ही अनुदान राज्य सरकार अदा करती थी,लेकिन सोलर पैनल इंस्टालेशन व पंप देने वाली कंपनी तय करने का काम केंद्र ने अपने हाथ में रखा था।
इसके चलते लंबे समय तक अनिर्णय की स्थिति बनती रही। बाद में मप्र सरकार के प्रस्ताव पर कंपनी तय करने का अधिकार राज्य सरकार को ही मिल गया।
राज्य का अनुदान भी दोगुना हुआ
पंप वितरक कंपनी तय करने का अधिकार हासिल करने के साथ ही राज्य सरकार ने अपने हिस्से की सब्सिडी बढ़ाकर दोगुना कर दी। यानी अब सोलर पंप पर 30 प्रतिशत केंद्र तो राज्य सरकार 60 से 65 प्रतिशत तक देगी। इसके चलते किसानों के लिए पंप लगवाने की लागत बेहद सस्ती हो गई।
सोलर पंप से मिलने वाली बिजली से न केवल सिंचाई हो सकती है बल्कि अतिरिक्त बिजली पैदा होने पर इसे सरकार को बेचा भी जा सकेगा।
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अनुदान बढ़ाना फायदे का सौदा
सूत्रों के मुताबिक,अनुदान में राज्य का हिस्सा बढ़ाना सरकार के लिए फायदे का ही सौदा है। इससे भविष्य में बिजली कंपनियों की देनदारी में कमी आएगी। वहीं,बिजली की किल्लत पर होने वाली अपनी किरकिरी से भी बच सकेगी।
मप्र ऊर्जा विकास निगम के सहायक यंत्री कमलेश गहलोत ने बताया कि नए आवेदकों के साथ पूर्व में अपने हिस्से की रकम जमा कर चुके किसानों को पहले चरण में शामिल किया गया है।
वहीं शुल्क जमा न करने वालों को भी अपने हिस्से की राशि अदा कर योजना का लाभ लेने के लिए प्रेरित किया जाएगा। ताकि इन्हें भी योजना का लाभ जल्दी मिल सके।
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