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MP NEWS: उज्जैन ( ujjain ) के महाकाल मंदिर के आंगन में इन दिनों सोमयज्ञ (Somayagya ) चल रहा है। बताया जा रहा है कि अधिक बारिश के लिए ये सोमयज्ञ किया जा रहा है। Somayagya के बाद बारिश की संभावना कितनी बढ़ सकती है, इसे जानने के लिए भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IITM),पुणे के वैज्ञानिकों की टीम ने मोर्चा संभाला है। टीम विभिन्न यंत्रों की मदद से हवा का दबाव, आर्द्रता, तापमान और गैसों की स्थिति को रिकॉर्ड कर रही है।
सोमयज्ञ का वैज्ञानिक आधार
बताया जा रहा है कि सोमयज्ञ से वायुमंडल में उपस्थित कणों पर नमी जमा हो जाती है, जो बारिश की बूंदों का निर्माण करते हैं। यह प्रक्रिया वायुमंडल में बारिश के अनुकूल परिवर्तन लाती है। बादलों की प्रकृति भी जांची जा रही है कि वे पानी खींचने वाले कणों से बने हैं या नहीं।
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बादल की दो प्रकृति होती है
- पानी को शिथिल करने वाले कण
- पानी को खींचने वाले कण
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विशेष यंत्रों से हो रही निगरानी
हवा में बारिश योग्य कणों की संख्या पता करने के लिए विशेष यंत्र लगाए गए हैं। साथ ही, वायुमंडलीय गैसों जैसे कार्बन मोनोऑक्साइड (CO), कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) और मीथेन (CH4) की मौजूदा स्थिति भी दर्ज की जा रही है। वैज्ञानिक डॉ. सचिन के. फिलिप और स्टेनी बेनी के नेतृत्व में यह छह दिन का अनुसंधान कार्यक्रम संचालित हो रहा है।
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क्या है सोमयज्ञ
ज्योतिषाचार्य पंडित अमर डब्बावाला के अनुसार, सोमयज्ञ एक प्राचीन वैदिक अनुष्ठान है। इसे विशेष रूप से अधिक वर्षा की कामना के लिए किया जाता है। यह अनुष्ठान त्रेतायुग और द्वापरयुग के काल से चला आ रहा है। पहले राजा-महाराजा अपने राज्य में सुखद और पर्याप्त वर्षा के लिए इसका आयोजन करते थे।
यह केवल धार्मिक क्रिया नहीं, बल्कि प्रकृति से संतुलन स्थापित करने का एक गूढ़ वैज्ञानिक तरीका भी माना गया है। इस यज्ञ की सबसे विशिष्ट विशेषता सोमवल्ली नामक विशेष वनस्पति से तैयार होने वाला सोमरस है। इस रस को शुद्ध देसी गाय के घी में मिलाकर अग्नि में आहुति दी जाती है। ऐसा माना जाता है कि यह आहुति वातावरण में विशेष प्रकार की ऊर्जा उत्पन्न करती है, जिससे वायुमंडल में नमी और संतुलन का निर्माण होता है, जो वर्षा की संभावना को बढ़ा सकता है।
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