मध्य प्रदेश के धार के अब तक के सबसे बड़े 250 करोड़ के (बाजार कीमत 400 करोड़ से ज्यादा) जमीन घोटाले सेंट टेरेसा के मामले में मप्र सरकार की इंदौर हाईकोर्ट में बुरी तरह हार हुई है। शासकीय अधिवक्ता (डिप्टी एडवोकेट जनरल सुदीप भार्गव) 16 हजार 500 पन्नों के चालान के और कई कागजी दस्तावेज के बाद भी हाईकोर्ट में यह नहीं बता पाए कि यह सरकार जमीन है। कलेक्टर प्रियांक मिश्रा और एसपी मनोज सिंह के इस मामले में सख्ती से मॉनीटरिंग नहीं करने का नतीजा यह रहा है कि पूरे केस में मेहनत करने वाले तत्कालीन कलेक्टर पंकज जैन, एसपी आदित्य प्रताप सिंह, नगर पालिका अधिकारी पर 50 हजार की कॉस्ट भी लग गई।
हाईकोर्ट ने आदेश में यह कहा
हाईकोर्ट इंदौर ने आदेश में कहा है कि कलेक्टर द्वारा 19 मार्च 2021 में जारी इस जमीन सर्वे नंबर 29 मगजपुरा धार को सरकारी घोषित करने का आदेश रद्द करने योग्य है। साथ ही इस आधार पर नगर पालिका धार द्वारा बिल्डिंग मंजूर निरस्त करने का 31 मई 2021 का आदेश भी रद्द किया जाता है और साथ ही इस आदेश के आधार पर एसपी द्वारा दर्ज की गई एफआईआर और की गई जांच अमान्य और शून्य की जाती है।
इस फैसले के मायने क्या
- इस आदेश के मायने यह हैं कि इस घटना में 30 से ज्यादा आरोपियों पर सारी कानूनी कार्रवाई जीरो हो गई, जिसमें सुधीर दास, शालिनी दास, सुधीर जैन सहित अन्य शामिल हैं।
- जमीन सरकारी होने का दावा खारिज हो गया, अब स्वामित्व का फैसला सिविल कोर्ट में जारी वाद से ही होगा।
- इस जमीन को लेकर कलेक्टर, नगर पालिक धार, एसपी के सरकारी जमीन मानने और यह मानकर की जाने वाली सारी कार्रवाई जीरो हो गई है
- ईडी द्वारा इसी एफआईआर के आदेश पर मनी लॉन्डरिंग एक्ट के तहत केस दर्ज कर जनवरी में 151 करोड़ की प्रॉपर्टी अटैच की गई थी, अब जबकि एफआईआर और कानूनी कार्रवाई शून्य हो गई तो फिर ईडी के केस का भी आधार नहीं बचा, यानी अब ईडी के हाथ से भी अटैचमेंट जाएगा।
हाईकोर्ट में किस तरह चले तर्क और क्या हुआ
यह केस आयुशी जैन और सरिता जैन ने लगाया था, जिन्होंने इस मामले में मुख्य आरोपी सुधीर दास से सर्वे नंबर 29 की व्यावसायिक जमीन खरीदी थी और इस पर नगर पालिक से भवन मंजूरी लेकर काम शुरू किया था। इनका तर्क था कि इस केस में कलेक्टर द्वारा मार्च 2021 में आदेश जारी कियी गया था कि यह सरकारी जमीन है, जो कि गलत है। साथ ही इसके आधार पर एसपी द्वारा की जांच गई, एफआईआर भी गलत है।
- हाईकोर्ट ने कहा कि शासन पक्ष यह दस्तावेज नहीं बता पाया कि यह सरकारी जमीन थी। साल 1895 में महाराज आनंद राव पंवार ने यह जमीन दी थी। लेकिन किसी भी दस्तावेज में इसके सरकारी जमीन होने के सबूत नहीं है।
- कोर्ट में साल 2012 में आरोपी सुधीर दास के पक्ष में डिक्री हो चुकी है।
- यह पूरी तरह से स्वामित्व का सिविल विवाद है, इसमें पुलिस कार्रवाई की जरूरत ही नहीं थी।
- तहसीलदार के खिलाफ हुई शासकीय कार्रवाई के खिलाफ हाईकोर्ट इंदौर द्वारा रिट पिटीशन व रिट अपील दोनों में इसे सरकारी जमीन नहीं माना गया है। ऐसे में फिर इस पूरी कार्रवाई को काई मतलब नहीं बनता है।
- कलेक्टर द्वारा मार्च 2021 में जारी आदेश को लेकर शिकायतकर्ता पहले ही शिकायत ले चुका था, साथ ही इसमें कलेक्टर ने सामने वाले को नोटिस नहीं दिया। इसलिए आदेश शून्य होने योग्य है।
- नगर पालिक द्वारा जब भवन मंजूरी दी गई तो उसे रद्द करने का कोई आधार वह नहीं बता सके।
- एसडीओ नजूल अनापत्ति दे चुके हैं, तहसीलदार नामांतरण कर चुके हैं, पहले किसी भी समय शासकीय जमीन की बात नहीं उठी, फिर अचानक कैसे आ गया, यह नहीं बता सके।
- जिस शिकायतकर्ता जय ठाकुर के आधार पर एफआईआर हुई उस पर खुद आपराधिक केस है, उसका इस केस से कोई वास्ता नहीं, फिर भी एक शिकायत पर यह पूरी कानूनी कार्रवाई की गई।
कनाडा से बुलाई किताब, पूरे दस्तावेज जांच 16500 पन्ने
इस पूरे मामले में तत्कालीन एसपी आदित्य प्रताप सिंह ने टीम बनाकर खासी मेहनत की थी। इसके लिए कनाडा तक से बुक मंगाई गई थी और राज दरबार के पुराने हजारों पन्ने खंगाले गए और इसके बाद 16500 पन्नों का अभूतपूर्व चालान पेश किया गया। इसमें 1895 से चली जमीन के दस्तावेज के सिर से अभी तक की लिंक बनाकर पेश की गई और बताई गई कि किस तरह दास के पिता रत्नाकर पीटर दास इसमें जुड़े और फिर उनकी पत्नी इसमें आई और सुधीर दास केवल इस जमीन व चर्चा के प्रशासक मात्र थे। लेकिन उन्होंने फर्जीवाड़ा करते हुए इस जमीन का खुद का स्वामित्व बताया और इसके बाद जमीन के टुकड़े बनाकर बेच दिए और इस तरह 250 करोड़ का घोटाला किया।
इसके बाद भी सरकारी पक्ष नहीं बता पाया
लेकिन इन सभी की मेहनत के बाद भी सरकारी पक्ष कोर्ट में यह साबित नहीं कर पाया कि यह सरकारी जमीन ही मूल रूप से रही है और इसे फर्जी तरीके से दास ने ली और फिर लोगों को बेच डाली। हाईकोर्ट ने साफ कहा कि शासकीय पक्ष से ऐसे कोई दस्तावेज नहीं आए कि यह सरकारी जमीन है और केवल इसी आधार पर यह पूरी कार्रवाई की गई है जो अमान्य और शून्य होने लायक है।
अब क्या रास्ता बचा है
इस फैसले के खिलाफ मप्र शासन को जल्द से जल्द विधिक सलाह लेते हुए रिट अपील में जाना होगा। वहीं कलेक्टर, एसपी धार को इसमें रूचि व मॉनीटरिंग लेते हुए इन चालान में साबित सरकारी जमीन होने के सबूतों तो मजबूती से कोर्ट में रखवाना होगा। पूरी कार्रवाई केवल इसी बात पर टिकी है कि यह जमीन सरकारी है या नहीं, यदि शासन शासकीय नहीं बता पाया तो यह पूरी जमीन औऱ् केस हाथ से निकल जाएगा।
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