INDORE : इंदौर हाईकोर्ट ने गंभीर अपराध की जांच में हो रही लापरवाही को लेकर सख्त नाराजगी जाहिर की है। साथ ही इन मामलों के लिए डीजीपी को आदेश दिए हैं कि इनकी जांच एसआईटी बनाकर की जाए और इसे लीड सीनियर लेवल के आईपीएस करेंगे। सभी गंभीर अपराधों की जांच एसआईटी द्वारा ही होना चाहिए। हर जिले में यह एसआईटी गठित हो। इसमें कम से दो सदस्य हो। साथ ही वरिष्ठ मॉनीटरिंग करें।
क्यों की ऐसी टिप्पणी
जस्टिस सुबोध अभ्यंकर की बेंच में रतलाम मे साल 2020 में हुई डकैती और हत्या के केस में आरोपी सुमित सिंह की जमानत का मामला सामने आया। इसे लेकर बार-बार पुलिस से जानकारी मांगी गई लेकिन सबूतों की कमी और कार्रवाई में देरी की वजह से छठी बार में उसकी जमानत मंजूर हो गई।
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हाईकोर्ट ने यह पाया
हाईकोर्ट ने केस में पाया कि जांच के दौरान जांच अधिकारी और फारेंसिंक टीम की भारी लापरवाही रही। इसके चलते आरोप को संदेह का लाभ मिला। मौके से फिंगर प्रिंट तक नहीं लिए गए। बार-बार कोर्ट द्वारा इस बारे में बात की जाती है लेकिन जांच अधिकारी चूक करते हैं। जांच के तरीके में सुधार नहीं हुआ है और आरोपी व्यक्ति को बेखौफ जाने दिया जाता है। यह समझना जरूरी है कि जब आपराधिक मुकदे में शुरू से ही जांच में लापरवाही हो तो पूरी जांच विफल हो जाती है और यह सरासर बड़ी गलती है।
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रतलाम के केस में यह हुआ
रतलाम में जून 2020 में आरोपी सुमित सिंह पर हत्या और डकैती का केस बना, उसे दिसंबर में गिरफ्तार किया गया। इसके बाद से वह हिरासत में हैं। अधिवक्ता अभय सारस्वत ने आरोपी की ओर से तर्क रखे वहीं शासन की ओर से वीरेंद्र खदाव थे। पाया गया कि 29 गवाहों में से केवल 11 की ही जांच की गई थी।
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