अपराधी वकीलों पर कड़ी कार्रवाई, HC बार एसोसिएशन ने पांच अधिवक्ताओं की सनद रद्द की

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट बार एसोसिएशन ने पांच अपराधी अधिवक्ताओं की सनद रद्द की। ये वकील हत्या के प्रयास के मामले में दोषी पाए गए थे और उन्हें सात साल की सजा दी गई। 

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Neel Tiwari
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न्याय पाने के लिए समाज का साथ देने के लिए मजबूती से खड़े होने वाले अधिवक्ता ही जब अपराधी बन जाए तो पेशे की गरिमा पर बड़ा सवाल खड़ा हो जाता है। ऐसे ही एक मामले में मध्य प्रदेश हाईकोर्ट बार एसोसिएशन ने कड़ा कदम उठाते हुए अपराधी अधिवक्ताओं की सनद ही रद्द कर दी है।

मध्यप्रदेश हाईकोर्ट बार एसोसिएशन ने साफ संदेश दिया है कि अपराध में लिप्त अधिवक्ताओं को अब पेशे में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। उज्जैन के पांच अधिवक्ताओं को अदालत से सात-सात साल की सजा मिलने के बाद उनकी सनद रद्द कर दी गई है। 

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2009 का मामला, हत्या के प्रयास का आरोप

यह मामला साल 2009 का है। उज्जैन निवासी घनश्याम पटेल पर जानलेवा हमला किया गया था, जिसमें पांच वकील धर्मेन्द्र कुमार शर्मा, शैलेन्द्र कुमार शर्मा, सुरेन्द्र कुमार शर्मा, भावेन्द्र शर्मा और पुरषोत्तम राय आरोपी पाए गए। पुलिस ने एफआईआर दर्ज कर आरोपपत्र पेश किया और मुकदमा इंदौर की अदालत में चला।

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कोर्ट ने दी थी 7 साल की सजा और जुर्माना

इंदौर की अपर सत्र अदालत ने सुनवाई के बाद सभी को सात-सात साल की सजा और 10-10 हजार रुपये जुर्माने से दंडित किया। इनमें से एक अधिवक्ता की उम्र 90 वर्ष बताई गई है। अदालत ने माना कि सभी ने संगठित होकर हमला किया और पीड़ित की जान लेने की कोशिश की।

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बार एसोसिएशन ने रद्द की सनद

सजा सुनाए जाने के बाद MP स्टेट बार एसोसिएशन ने अधिवक्ता अधिनियम 1961 की धारा 35 के तहत कार्रवाई करते हुए उनकी सनद निलंबित कर दी। बार एसोसिएशन चेयरमैन राधेलाल गुप्ता और वाइस चेयरमैन आर.के. सिंह सैनी ने कहा कि अब ये अधिवक्ता किसी भी न्यायालय में पेशी नहीं ले सकेंगे।

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समाज के आदर्श होते हैं अधिवक्ता

हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के सचिव आर के सैनी ने स्पष्ट कहा कि अधिवक्ता समाज का आदर्श होते हैं। ऐसे में अपराध में शामिल पाए जाने पर उन्हें पेशे से बाहर करना ही पड़ेगा। उन्होंने यह भी चेतावनी दी कि भविष्य में भी सजायाफ्ता वकीलों पर सख्ती बरती जाएगी।

पेशे की गरिमा बचाने बार एसोसिएशन की पहल

हाईकोर्ट बार एसोसिएशन की इस कार्रवाई से साफ हो गया है कि अधिवक्ता पेशे की गरिमा और विश्वसनीयता को किसी भी कीमत पर आंच नहीं आने दी जाएगी। यह कदम न केवल वकालत की साख बचाने के लिए जरूरी है, बल्कि समाज में कानून और न्याय व्यवस्था पर जनता के भरोसे को मजबूत करने वाला भी है।

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