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मध्य प्रदेश में पुलिस आरक्षक भर्ती प्रक्रिया को लेकर एक महत्वपूर्ण कानूनी विवाद का अंत हो गया है। सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के उस आदेश को बरकरार रखा है, जिसमें कहा गया था कि पुलिस आरक्षक भर्ती के लिए रोजगार कार्यालय का पंजीकरण अनिवार्य नहीं है। यह फैसला उन हजारों उम्मीदवारों के लिए राहत लेकर आया है, जिनकी उम्मीदवारी केवल इस आधार पर रद्द कर दी गई थी कि उनके पास रोजगार पंजीकरण प्रमाणपत्र नहीं था। मध्य प्रदेश सरकार ने हाई कोर्ट के इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी, लेकिन शीर्ष अदालत ने सरकार की विशेष अनुमति याचिका (SLP) को खारिज कर दिया।
आरक्षक भर्ती से जुड़ा हुआ है विवाद
मध्य प्रदेश पुलिस विभाग द्वारा निकाली गई आरक्षक भर्ती प्रक्रिया में आवेदन करने वाले कुछ उम्मीदवारों को इस आधार पर अयोग्य घोषित कर दिया गया था कि उनके पास राज्य के रोजगार कार्यालय में पंजीकरण नहीं था। यह शर्त भर्ती अधिसूचना में शामिल की गई थी, जिससे कई योग्य उम्मीदवार बाहर हो गए। इन उम्मीदवारों ने इसे अनुचित और भेदभावपूर्ण बताते हुए मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में याचिका दायर की।
याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि रोजगार पंजीकरण केवल एक औपचारिक प्रक्रिया है और इसका किसी व्यक्ति की योग्यता, दक्षता या भर्ती प्रक्रिया में प्रतिस्पर्धा करने की क्षमता से कोई संबंध नहीं है। उन्होंने कहा कि रोजगार पंजीकरण की शर्त लागू करना उन योग्य उम्मीदवारों के मौलिक अधिकारों का हनन है, जो राज्य के नागरिक होने के बावजूद केवल पंजीकरण की कमी के कारण अवसर से वंचित हो रहे हैं।
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हाईकोर्ट से उम्मीदवारों के हक में आया था फैसला
मामले की सुनवाई के दौरान मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने पाया कि पुलिस आरक्षक भर्ती में रोजगार कार्यालय पंजीकरण की अनिवार्यता उम्मीदवारों के मौलिक अधिकारों के खिलाफ है। हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि सार्वजनिक रोजगार के अवसरों पर विचार किया जाना संविधान के अनुच्छेद-16 के तहत एक मौलिक अधिकार है। सरकार अनावश्यक शर्तों के आधार पर उम्मीदवारों को अवसर से वंचित नहीं कर सकती। हाईकोर्ट ने यह साफ किया था कि किसी भी भर्ती प्रक्रिया में उम्मीदवारों की योग्यता, दक्षता, और मानसिक एवं शारीरिक फिटनेस सबसे महत्वपूर्ण कारक होने चाहिए। रोजगार पंजीकरण की अनिवार्यता एक प्रशासनिक औपचारिकता है, जो भर्ती प्रक्रिया की मेरिट को प्रभावित नहीं करती। इसलिए, इस आधार पर किसी योग्य उम्मीदवार को अयोग्य घोषित करना अनुचित और भेदभावपूर्ण होगा।
एमपी सरकार की अपील सुप्रीम कोर्ट से खारिज
मध्य प्रदेश सरकार ने हाईकोर्ट के इस आदेश को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका (SLP) दायर की। सरकार का तर्क था कि रोजगार कार्यालय में पंजीकरण की अनिवार्यता का उद्देश्य राज्य के बेरोजगार युवाओं को प्राथमिकता देना था। सरकार ने यह भी दावा किया कि इस नियम को हटाने से भर्ती प्रक्रिया में अनावश्यक जटिलताएं पैदा हो सकती हैं, जिससे प्रशासनिक कामकाज प्रभावित होगा। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने सरकार की दलीलों को अस्वीकार करते हुए हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखा और स्पष्ट किया कि किसी भी सरकारी नौकरी के लिए रोजगार कार्यालय पंजीकरण को अनिवार्य नहीं बनाया जा सकता, जब तक कि इसका भर्ती की मेरिट से सीधा संबंध न हो।
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सुप्रीम कोर्ट का अंतिम निर्णय का यह होगा प्रभाव
सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार की अपील खारिज करते हुए हाईकोर्ट के फैसले को सही ठहराया और कहा कि पुलिस आरक्षक भर्ती में रोजगार कार्यालय पंजीकरण अनिवार्य नहीं होगा। इस फैसले से हजारों उम्मीदवारों को लाभ मिलेगा, जो इस बाध्यता के कारण भर्ती प्रक्रिया से बाहर हो गए थे। सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय से यह स्पष्ट संदेश गया है कि सरकारी नौकरियों के लिए आवेदन प्रक्रिया को सरल और पारदर्शी बनाया जाना चाहिए। अनावश्यक औपचारिकताओं के कारण योग्य उम्मीदवारों को बाहर करने का कोई औचित्य नहीं है।
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उम्मीदवारों के लिए राहत भरा फैसला
सुप्रीम कोर्ट के इस ऐतिहासिक फैसले से उन सभी उम्मीदवारों को न्याय मिला है, जो रोजगार पंजीकरण की बाध्यता के कारण पुलिस आरक्षक भर्ती प्रक्रिया से बाहर हो गए थे। यह फैसला भर्ती प्रक्रियाओं में पारदर्शिता सुनिश्चित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। अब उम्मीदवार बिना रोजगार कार्यालय पंजीकरण के भी पुलिस आरक्षक भर्ती में आवेदन कर सकेंगे, जिससे राज्य में रोजगार के अवसरों को और अधिक समावेशी बनाया जा सकेगा। यह निर्णय भविष्य में अन्य सरकारी भर्तियों के लिए भी एक नजीर बनेगा और उम्मीदवारों को अनावश्यक नियमों के कारण अवसर से वंचित होने से बचाएगा।
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