5 सालों से अटका था काम, लागू होने पर बच जाती हरदा के बेगुनाहों की जान

मध्यप्रदेश में दो विभागों के झगड़े के बीच फायर सेफ्टी एक्ट लागू ही नहीं हो सका है। झगड़ा इस बात को लेकर है कि फायर सर्विसेज का संचालन कौन करेगा, जबकि केंद्र ने साल 2019 में ही राज्य सरकार को मॉडल विधेयक भेज दिया था।

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Pooja Kumari
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BHOPAL. हाल ही में हरदा पटाखे फैक्ट्री में हुए ब्लास्ट में 13 लोगों की जान चली गई और 200 से ज्यादा लोग इसमें घायल हो गए। मध्यप्रदेश में पटाखा फैक्ट्रियों में हादसे का ये कोई पहला मामला नहीं है। पिछले 10 साल में पटाखा फैक्ट्रियों में 14 धमाके हो चुके हैं। इनमें 180 लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी है।

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हादसे से कुछ दिन पहले डिप्टी सीएम ने भेजा था विजयवर्गीय को नोटिस


एक्सपर्ट का कहना है कि यदि मध्यप्रदेश में फायर सेफ्टी एक्ट लागू होता तो शायद इतना बड़ा हादसा नहीं होता। खास बात ये है कि हरदा हादसे के एक हफ्ते पहले 23 जनवरी को डिप्टी सीएम राजेंद्र शुक्ला ने नगरीय प्रशासन मंत्री कैलाश विजयवर्गीय को एक नोटशीट भेजी थी, जिसमें लिखा था कि मध्यप्रदेश में फायर सेफ्टी एक्ट लागू किया जाए।

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5 सालों से अटका था ये काम 


दरअसल, मध्यप्रदेश में दो विभागों के झगड़े के बीच फायर सेफ्टी एक्ट लागू ही नहीं हो सका है। झगड़ा इस बात को लेकर है कि फायर सर्विसेज का संचालन कौन करेगा, जबकि केंद्र ने साल 2019 में ही राज्य सरकार को मॉडल विधेयक भेज दिया था। इसे अब तक मंजूरी नहीं मिली है। 2017 में बालाघाट की पटाखा फैक्ट्री में हुए विस्फोट के बाद सरकार ने विस्फोटक स्टॉक की मॉनिटरिंग के लिए एक स्टेट लेवल सेल के गठन का भी ऐलान किया था, लेकिन 7 साल बाद भी ये सेल एक्टिव नहीं हो पाया। 

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2017 में अग्निशमन सेवा अधिनियम बनाने की प्रक्रिया शुरू की गई थी


केंद्र सरकार ने 2017 में अग्निशमन सेवा अधिनियम बनाने की प्रक्रिया शुरू की थी। विचार-विमर्श के बाद इसका अंतिम मसौदा तैयार कर केंद्र ने 16 सितंबर 2019 को सभी राज्यों को भेजा था। केंद्र की तरफ से भेजा गया ये मॉडल विधेयक था। इसमें भवनों को आग से बचाने के कई सारे प्रावधान किए गए थे। राज्य सरकार ने उसी साल अग्निशमन सेवा अधिनियम को अंतिम रूप दिया था, जिसे तत्कालीन नगरीय विकास व आवास विभाग के मंत्री ने मंजूरी दी थी और कानून विभाग को भेज दिया था। जनवरी 2020 में नगरीय विकास एवं आवास विभाग के तत्कालीन प्रमुख सचिव संजय दुबे ने गृह विभाग को एक नोटशीट लिखकर कहा था कि इंदौर, पीथमपुर और भोपाल के सरकारी भवनों में आग की रोकथाम के लिए पुलिस अग्निशमन सेवा के अधिकारियों व कर्मचारियों के साथ-साथ सभी संपत्तियों का हस्तांतरण नगरीय विकास विभाग को किया जाए। 

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2021 में प्रदेश के अस्पतालों के सेफ्टी ऑडिट करने के निर्देश जारी किए गए थे


देश के कई राज्यों ने केंद्र के एक्ट को 2020 में लागू कर दिया था, लेकिन मध्यप्रदेश में पूर्व से बने भूमि विकास नियम में संशोधन करने की महज औपचारिकता कर दी गई। जिसके तहत नेशनल बिल्डिंग कोड के प्रावधानों के साथ कुछ नई शर्तें शामिल कर दी गईं। 2021 में जब हमीदिया अस्पताल की नई बिल्डिंग में बच्चा वार्ड में आग लगने की घटना हुई थी तो सरकार एक बार फिर जागी और सभी इमारतों का फायर सेफ्टी ऑडिट करवाने के निर्देश दिए। हालांकि, इस हादसे से 6 महीने पहले मई 2021 में प्रदेश के सभी अस्पतालों के सेफ्टी ऑडिट करने के निर्देश जारी किए गए थे। उस समय तत्कालीन नगरीय विकास एवं प्रशासन मंत्री भूपेंद्र सिंह ने कहा था कि कोविड के दौरान अस्पतालों में मरीज बढ़े हैं। इसके चलते बिजली खपत भी बढ़ी है। ऐसे में अस्पतालों में आग और लिफ्ट सेफ्टी का महत्व बढ़ गया है।

2012 में अस्पतालों की फायर ऑडिट और लिफ्ट सेफ्टी ऑडिट

 
मध्यप्रदेश भूमि विकास नियम, 2012 के नियम-87 (5) के तहत सरकारी और प्राइवेट अस्पतालों की फायर ऑडिट और लिफ्ट सेफ्टी ऑडिट रिपोर्ट 7 दिन में मांगी थी। जब नगर निगम से रिपोर्ट नहीं मिली, तो 17 मई 2022 को एक बार फिर रिमाइंडर भेजा था। उस समय सरकार ने फायर सेफ्टी के लिए दिशा निर्देश जारी किए थे। फायर सेफ्टी की एनओसी देने को लेकर नगरीय विकास व आवास विभाग ने 6 दिसंबर 2022 को मप्र भूमि विकास नियम का हवाला देकर एक आदेश जारी किया। जिसमें कहा गया कि एक्सप्लोसिव एक्ट के तहत फायर संबंधी एनओसी जारी करने का अधिकार कलेक्टर का रहेगा। नगर निगम के क्षेत्र में निगमायुक्त और नगर पालिका व परिषद के एरिया में संभागीय संयुक्त संचालक को यह जिम्मेदारी सौंपी गई जबकि ये अधिकार फायर सेफ्टी एक्ट के तहत दिए जाने थे।

ये झगड़ा क्यों


बता दें कि ये झगड़ा नगरीय प्रशासन विभाग और गृह विभाग के बीच का है। दोनों विभागों के बीच ये शीत युद्ध साल 2010 से चल रहा है। मप्र के कुछ क्षेत्रों में फायर सर्विसेज की सेवाएं गृह विभाग के पास हैं- जैसे इंदौर शहर, औद्योगिक क्षेत्र पीथमपुर, भोपाल के सतपुड़ा, विंध्याचल, मंत्रालय और विधानसभा की फायर सेफ्टी गृह विभाग देखता है। इसे छोड़कर मप्र के हर शहर में भवनों की आग की रोकथाम की जिम्मेदारी नगरीय प्रशासन विभाग की है यानी नगर निगम और नगर पालिका के पास ये जिम्मेदारी है। इसी झगड़े को देखते हुए सरकार ने 2010 में पूरे प्रदेश में आग की रोकथाम करने की जिम्मेदारी नगरीय निकायों को सौंप दी थी, लेकिन गृह विभाग ने इस पर आपत्ति दर्ज कराई और यह मामला हाईकोर्ट तक पहुंच गया। यहां सरकार के उस आदेश को चुनौती दी गई, जिसमें कहा गया था कि पुलिस फायर में कार्यरत अधिकारी व कर्मचारियों की सेवाएं नगरीय निकायों में मर्ज कर दी जाए। इसके बाद हाईकोर्ट ने सरकार को निर्देश दिए थे कि वह इस मामले का शासन स्तर पर निराकरण करे। इस पर सरकार ने एक साल में ही आदेश जारी कर पुलिस अग्निशमन सेवा के अधिकारियों व कर्मचारियों को नगरीय प्रशासन व विकास विभाग के अधीन कर दिया।

डा. राजेश राजौरा की अध्यक्षता में बनी थी कमेटी 


सूत्रों का कहना है कि सतपुड़ा भवन में आग लगने की जांच करने के लिए अपर मुख्य सचिव डा. राजेश राजौरा की अध्यक्षता में कमेटी बनाई थी। इस कमेटी ने 287 पेज की रिपोर्ट सरकार को सौंपी थी। इसमें यह सुझाव दिया गया था कि प्रदेश में फायर सेफ्टी एक्ट लागू किया जाए। मंत्रालय सूत्रों का कहना है कि हरदा ब्लास्ट से एक सप्ताह पहले ही डिप्टी सीएम राजेंद्र शुक्ला ने नगरीय विकास एवं आवास मंत्री कैलाश विजयवर्गीय को एक नोटशीट भेजी थी। इसमें उन्होंने कहा था कि मध्य प्रदेश में केंद्र के प्रस्तावित फायर एक्ट एवं किराएदारी अधिनियम को लागू किया जाए। दरअसल, शुक्ला स्वास्थ्य विभाग के मंत्री हैं और वे अस्पतालों की अग्नि सुरक्षा को लेकर चिंतित हैं। उन्होंने मंत्री पद संभालने के बाद पहली ही बैठक में विभाग के अफसरों से अस्पतालों की सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम करने के निर्देश दिए थे। बालाघाट जिले में जून 2017 में एक पटाखा फैक्ट्री में हुए भीषण विस्फोट में कम से कम 25 लोगों की मौत हो गई थी। इस मामले में विस्फोटक के स्टोरेज में लापरवाही सहित कई खामियों का खुलासा हुआ था। बालाघाट के अलावा भी प्रदेश के पेटलावद, दतिया, इंदौर सहित कई जगहों पर पटाखा फैक्ट्री में हुए विस्फोट में लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी थी।

विपक्षी दल कांग्रेस ने विधानसभा में उठाया था ये मुद्दा 


जानकारी के मुताबिक इस मामले को विपक्षी दल कांग्रेस ने विधानसभा में उठाया था। तब विधानसभा के मानसून सत्र के सातवें दिन तत्कालीन गृह मंत्री भूपेंद्र सिंह ने कहा था कि प्रदेश में विस्फोटक सामग्री की निगरानी के लिए अलग से सेल बनाई जाएगी। इसके लिए एसीएस, होम की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन किया गया है, जो तीन महीने में अपने सुझाव सरकार को देगी। विस्फोटक सेल की जिम्मेदारी एडीजी स्तर के अधिकारी को दी जाएगी। इसका काम विस्फोटक सामग्री पर सतत निगरानी करना होगा लेकिन अब तक ये सेल सक्रिय नहीं हो पाया है।

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