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भोपाल।
छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने दो दिन पहले कहा-धर्मांतरण करने वाले आदिवासियों को एससी वर्ग से हटाने की जरूरत है।इससे धर्मपरिवर्तन पर रोक लगेगी।इसके लिए सख्त कानून की जरूरत है।
जातियों से जुड़ें मामलों को कानूनी रूप देने का अधिकार सिर्फ केंद्र के पास है। इसे संविधान में संशोधन के जरिए किया जा सकता है,तो क्या साय का बयान इस बात का संकेत है कि देश में आदिवासियों को लेकर जल्द ही एक नया कानून होगा।
70 के दशक से जारी है हक की लड़ाई
धर्म बदल कर ईसाई या मुस्लिम बनने वालों को अनुसूचित जाति को मिलने वाले लाभ से वंचित करने की मांग नई नहीं है। जनजाति सुरक्षा मंच 70 के दशक से आदिवासियों के हित में यह लड़ाई लड़ रहा है। मंच ने इसे लेकर अलग-अलग राज्यों में रैली व प्रदर्शन किए तो निर्वाचित जनप्रतिनिधियों से मुलाकात कर उन्हें इस मांग के समर्थन में भी खड़ा किया। यहां तक कि मंच से जुड़े तत्कालीन सांसद डॉ.कार्तिक उरांव की पहल पर संसद में प्रभावी लेकिन अधूरी बहस भी हुई। मंच से जुड़े लोगों ने समय-समय पर संबंधित राष्ट्रपतियों को ज्ञापन भी सौंपे।
5 लाख लोग दिल्ली में करेंगे शक्ति प्रदर्शन
मंच के राष्ट्रीय संगठन मंत्री पी.सूर्यनारायण ने कहा-आदिवासियों के हक में पूर्व सांसद स्वर्गीय उरांव द्वारा शुरू की गई यह लड़ाई अब निर्णायक मोड़ पर है। मंच से जुड़े 5 लाख से ज्यादा आदिवासी अपने अधिकार को लेकर छत्तीसगढ़ में धर्मांतरण को लेकर सख्त कानून की आवश्यकता है। ही दिल्ली में अपनी ताकत दिखाएंगे। इसके लिए हम देशभर में गांव-गांव जागरूकता अभियान भी चला रहे हैं।
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संविधान में आदिवासी परिभाषित ही नहीं
सूर्यनारायण कहते हैं-संविधान में आदिवासी शब्द परिभाषित ही नहीं है। इसमें अनुसूचित जाति यानी एससी के लिए कहा गया कि इस वर्ग के लोग यदि अपना धर्म बदलते हैं तो उन्हें अनुसूचित जनजाति वर्ग को दिए जाने वाले लाभ से वंचित किया जाए।
वह कहते हैं-यह विडंबना है कि ऐसे लोग अपनी सुविधा के हिसाब से दोनों श्रेणियों का लाभ उठाकर क्रीमिलेयर की श्रेणी में आ गए। मूल आदिवासी आज भी विकास की मुख्य धारा से दूर है। उसे सरकारी योजनाओं का लाभ ही नहीं मिला।
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धर्मांतरित को डि-लिस्टिंग करने की मांग
जनजाति सुरक्षा मंच धर्मांतरित आदिवासियों को एसटी सूची से हटाने यानी उन्हें डि-लिस्टिंग करने की मांग कर रहा है। मंच की इस मांग को एक वर्ग आदिवासी समाज में बिखराव पैदा करने के आरोप भी लगाते रहा। इसे लेकर केरल राज्य एवं अन्य बनाम चंद्रमोहन केस में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला दिया जाता है।
इसमें कहा गया-धर्मांतरण के बाद संबंधित व्यक्ति उस जनजाति का सदस्य रहा या नहीं,यह इस बात पर निर्भर करता है कि वह सामाजिक रूप से कमजोर है,क्या वह अब भी अपनी पुरानी जाति के रीति-रिवाजों व परंपराओं का पालन करता है।
एक प्रकार से यह फैसला आदिवासियों के हित में है,लेकिन इसकी गलत व्याख्या की जाती रही। सूर्यनारायण कहते हैं-धर्मांतरित होने वाला कोई भी व्यक्ति पिछली संस्कृति का पालन नहीं कर सकता।"
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सर्वाधिक ईसाई आदिवासी बाहुल्य जिलों में
2011 की जनगणना के अनुसार, मध्य प्रदेश में अनुसूचित जनजाति वर्ग के लोगों की संख्या करीब 1.53 करोड़ है। जो राज्य की कुल जनसंख्या का लगभग 21.1 प्रतिशत है। जबकि ईसाई धर्मावलंबियों की कुल संख्या लगभग 2.13 लाख बताई गई। इनमें से एक महत्वपूर्ण हिस्सा आदिवासी समुदाय से आता है। विशेष रूप से झाबुआ, अलीराजपुर और मंडला जैसे जिलों में। सिर्फ झाबुआ जिले में ही डेढ़ दशक पहले लगभग 35हजार कैथोलिक ईसाई चिन्हित किए गए थे। मंच का मानना है कि इनमें ज्यादातर धर्मांतरित हैं।
जनगणना में आदिवासी का कॉलम ही नहीं
सूर्यनारायण कहते हैं-देश जातिगत जनगणना की तैयारी कर रहा है। अब तक तो इसका फार्मेट ही तय नहीं। जिन राज्यों ने इस दिशा में पहल की वहां भी सिर्फ जातिगत सर्वेक्षण किया गया। जनगणना में भी आदिवासियों को सिर्फ हिंदू लिखा जाता है।
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