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भोपाल की सामाजिक कार्यकर्ता और वकील ने वैज्ञानिक तकनीक से राख को नष्ट करने की मांग की। उन्होंने जापान और जर्मनी जैसे देशों का उदाहरण देते हुए कहा कि इनके पास मरकरी युक्त राख को नष्ट करने की तकनीक है।
यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री के जहरीले कचरे को लेकर एक बार फिर चिंता गहराने लगी है। हाईकोर्ट में दायर जनहित याचिका में सनसनीखेज दावा किया गया है कि इस कचरे की राख में रेडियोएक्टिव यानी विकिरण पैदा करने वाले तत्व सक्रिय हैं, जो मिट्टी और पानी को दूषित कर सकते हैं और इसके गंभीर पर्यावरणीय और मानव स्वास्थ्य पर असर पड़ सकते हैं।
हाईकोर्ट ने दी मुख्य याचिका के साथ सुनवाई की मंजूरी
यह याचिका भोपाल निवासी वकील बीएल नागर और समाजसेवी साधना कार्णिक की ओर से दायर की गई थी, जिनकी पैरवी एडवोकेट ऋत्विक दीक्षित ने की। सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस संजीव सचदेवा और जस्टिस विनय सराफ की डिवीजन बेंच ने याचिका को गंभीरता से लेते हुए इसे पहले से लंबित मुख्य जनहित याचिका के साथ जोड़े जाने का आदेश दिया।
जापान-जर्मनी के पास है राख को नष्ट करने की तकनीक
याचिकाकर्ताओं की ओर से बताया गया कि यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री में पड़े 337 मीट्रिक टन जहरीले कचरे को पीथमपुर स्थित एक विशेष सुविधा केंद्र में नष्ट तो कर दिया गया है, लेकिन उससे 850 टन राख और अवशेष निकले हैं, जिनमें भारी मात्रा में मरकरी (पारा) और रेडियोएक्टिव तत्व हैं। चिंता की बात ये है कि मरकरी को नष्ट करने की तकनीक केवल जापान और जर्मनी जैसे कुछ देशों के पास ही उपलब्ध है।
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रेडियोएक्टिव राख को जमीन में दबाना भी है खतरा
याचिका में यह भी कहा गया है कि यह राख फिलहाल लैंडफिल सेल में दबाने की योजना है, लेकिन यदि उसमें रेडियोएक्टिव तत्व सक्रिय हैं, तो इससे आसपास की जमीन और जलस्रोत जहरीले हो सकते हैं। इससे न सिर्फ पर्यावरण को नुकसान होगा, बल्कि वहां के आसपास रहने वाले लोगों के स्वास्थ्य पर भी बुरा असर पड़ेगा।
सरकारी और निजी एक्सपर्ट्स में मतभेद
याचिकाकर्ताओं का कहना है कि राख को ठिकाने लगाने के लिए अभी तक विशेषज्ञों की राय में भी एकमत नहीं है। सरकारी और निजी विशेषज्ञों के मत अलग-अलग हैं, इसलिए इस प्रक्रिया को टालकर पहले वैज्ञानिक और तकनीकी रूप से अधिक सुरक्षित विकल्प ढूंढा जाना चाहिए।
5 पॉइंट्स में समझें पूरी स्टोरी👉 भोपाल की वकील और सामाजिक कार्यकर्ता ने वैज्ञानिक तकनीक से राख को नष्ट करने की मांग की है। 👉 याचिका में दावा किया गया है कि यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री की राख में मरकरी और रेडियोएक्टिव तत्व सक्रिय हैं, जो पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिए खतरनाक हो सकते हैं। 👉 राख को नष्ट करने की तकनीक जापान और जर्मनी के पास है, जो इस समस्या का समाधान कर सकते हैं। 👉 राख को लैंडफिल सेल में दबाने से आसपास की मिट्टी और जलस्रोत दूषित हो सकते हैं, जिससे स्वास्थ्य पर नकारात्मक असर पड़ेगा। 👉 हाईकोर्ट ने याचिका को गंभीर मानते हुए इसे पहले से लंबित मुख्य याचिका के साथ जोड़ा और 1 अगस्त 2025 को अगली सुनवाई तय की। |
जनहित याचिका के साथ होगी सुनवाई
फिलहाल हाईकोर्ट ने याचिका को गंभीर मानते हुए इसे पहले से लंबित मुख्य जनहित याचिका के साथ जोड़ा है। अगली सुनवाई 1 अगस्त 2025 को तय की गई है, जिसमें यह तय हो सकता है कि क्या केंद्र और राज्य सरकार इस राख के निपटारे को लेकर कोई नई और वैज्ञानिक पहल करेंगी या नहीं।
40 साल बीतने के बाद अभी बरकरार है खतरा
इस जनहित याचिका ने यूनियन कार्बाइड त्रासदी के 40 साल बाद एक बार फिर उस खतरे को सबके सामने ला खड़ा किया है, जो शायद अब भी मिटा नहीं है।बल्कि राख के रूप में अब भी ज़िंदा है। अब देखना होगा कि अदालत, सरकार और वैज्ञानिक संस्थाएं मिलकर इस गंभीर पर्यावरणीय संकट का समाधान किस तरह खोजती हैं।
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