मध्यप्रदेश की वनभूमि पर बढ़ता अतिक्रमण, विपक्ष ने सरकार पर लगाए गंभीर आरोप

मध्य प्रदेश में वनभूमि अतिक्रमण पर विपक्ष ने सरकार पर गंभीर आरोप लगाए हैं। उमंग सिंघार ने कहा कि राज्य सरकार जंगलों को बचाने में नाकाम रही है। उन्होंने भूमाफिया, उद्योगपतियों और कॉलोनाइजर्स को सरकारी संरक्षण देने का आरोप लगाया।

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Ramanand Tiwari
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Photograph: (THESOOTR)

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मध्य प्रदेश में वनभूमि पर अतिक्रमण का मुद्दा एक बार फिर गर्मा गया है। इस मामले में नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार ने सरकार पर गंभीर आरोप लगाए हैं। उन्होंने कहा कि राज्य जंगलों को बचाने में बुरी तरह विफल रहा है और हालात लगातार बिगड़ते जा रहे हैं।

भूमाफिया को संरक्षण, आदिवासियों पर कार्रवाई 

सिंघार का कहना है कि जंगलों पर अवैध कब्जे के पीछे भूमाफिया, बड़े उद्योगपति, कॉलोनाइजर और कमर्शियल प्रोजेक्ट्स की भूमिका है। उन्होंने आरोप लगाया कि इन गतिविधियों को राजनीतिक और सरकारी संरक्षण प्राप्त है।

सिंघार ने कहा कि जिन स्थानीय आदिवासियों को वनाधिकार अधिनियम में जमीन का अधिकार मिलना चाहिए, उन्हें ही अतिक्रमणकारी बताकर उजाड़ दिया जाता है, जबकि वास्तविक आरोपी बच निकलते हैं।

NGT की रिपोर्ट का हवाला, सरकार पर निशाना

उमंग सिंघार ने कहा कि मध्य प्रदेश वनभूमि अतिक्रमण में देश में पहले स्थान पर पहुंच चुका है। उन्होंने बताया कि स्वयं राज्य सरकार ने एनजीटी (NGT) को भेजी रिपोर्ट में स्वीकार किया है कि 5.46 लाख हेक्टेयर से अधिक वनभूमि पर अवैध कब्जा हो चुका है, जो प्रदेश की कुल वनभूमि का 7.17% है।

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राजधानी से इंदौर तक अतिक्रमण का नेटवर्क

सिंघार ने एनजीटी रिपोर्ट का हवाला देते हुए बताया कि इंदौर जिले में 680.599 हेक्टेयर और भोपाल में 5,929.156 हेक्टेयर वनभूमि पर अतिक्रमण दर्ज है। उन्होंने कहा कि जब राजधानी और आर्थिक राजधानी की यह स्थिति है, तो बाकी जिलों का हाल समझना मुश्किल नहीं है।

सबसे ज्यादा प्रभावित जिले

रिपोर्ट के अनुसार जिन जिलों में सबसे अधिक अतिक्रमण दर्ज हुआ है, वे हैं- छिंदवाड़ा, बड़वानी, खरगोन, बुरहनपुर और अलीराजपुर।
इन जिलों में भूमाफिया और अवैध खनन का दबाव लगातार बढ़ रहा है।

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चार साल में 40 हजार हेक्टेयर जंगल गायब

इंडिया स्टेट ऑफ फॉरेस्ट रिपोर्ट-2023 के अनुसार, 2019 से 2023 के बीच राज्य में 40,856 हेक्टेयर जंगल कम हुए हैं। अरुणाचल प्रदेश के बाद यह देश में सबसे बड़ा नुकसान है। सिंघार का आरोप है कि जंगलों के सिकुड़ने के पीछे बड़े उद्योगपतियों की खनन गतिविधियां, रिसॉर्ट निर्माण, प्रीमियम कॉलोनियां और अन्य कमर्शियल प्रोजेक्ट मुख्य कारण हैं।                            

बिना संरक्षण के लैंड-यूज में बदलाव संभव नहीं

नेता प्रतिपक्ष ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा कि केंद्र और राज्य सरकार की अनुमति के बिना वनभूमि का एक इंच भी लैंड-यूज नहीं बदला जा सकता। उनका कहना है कि यह तथ्य खुद साबित करता है कि बिना राजनीतिक संरक्षण के न जंगल काटे जा सकते हैं और न कब्जा किया जा सकता है।

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बीजेपी सरकार पर कुप्रबंधन का आरोप

उमंग सिंघार ने भोपाल नगर निगम की नई 50 करोड़ की इमारत में मीटिंग हॉल गायब होने का उदाहरण दिया। उन्होंने कहा कि बीजेपी राज में कुप्रबंधन और लापरवाही ही सबसे बड़ा विकास है।

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आदिवासियों पर एकतरफा कार्रवाई का आरोप

सिंघार के अनुसार जब भी विपक्ष या मीडिया जंगल अतिक्रमण का मुद्दा उठाता है प्रशासन कार्रवाई के नाम पर गरीब आदिवासियों को ही अतिक्रमणकारी घोषित कर देता है। जबकि उनके वनाधिकार के पट्टे वर्षों से पेंडिंग पड़े हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि बड़े उद्योगपतियों और कॉलोनाइजरों पर कार्रवाई न के बराबर होती है, क्योंकि उन्हें राजनीतिक संरक्षण प्राप्त है।

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