विभाजन विभीषिका दिवस नहीं है कोई ‘उत्सव’, HC ने जताई नाराजगी

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने विभाजन विभीषिका दिवस को उत्सव नहीं, बल्कि शहीदों की याद का दिन बताया। कांग्रेस नेता द्वारा दायर याचिका को कोर्ट ने निराधार मानते हुए खारिज कर दिया। कोर्ट ने याचिकाकर्ता को इस दिन को उत्सव के रूप में नहीं देखने की सलाह दी।

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Neel Tiwari
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Photograph: (THESOOTR)

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मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने सोमवार को एक जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान साफ कहा कि विभाजन विभीषिका दिवस किसी भी प्रकार का उत्सव नहीं है, बल्कि यह वह दिन है जब देश के विभाजन के दौरान अपनी जान गंवाने वाले लाखों लोगों और शहीदों को याद किया जाता है। अदालत ने स्पष्ट किया कि इस दिन के लिए जिला स्तरीय समिति का गठन करना बिल्कुल भी गलत नहीं है।

फेसबुक पोस्ट के खिलाफ कांग्रेस नेता की याचिका

जबलपुर जिला कांग्रेस कमेटी अध्यक्ष सौरभ नाटी शर्मा ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर दावा किया था कि जिला भाजपा अध्यक्ष शहडोल अमिता चपरा ने अपने फेसबुक अकाउंट पर एक पोस्ट डाली थी, जिसमें प्रदेश भाजपा अध्यक्ष हेमंत खंडेलवाल के निर्देश पर हर घर तिरंगा, तिरंगा यात्रा और विभाजन विभीषिका दिवस के आयोजन के लिए जिला स्तरीय समिति गठन की जानकारी दी गई थी। याचिकाकर्ता का तर्क था कि यह पोस्ट संविधान और भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 196 के विपरीत है।

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पहले की शिकायत, अब पहुंचे कोर्ट 

याचिकाकर्ता ने इस संबंध में कलेक्टर जबलपुर के माध्यम से राज्यपाल को अभ्यावेदन भेजा था, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई। इसके बाद मामला हाईकोर्ट पहुंचा। सुनवाई के दौरान राज्य शासन की ओर से अतिरिक्त महाधिवक्ता हरप्रीत सिंह रूपराह और पैनल अधिवक्ता आकाश मालपानी ने पक्ष रखा। आखिरकार इस मामले में कांग्रेस के नगर अध्यक्ष को कोई भी फायदा नहीं मिल पाया।

हाईकोर्ट ने की सख्त टिप्पणी

डिविजनल बेंच में जस्टिस संजीव सचदेवा और जस्टिस विनय सराफ ने सुनवाई करते हुए कहा कि विभाजन विभीषिका दिवस को ‘उत्सव’ मानना गलत है। यह दिन देश के इतिहास की त्रासदी और शहीदों की याद में मनाया जाता है। अदालत ने याचिका को “पूर्णतः निराधार” बताते हुए हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया और याचिकाकर्ता को समझाया कि इसे किसी उत्सव के तौर पर न देखा जाए।

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कोर्ट के सख्त रुख पर याचिका लेनी पड़ी वापस

हाईकोर्ट के स्पष्ट रुख के बाद याचिकाकर्ता ने खुद ही याचिका वापस लेने का अनुरोध किया, जिसे स्वीकार करते हुए कोर्ट ने उसे निरस्त कर दिया। इस तरह मामला याचिका की वापसी के साथ समाप्त हो गया।

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