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मध्‍य प्रदेश

वक्फ संशोधन अधिनियम 2025 को बताया काला कानून, पुलिस फोर्स की मौजूदगी में शांतिपूर्ण प्रदर्शन

वक्फ संशोधन अधिनियम 2025 को "काला कानून" बताते हुए प्रदर्शनकारियों ने राष्ट्रपति के नाम ज्ञापन सौंपा। भारी पुलिस बल की मौजूदगी में यह प्रदर्शन शांतिपूर्वक किया गया, जिसमें वक्फ अधिनियम के खिलाफ विरोध दर्ज किया गया।

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Neel Tiwari
13 Apr 2025 18:31 IST
एडिट 13 Apr 2025 20:46 IST

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protest against waqf bill

Photograph: (the sootr)

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JABALPUR. देशभर में मुस्लिम समुदाय की ओर से केंद्र सरकार द्वारा पारित वक्फ संशोधन अधिनियम, 2025 को लेकर गहरी नाराजगी व्यक्त की जा रही है। इसी क्रम में जबलपुर में मुस्लिम समाज के प्रतिनिधियों ने शनिवार को मंडीमदार टेकरी क्षेत्र में एक सभा का आयोजन कर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु के नाम एक ज्ञापन सौंपा। इस ज्ञापन के माध्यम से उन्होंने इस नए संशोधन अधिनियम को मुस्लिमों के धार्मिक और संवैधानिक अधिकारों पर सीधा हमला बताते हुए तत्काल प्रभाव से इसे रद्द करने की मांग की। यह विरोध कार्यक्रम ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के आवाहन पर आयोजित किया गया था, जिसमें बड़ी संख्या में शहर के मौलाना, मदरसा शिक्षक, सामाजिक कार्यकर्ता और मुस्लिम समाज के गणमान्य लोग शामिल हुए। इस विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व मुफ्ती-ए-आजम मध्य प्रदेश, मौलाना मोहम्मद मुशाहिद रजा कादरी सलामी बुरहानी ने किया।

ladli behna

ज्ञापन में प्रमुख आपत्तियां- सरकार का दखल, धार्मिक स्वतंत्रता का हनन

ज्ञापन में साफ तौर पर उल्लेख किया गया कि नया वक्फ संशोधन अधिनियम संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार), अनुच्छेद 25 (धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार), अनुच्छेद 26 (धार्मिक संस्थाओं के संचालन का अधिकार) और अनुच्छेद 29 (अल्पसंख्यक समुदाय की संस्कृति की रक्षा) का खुला उल्लंघन करता है।

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प्रमुख आपत्तियों में यह भी कहा गया कि वक्फ संपत्तियों से जुड़े विवादों की जांच अब जिला कलेक्टर या सरकार द्वारा नियुक्त एक नोडल अधिकारी करेगा, जो स्वयं सरकारी कर्मचारी होगा। ऐसे में किसी भी विवाद में निष्पक्ष निर्णय की उम्मीद करना बेमानी है क्योंकि अधिकारी सरकार के अधीन होगा और वक्फ संपत्ति अंततः सरकार के नियंत्रण में चली जाएगी। यह न केवल मुस्लिम समुदाय की धार्मिक संपत्तियों पर नियंत्रण का प्रयास है, बल्कि वक्फ की धार्मिक स्वायत्तता पर भी सीधा हमला है।

गैर-मुस्लिम सदस्य और अवैध कब्जाधारियों को लाभ का आरोप

आरोपों में अनुसार इस संशोधन में एक और विवादास्पद प्रावधान यह जोड़ा गया है कि वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिम सदस्यों को भी शामिल किया जाएगा। ज्ञापन में सवाल उठाया गया कि क्या किसी अन्य धर्म के धार्मिक बोर्ड में मुसलमानों को सदस्य बनाया जाता है? इस प्रकार का प्रावधान मुस्लिम समुदाय के धार्मिक मामलों में सीधी दखलअंदाजी माना गया है। साथ ही आरोपों के अनुसार नया संशोधन कहता है कि यदि कोई व्यक्ति पिछले 12 सालों से किसी वक्फ संपत्ति पर काबिज है, तो उसे उस संपत्ति का स्वामित्व मिल जाएगा, भले ही वह कब्जा अवैध ही क्यों न हो। यह प्रावधान न केवल वक्फ की करोड़ों की संपत्ति पर कब्जा जमाए बैठे लोगों को वैधता प्रदान करता है, बल्कि वक्फ बोर्ड की स्थिति और अधिकार को कमजोर भी करता है।

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मस्जिद, मदरसे, कब्रिस्तान और दरगाहें खतरे में

मुस्लिम प्रतिनिधियों ने यह भी आरोप लगाया कि यह कानून केवल संपत्ति का प्रशासनिक मुद्दा नहीं है, बल्कि इसका असली उद्देश्य मस्जिदों, मदरसों, कब्रिस्तानों और दरगाहों जैसी पवित्र जगहों पर सरकार का नियंत्रण स्थापित करना है। प्रदर्शनकारियों का कहना था कि यह कानून वक्फ की संपत्तियों को संरक्षित करने या उनके राजस्व में वृद्धि के लिए नहीं लाया गया है, बल्कि इसे एक खास राजनीतिक विचारधारा के तहत पारित किया गया है जो देश में धार्मिक स्वतंत्रता और अल्पसंख्यकों की संवैधानिक सुरक्षा को कमजोर करता है।

मौके पर भारी पुलिस बल तैनात, शांतिपूर्ण रहा माहौल

इस प्रदर्शन को लेकर प्रशासन पूरी तरह सतर्क था। जिला कलेक्टर कार्यालय के बाहर वज्र वाहन, वाटर कैनन और भारी संख्या में पुलिस बल तैनात किया गया था। प्रदर्शनकारियों और प्रशासन के बीच किसी प्रकार की टकराव की स्थिति न हो, इसके लिए पुलिस अधिकारियों की विशेष निगरानी में ज्ञापन सौंपने की प्रक्रिया को अंजाम दिया गया। हालांकि प्रदर्शन में भारी भीड़ मौजूद थी, लेकिन पूरा प्रदर्शन शांतिपूर्ण रहा। जबलपुर पुलिस ने किसी भी अप्रिय स्थिति से निपटने के लिए पूरी तैयारी की हुई थी और जबलपुर पुलिस के बल के साथ रैपिड एक्शन फोर्स भी मौके पर तैनात थी। प्रदर्शनकारियों ने संगठित रूप से ज्ञापन सौंपकर अपनी मांगों को प्रस्तुत किया।

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तीसरे नंबर पर देश में सबसे ज्यादा संपत्ति

ज्ञापन में यह भी उल्लेख किया गया कि वक्फ के पास देशभर में करीब 9 लाख एकड़ जमीन है, जो कि रेलवे और डिफेंस के बाद भारत में तीसरी सबसे बड़ी जमीन की हैसियत रखती है। यह सारी संपत्ति मुस्लिम समाज ने अल्लाह की राह में धार्मिक और सामाजिक कल्याण के लिए वक्फ की थी, जिसका उपयोग मस्जिदों, मदरसों, अनाथालयों, अस्पतालों और कब्रिस्तानों के निर्माण और देखरेख में होता है। नए अधिनियम के जरिए इस संपत्ति पर सरकारी नियंत्रण स्थापित कर उसे आमदनी का साधन बनाने की कोशिश की जा रही है, जो धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत और अल्पसंख्यकों की आत्मनिर्भरता के खिलाफ है।

एहतियात के साथ करेंगे प्रदर्शन 

प्रदर्शन में शामिल हुए लोगों को हीरा पहलवान ने यह भी कहा कि हम झुकेंगे नहीं, लेकिन एहतियात बरतना जरूरी है। नेता आएंगे आपसे कहेंगे कि सड़कों पर उतरे और ज्ञापन सौंपे, लेकिन हमें यह नहीं करना है। उन्होंने बताया कि अन्य जगहों पर हुए प्रदर्शनों में कई जगह ऐसा हुआ है कि केवल घर से बाहर निकले हुए नौजवानों पर मामले कायम कर दिए गए हैं। सरकार की नीयत पर शक जताते हुए उन्होंने सभी से यह निवेदन किया है कि हम प्रदर्शन तो करेंगे, लेकिन वह शांतिपूर्ण ही रहेगा।

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शांतिपूर्ण विरोध से सरकार को चेतावनी

ज्ञापन सौंपने के बाद मुस्लिम समाज के प्रतिनिधियों ने स्पष्ट किया कि यह प्रदर्शन केवल शुरुआत है। यदि केंद्र सरकार इस काले कानून को वापस नहीं लेती, तो भविष्य में पूरे देशभर में बड़े स्तर पर आंदोलन किया जाएगा। उन्होंने कहा कि भारत का संविधान हर नागरिक को अपने धर्म का पालन और उसके धार्मिक संस्थानों को स्वतंत्र रूप से चलाने की अनुमति देता है, और इस अधिकार की रक्षा के लिए वे हर लोकतांत्रिक रास्ता अपनाएंगे।

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