मप्र वेयर हाउसिंग के नवाचार ने लगाई सरकार को करोड़ों की चपत

मध्य प्रदेश में किसान कड़ी मेहनत के बाद अनाज पैदा कर इसका एक-एक दाना सहेजता है। वहीं प्रशासनिक अमले की लापरवाही से हर साल करोड़ों रुपए का अनाज बर्बाद कर दिया जाता है।

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Ravi Awasthi
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              दो साल बाद तय होगी अफसरों की जिम्मेदारी


भोपाल। जबलपुर के मौजूदा कलेक्टर दीपक सक्सेना अपने नवाचारों को लेकर चर्चा में हैं,लेकिन साल 2021-22 में मध्य प्रदेश वेयरहाउसिंग एंड लॉजिस्टिक्स कॉर्पोरेशन के एमडी रहते उनका एक नवाचार सरकार को करीब 140 करोड़ रुपए की चपत लगा गया। कार्पोरेशन अब इसे लेकर न्यायालयीन लड़ाई लड़ रहा है। इस काम पर उसे अलग से रकम खर्च करनी पड़ रही है। इसके बाद निगम ने नवाचार से तौबा कर ली है। वह अब पुरानी व्यवस्था पर ही काम करेगा। 

मप्र के अनेक कार्पोरेशन इनमें व्याप्त भ्रष्टाचार को लेकर बदनाम हैं। मध्य प्रदेश वेयरहाउसिंग एंड लॉजिस्टिक्स कॉर्पोरेशन भी इनमें एक है। यह सरकार द्वारा खरीदे गए अनाज के भंडारण का काम करता है। इसके लिए उसके स्वयं के करीब 16 सौ गोदाम व इतने ही चबूतरे भी हैं। गोदाम भरने पर चबूतरों का उपयोग कैपिंग पद्धति से खुले में अनाज रखने के लिए होता है। 

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करोड़ों की धान का रखरखाव निजी हाथों में सौंपा

निगम निजी गोदामों की मदद भी ले रहा है,लेकिन इनमें अधिकांश में सिर्फ गेहूं का ही भंडारण होता है। इनमें कई निजी गोदाम निगम के अधिकारियों के भी बताए जाते हैं। साल 2021-22 में गेहूं के अलावा धान भंडारण को लेकर भी दबाव बना तो निगम ने नवाचार करते हुए अंतर्राज्यीय निविदाएं आमंत्रित की।

दरअसल,धान को सहेजना,गेहूं की तुलना में अधिक जोखिमभरा होता है। समय पर इसकी मिलिंग न हो तो इसके खराब होने,वजन कम होने का जोखिम अधिक होता है। इसे देखते हुए निगम ने पहली बार अंतर्राज्यीय निविदाएं आमंत्रित की।  बाद में गुजरात की एक फर्म गो ग्रीन को दो साल के लिए रीवा व जबलपुर संभाग में धान भंडारण व रखरखाव का जिम्मा सौंपा गया। 

करोड़ों की धान हुई बर्बाद तब जागा निगम

निजी फर्म गो ग्रीन को रीवा व जबलपुर संभाग में खरीदी गई धान के रखरखाव का जिम्मा सौंपा गया। बाहरी फर्म के यहां अपने कोई ज्यादा गोदाम नहीं है। इसके चलते उसने जबलपुर के हृदय नगर गांव में एक पहाड़ी पर ओपन सेट बनाकर धान का भंडारण कर डाला।

बाद में यहां करीब ढाई करोड़ रुपए की धान गायब पाई गई। इसे लेकर निगम की ओर से जबलपुर के ही मढ़ोताल थाने में फर्म के कर्ताधर्ताओं के खिलाफ अमानत में खयानत का मामला दर्ज कराया गया। 

एक अन्य प्रकरण गोसलपुर थाने में दर्ज हुआ। दरअसल,फर्म ने हृदयपुर ही नहीं जिले के बरखेड़ा, भरतपुर, बंदरकोला, तिलसनी, बीजापुरी और दर्शनी में भी धान के रखरखाव व इसे खुर्द बुर्द करने का यही तरीका अपनाया।

इसी तरह की गड़बड़ी बालाघाट के परसवाड़ा व उगवा में भी पाए जाने पर निगम को करीब 17 करोड़ की चपत लगी। कहीं धान उचित रखरखाव नहीं होने से बर्बाद हो गई तो कहीं इसकी आड़ में अच्छी धान भी बेच दी गई। 

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नवाचार से लगी 140 करोड़ की चपत

सूत्रों के मुताबिक, बाहरी कंपनी को नवाजे जाने वाले इस नवाचार में निगम को करीब 140 करोड़ रुपए की चपत लगी। दरअसल,जबलपुर,बालाघाट ही नहीं  अन्य जिलों में ही भी धान इसी तरह बर्बाद हुई।

खास बात यह कि फर्म की खामियां लगातार सामने आने के बावजूद रीवा व जबलपुर के क्षेत्रीय कार्यालयों ने फर्म को करीब छह करोड़ रुपए का भुगतान भी कर दिया। इधर,लगातार बदनामी होते देख निगम को मजबूरन  ग्रीन को ब्लैक​ लिस्ट कर उसका बकाया भुगतान रोकना पड़ा।  

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अब आर्बिटेशन में सुनवाई

निगम की कार्यवाही के खिलाफ फर्म ने उच्च न्यायालय में दस्तक दी। यहां से मामला सुनवाई के लिए आर्बिटेशन को सौंप दिया गया। एक सेवानिवृत न्यायाधीश आरसी मिश्रा इस प्रकरण के सुनवाई कर रहे हैं। प्रकरण में 15 बार सुनवाई हो चुकी है। इस न्यायालयीन लड़ाई में भी निगम को वकीलों की फीस व अन्य कामों पर बड़ी रकम खर्च करनी पड़ रही है। प्रकरण में फर्म के अपने तर्क हैं कि उसे समय पर सुरक्षा सामग्री उपलब्ध नहीं कराई गई। 

जल्द जिम्मेदारी तय कर होगी जांच:एमडी

खास बात सरकार को करोड़ों रुपए की चपत लगाने वाले इस केस में अब तक निगम के किसी अधिकारी की जिम्मेदारी तय नहीं की गई।बल्कि गो ग्रीन को नवाजे जाने के दौरान वाणिज्य सेक्शन में प्रमुख पद पर रहे ओमप्रकाश कुशवाहा को सेवानिवृत होने पर उन्हें पुन: संविदा नियुक्ति दे दी गई।

बताया जाता है कि कुशवाहा की पुनर्नियुक्ति के बाद इस मामले में लीपापोती भी शुरू हो गई है। इस संबंध में निगम के मौजूदा महाप्रबंधक अनुराग वर्मा ने कहा कि जल्द ही संबंधितों की जिम्मेदारी तय कर विभागीयस्तर पर भी इसकी जांच की जाएगी। 

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