जबलपुर में भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्त कार्रवाई करते हुए लोकायुक्त पुलिस ने एक कार्यवाही को अंजाम दिया है। विजयनगर थाना में पदस्थ महिला प्रधान आरक्षक पिंकी रजक पर न्यायालय में केस प्रस्तुत करने के एवज में 10 हजार रुपए की रिश्वत मांगने का आरोप है। लोकायुक्त ने इस शिकायत का ऑडियो-वीडियो सत्यापन किया, जिसमें रिश्वत की मांग की पुष्टि होने के बाद भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 (संशोधित 2018) की धारा 7 के तहत मामला दर्ज किया गया। लोकायुक्त की इस कार्रवाई के बाद पुलिस महकमे में हड़कंप मच गया है, क्योंकि मामला सीधे तौर पर कानून-व्यवस्था से जुड़े एक पुलिसकर्मी से जुड़ा है, जो भ्रष्टाचार में लिप्त पाई गई।
कोर्ट में केस पहुंचाने के लिए मांगी थी रिश्वत
यह मामला तब उजागर हुआ जब अधिवक्ता स्वप्निल सराफ ने लोकायुक्त कार्यालय में शिकायत दर्ज कराई। सराफ ने बताया कि उनके मौसेरे भाई राहुल सोनी के खिलाफ विजयनगर थाना में अपराध क्रमांक 515/2024 के तहत मामला दर्ज है, जिसकी विवेचना प्रधान आरक्षक पिंकी रजक कर रही थीं। जब सराफ अपने भाई के केस की जानकारी लेने थाना पहुंचे, तो महिला प्रधान आरक्षक ने उन्हें स्पष्ट रूप से बताया कि यदि वे चाहते हैं कि केस को जल्द न्यायालय में प्रस्तुत किया जाए, तो उन्हें इसके बदले में 10 हजार रुपए की रकम चुकानी होगी। अधिवक्ता होने के नाते स्वप्निल सराफ को यह पता था कि यह पूरी तरह से गैर-कानूनी है, इसलिए उन्होंने बिना देर किए लोकायुक्त पुलिस को इस मामले की सूचना दी।
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ऑडियो रिकॉर्डिंग के बाद लोकयुक्त ने की कार्रवाई
लोकायुक्त पुलिस ने शिकायत मिलने के बाद तुरंत कार्रवाई करते हुए सत्यापन की योजना बनाई। ट्रैप ऑपरेशन के तहत स्वप्निल सराफ को रिकॉर्डिंग डिवाइस देकर महिला प्रधान आरक्षक से बातचीत करने भेजा गया, ताकि रिश्वत की मांग को सबूत के तौर पर रिकॉर्ड किया जा सके। इस बातचीत के दौरान पिंकी रजक ने अपनी 10 हजार रुपए की पहली मांग को घटाकर 5,000 रुपए कर दिया और साफ-साफ कहा कि केस को जल्दी प्रस्तुत करने के लिए यह रकम जरूरी है। उनकी यह बातचीत ऑडियो रिकॉर्डिंग में दर्ज हो गई, जो इस मामले में सबसे मजबूत सबूत साबित हुई। जब लोकायुक्त ने इन रिकॉर्डिंग्स की जांच की और पाया कि रिश्वत की मांग स्पष्ट थी, तो उन्होंने महिला प्रधान आरक्षक के खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 7 के तहत मामला दर्ज कर लिया।
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पुलिस महकमे में मचा हड़कंप
लोकायुक्त की इस कार्रवाई के बाद पुलिस महकमे में खलबली मच गई है। यह घटना इसलिए भी चौंकाने वाली है क्योंकि महिला प्रधान आरक्षक को न्याय की रक्षा करने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी, लेकिन उन्होंने खुद भ्रष्टाचार का सहारा लिया। जबलपुर पुलिस विभाग पहले से ही कई विवादों में घिरा रहा है, और अब इस नए मामले ने पुलिस की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े कर दिए हैं। लोकायुक्त की इस कार्रवाई से साफ है कि अब रिश्वतखोर पुलिसकर्मी बच नहीं सकते, चाहे वे किसी भी पद पर हों। इस पूरे मामले में पुलिस विभाग की छवि को भी नुकसान पहुंचा है, और अब यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या विभागीय स्तर पर भी महिला प्रधान आरक्षक के खिलाफ कोई सख्त कार्रवाई होती है या नहीं।
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क्या रिश्वतखोरी पर लग पाएगी लगाम?
यह कोई पहला मामला नहीं है जब जबलपुर पुलिस विभाग का कोई कर्मचारी रिश्वत लेते हुए पकड़ा गया हो। इससे पहले भी कई पुलिसकर्मी लोकायुक्त के शिकंजे में आ चुके हैं, लेकिन इसके बावजूद भ्रष्टाचार पर पूरी तरह से लगाम नहीं लग पाई है। सवाल यह उठता है कि क्या सिर्फ ऐसे मामलों पर कार्रवाई करना ही काफी है, या फिर पुलिस विभाग के भीतर बड़े सुधार की जरूरत है? क्या रिश्वत मांगने वाले पुलिसकर्मियों के खिलाफ सख्त सजा देने की कोई नई नीति बनाई जाएगी? क्योंकि जब तक सख्त विभागीय कार्रवाई और दंडात्मक प्रावधान लागू नहीं किए जाते, तब तक ऐसे मामलों की पुनरावृत्ति होती रहेगी।
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