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Photograph: (the sootr)
राजस्थान के भीलवाड़ा जिले के मालासेरी गांव में एक 12 साल के मासूम हंसराज का अंतिम संस्कार बिना किसी ठोस व्यवस्था के किया गया। यह घटना इस बात का उदाहरण बन गई है कि विकास की तस्वीर केवल कागजों तक सीमित है, जबकि जमीनी हकीकत इससे बहुत दूर है। भारी बारिश में जब श्मशान घाट की खराब स्थिति के कारण अंतिम संस्कार के लिए कोई मदद नहीं मिल रही थी, तो परिवार और ग्रामीणों को टायर और लोहे की चद्दरों का सहारा लेना पड़ा।
अंतिम संस्कार में जुगाड़ की कहानी
शनिवार शाम को हंसराज प्रजापत की मौत के बाद जब उसकी चिता जलाने का समय आया, तो बारिश ने इस प्रक्रिया को बेहद कठिन बना दिया। श्मशान घाट की बदहाली के कारण परिवार और गांव के लोग मजबूर हो गए। तीन घंटे तक बारिश में भीगते हुए अंतिम संस्कार की प्रक्रिया पूरी की गई, लेकिन इस दौरान प्रशासन का कोई भी प्रतिनिधि नहीं दिखा। यह केवल एक बच्चे की मौत का नहीं, बल्कि प्रशासनिक नाकामी का सबूत था।
प्रशासन पर उठे सवाल
यह घटना आसींद और मालासेरी जैसे ग्रामीण इलाकों की बुनियादी सुविधाओं की नाकामी की कहानी को बयां करती है। श्मशान घाट जैसी मूलभूत सुविधाओं का अभाव दिखाता है कि विकास केवल शहरी इलाकों तक ही सीमित रह गया है। क्या यह स्वीकार्य है कि देश के हजारों गांवों में श्मशान जैसी सुविधा न हो और लोग ऐसे जुगाड़के सहारे अंतिम संस्कार करें?
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सरपंच का बयान और प्रशासन की चुप्पी
मालासेरी गांव पंचायत की सरपंच ममता देवी ने बताया कि श्मशान घाट में टीन शेड लगाने के लिए प्रस्ताव भेजा गया था, लेकिन वह प्रस्ताव अब तक स्वीकृत नहीं हुआ। विकास अधिकारी के पास यह प्रस्ताव अटका हुआ है और इस पर कोई निर्णय नहीं लिया गया है। यह घटना प्रशासन की निष्क्रियता और ग्रामीण क्षेत्रों की अव्यवस्था की पूरी तस्वीर पेश करती है।
क्या यह घटना विकास के दावों की पोल खोलती है?
यह घटना सिर्फ भीलवाड़ा या आसींद तक सीमित नहीं है। देश भर के कई गांवों में श्मशान जैसी जरूरी सुविधाओं का अभाव है। यह घटना सवाल खड़ा करती है कि क्या विकास का मतलब सिर्फ शहरी चमक-धमक से है, जबकि ग्रामीण इलाकों की जरूरतें नजरअंदाज की जा रही हैं।
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