पारिस्थितिकी संतुलन : केवलादेव से मुकुंदरा और रामगढ़ भेजे जाएंगे चीतल, जैव विविधता को दिया जाएगा बढ़ावा

पारिस्थितिकी संतुलन को ध्यान में रखते हुए राजस्थान के वन्यजीव संरक्षण के क्षेत्र में महत्वपूर्ण कदम। केवलादेव से मुकुंदरा और रामगढ़ टाइगर रिजर्व में 500 चीतल भेजे जाएंगे। सर्दियों में दो बार में पूरी की जाएगी प्रक्रिया।

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Amit Baijnath Garg
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Photograph: (the sootr)

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Bharatpur. राजस्थान में वन्यजीव संरक्षण के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए भरतपुर के केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान (केवलादेव घना पक्षी विहार) से चीतल (स्पॉटेड डियर) को मुकुंदरा हिल्स टाइगर रिजर्व और रामगढ़ विषधारी टाइगर रिजर्व में स्थानांतरित करने की प्रक्रिया को फिर से शुरू किया जाएगा। इस कार्य के तहत कुल 500 चीतल को 250-250 के समूह में भेजा जाएगा, ताकि पर्यावरण पर पारिस्थितिक दबाव कम किया जा सके और जैव विविधता को बढ़ावा दिया जा सके।

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बढ़ती चीतल आबादी का दबाव

यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान में पिछले कुछ वर्षों में चीतल की संख्या तेजी से बढ़ी है। यहां लगभग 2500 चीतल हैं, जो पार्क की वहन क्षमता से कहीं अधिक हैं। इस अत्यधिक आबादी के कारण घास के मैदान, जल स्रोत और झाड़ियों पर भारी दबाव पड़ रहा है। चीतल के शाकाहारी होने के कारण इनकी चराई से वनस्पति का अत्यधिक दोहन हो रहा है, जिससे जैव विविधता, मिट्टी की उर्वरता और जलधारण क्षमता पर प्रतिकूल असर पड़ रहा है।

संतुलन बनाए रखने की आवश्यकता

इस स्थानांतरण का उद्देश्य केवलादेव में पारिस्थितिक संतुलन बनाए रखना है और चीतल के शिकारियों, जैसे बाघों और अन्य मांसाहारी जीवों के लिए एक मजबूत शिकार आधार प्रदान करना है। इससे घना पार्क का इकोसिस्टम भी स्थिर रहेगा और पक्षियों के लिए अनुकूल वातावरण बनाए रखने में मदद मिलेगी।

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क्या है बोमा तकनीक?

बोमा तकनीक एक वैज्ञानिक और मानवीय पद्धति है, जिसका उपयोग जानवरों को सुरक्षित रूप से स्थानांतरित करने के लिए किया जाता है। इस तकनीक में जानवरों को एक बड़े घेरे (बोमा) में लाकर अस्थायी बाड़े में रखा जाता है, जहां उनकी स्वास्थ्य जांच की जाती है और फिर उन्हें नए स्थान पर भेजा जाता है। यह प्रक्रिया दक्षिण अफ्रीका से आयात की गई है और इसका पहले भी सफलतापूर्वक इस्तेमाल किया गया है।

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अब तक हुए स्थानांतरण के आंकड़े

इससे पहले, 543 चीतल सफलतापूर्वक मुकुंदरा और रामगढ़ टाइगर रिजर्व में स्थानांतरित किए गए हैं। मुकुंदरा में 400 चीतल और रामगढ़ विषधारी में 143 चीतल स्थानांतरित किए गए थे। इन चीतलों ने नए पर्यावास में अच्छी तरह से समायोजन किया और वहां की जैव विविधता को समृद्ध किया।

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सर्दियों में स्थानांतरण की प्रक्रिया

सर्दियों में स्थानांतरण करना आदर्श माना जाता है, क्योंकि इस मौसम में तापमान मध्यम रहता है और गर्मी या लू का खतरा नहीं होता। इसके अलावा, मानसून के बाद जंगलों में हरियाली और भोजन की प्रचुरता होती है, जो नए आए चीतलों के लिए अनुकूल है। बरसात में दलदली भूमि और फिसलन से स्थानांतरण की प्रक्रिया जोखिमपूर्ण हो जाती है।

टाइगर प्रोजेक्ट को मिलेगी नई गति

विशेषज्ञों का मानना है कि इस प्रकार के प्रयास भारत के टाइगर प्रोजेक्ट को और सफल बनाएंगे। इससे केवल वन्यजीवों के संरक्षण में मदद नहीं मिलेगी, बल्कि यह जैव विविधता के संरक्षण में भी मील का पत्थर साबित होगा।

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मुख्य बिंदु

  • चीतल की अत्यधिक आबादी के कारण केवलादेव में पारिस्थितिक दबाव बढ़ गया है, जिसके चलते केवलादेव से मुकुंदरा और रामगढ़ भेजे जाएंगे चीतल। पारिस्थितिकी संतुलन बनाएंगे।
  • बोमा तकनीक एक वैज्ञानिक और मानवीय पद्धति है, जिसमें जानवरों को एक घेरे में लाकर अस्थायी बाड़े में रखा जाता है और फिर उन्हें नए स्थान पर सुरक्षित रूप से स्थानांतरित किया जाता है।
  • इससे पहले भी 543 चीतल सफलतापूर्वक मुकुंदरा और रामगढ़ टाइगर रिजर्व में स्थानांतरित किए गए हैं, जो अब नए पर्यावास में अच्छे से समायोजित हो चुके हैं।
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