/sootr/media/media_files/2025/10/02/child-2025-10-02-18-52-47.jpg)
राजस्थान के उदयपुर और उसके आस-पास के आदिवासी अंचल में एक भयावह कुचक्र चल रहा है, जिसमें गरीब परिवार अपने बच्चों को गिरवी रखते हैं। 8 से 12 साल के बच्चों को 20,000-25,000 रुपए में गड़रियों (चरवाहों) के पास एक साल के लिए गिरवी रखा जाता है।
वहीं अधिकतम 40-45 हजार रुपए में बच्चे बेचे भी जा रहे हैं। इससे बच्चे न केवल शोषण का शिकार होते हैं, बल्कि उन्हें प्रतिदिन 30-35 किलोमीटर तक पैदल भेड़ों के रेवड़ के साथ चलाया जाता है। न ही उन्हें भरपूर खाना मिलता है और न ही आराम। इस मामले पर दैनिक राजस्थान पत्रिका में पत्रकार मोहम्मद इलियास की रिपोर्ट भी प्रकाशित हुई है।
बच्चों को गिरवी रखने का कुचक्र
गड़रिये बच्चों को गिरवी रखने के बाद उन्हें बंधुआ बाल श्रमिक बना कर शोषण करते हैं। यह बच्चों का शारीरिक और मानसिक शोषण है। बच्चों के पास कोई अधिकार नहीं होते और उनका शोषण किया जाता है। अगर बच्चे बीमार हो जाते हैं, तो उन्हें वही छोड़ दिया जाता है। नाबालिगों से बंधुआ मजदूरी का यह कुचक्र चिंताजनक है।
समाज पर असर
बंधुआ बाल श्रम न केवल बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ है, बल्कि यह कानूनी रूप से भी गंभीर अपराध है। ऐसे अपराधी तत्वों को कानून के तहत कड़ी सजा मिलनी चाहिए। बच्चों के शोषण को रोकने के लिए आवश्यक है कि सख्त कार्रवाई की जाए और दोषियों को सजा दिलाई जाए।
डॉ. शैलेन्द्र पण्ड्या (बाल अधिकार विशेषज्ञ और पूर्व सदस्य, राजस्थान बाल आयोग) ने इस कुप्रथा को समाप्त करने के लिए कड़ी कार्रवाई की आवश्यकता पर जोर दिया है। उनका मानना है कि बंधुआ बाल श्रमिक की स्थिति में आने वाले बच्चों को तुरंत मुक्ति दिलाना आवश्यक है।
बंधुआ श्रमिकों को छुड़ाने के प्रयास
मध्यप्रदेश की इंदौर पुलिस और एक स्थानीय संस्था ने हाल ही में गड़रियों से आठ बच्चों को छुड़वाया। ये बच्चे उदयपुर, बांसवाड़ा, डूंगरपुर, प्रतापगढ़ और सिरोही जैसे क्षेत्रों के थे। बच्चों को छुड़वाने के बाद, उन्हें सीडब्ल्यूसी (Child Welfare Committee) के समक्ष पेश किया गया और उनके माता-पिता को पाबंद कर उन्हें सुपुर्द किया गया।
इसके अलावा, गुजरात से दो बच्चों को छुड़वाया गया और हाल ही में दो और बच्चों को प्रतापगढ़ और सलूम्बर क्षेत्र से मुक्त किया गया। इन बच्चों को पुनर्वास और सरकारी सहायता प्रदान की गई।
ये खबरें भी पढ़ें
राजस्थान में पति-पत्नी छाप रहे थे नकली नोट, चंडीगढ़ और झालावाड़ पुलिस ने ऐसे दबोचा
राजस्थान में नि:शुल्क दवा योजना पर बार-बार उठ रहे सवाल : पांच साल में 795 सैंपल फेल
मुक्ति प्रमाण पत्र और पुनर्वास
जब बच्चों को बंधुआ मजदूरी से मुक्त किया जाता है, तो एडीएम (Additional District Magistrate) से मुक्ति प्रमाण पत्र लिया जाता है। यह प्रमाण पत्र बच्चों को बंधुआ श्रमिक के रूप में मुक्त घोषित करता है और उन्हें सरकारी सहायता प्राप्त करने का अधिकार देता है। इस प्रक्रिया के बाद, बच्चों को सरकार से 30,000 रुपए तक की अंतरिम राहत मिलती है और पुनर्वास के लिए 2.70 लाख रुपए तक की अतिरिक्त सहायता भी दी जाती है।
गड़रिये रखते हैं बच्चों को गिरवी
गड़रिये बच्चों को गिरवी रखने के लिए परिजनों से एडवांस राशि देते हैं। इसके बाद स्थानीय आदिवासी बिचौलिए कमीशन लेते हैं। इस प्रक्रिया को आदिवासी समुदाय में आम बोलचाल में "हाली" भी कहा जाता है।
- 1 साल के लिए बच्चों को 20,000-25,000 में रखा जाता है।
- बच्चों की आयु: 8-12 साल के बीच।
- बच्चों को रोजाना 30-35 किलोमीटर पैदल चलाया जाता है।
- प्रभावित जिले: पाली, उदयपुर, डूंगरपुर, बांसवाड़ा, प्रतापगढ़।
कड़े कदम उठाने की आवश्यकता
बच्चों के इस शोषण को रोकने के लिए सख्त कानूनी कदम उठाने की आवश्यकता है। यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि ऐसे कृत्य करने वालों को कड़ी सजा मिले, ताकि यह कुप्रथा समाप्त हो सके और बच्चों का बचपन सुरक्षित रहे। सरकार और पुलिस को इस मुद्दे पर और गंभीरता से काम करने की जरूरत है।
ये खबरें भी पढ़ें
एनसीआरबी रिपोर्ट 2023 : राजस्थान में नकली नोट के मामलों में बढ़ोतरी, दिल्ली के बाद दूसरा स्थान