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Photograph: (TheSootr)
राजस्थान (Rajasthan) के जयपुर में स्थित देश का एकमात्र हाथीगांव (Elephant Village) इन दिनों मुश्किलों का सामना कर रहा है। यहां से पिछले तीन-चार सालों में करीब दो दर्जन हाथियों को गुजरात भेजा गया था, जो अब तक वापस नहीं लौटे हैं। यह मामला सिर्फ एक हाथी के परिवहन का नहीं, बल्कि वन विभाग की लापरवाही और गलतियों का भी है। इन हाथियों को धार्मिक अनुष्ठान के नाम पर गुजरात भेजा गया था।
मौजूदा स्थिति यह है कि हाथी गांव, जो पहले हाथियों के संरक्षण और पर्यटन के लिए प्रसिद्ध था, अब अपनी पहचान खोने के कगार पर है। यह स्थिति वन्यजीव विशेषज्ञों और पर्यावरण कार्यकर्ताओं के लिए चिंता का विषय बन चुकी है।
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हाथी गांव का इतिहास और उद्देश्य
हाथी गांव की स्थापना 2010 में राजस्थान सरकार (Rajasthan Government) ने की थी। इसका उद्देश्य था हाथियों के संरक्षण (Elephant Conservation) और उनके साथ जुड़े पर्यावरणीय परिवहन को प्रोत्साहित करना। हाथी गांव में हाथियों के लिए विशेष थान, महावतों के लिए मकान, निगरानी के लिए चौकी और सफारी ट्रैक जैसी सुविधाएं बनाई गई थीं। शुरू में यहां 110 हाथी थे, लेकिन अब इनकी संख्या घटकर सिर्फ 76 रह गई है।
इस दौरान, कई हाथी गुजरात भेजे गए, जिनमें से अधिकांश की परिवहन स्वीकृति की अवधि पूरी हो चुकी है, और ये अब भी वापस नहीं लौटे हैं। इससे यह सवाल उठता है कि हाथीगांव का उद्देश्य क्या था और वन विभाग ने इस पूरे मामले में क्या कार्रवाई की है?
एक हाथी मालिक ने बताया कि जो हाथी गुजरात भेजे गए थे, उनमें से 60 प्रतिशत से ज्यादा की परिवहन स्वीकृति की अवधि समाप्त हो चुकी है, फिर भी इनमें से कोई हाथी वापस नहीं आया है। इसके पीछे का कारण यह बताया गया कि इन हाथियों को झूठ बोलकर गुजरात भेजा गया और वहां इनकी कीमत 50 से 70 लाख रुपए तक में बेच दी गई।
हाथियों के परिवहन स्वीकृति की मियाद और लापरवाही
वन विभाग (Forest Department) ने हाथियों के परिवहन की मंजूरी महज दो से तीन साल की दी थी, लेकिन इसके बाद इन्हें वापस भेजने में कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए। कुछ हाथियों का अवैध परिवहन (Illegal Transport) भी किया गया, जिसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में मामला लंबित है। हालांकि, वन विभाग ने न तो इस मामले की निगरानी (Monitoring) की है और न ही किसी हाथी मालिक (Elephant Owner) के खिलाफ कोई कार्रवाई की है।
वन्यजीव विशेषज्ञों का कहना है कि यह साफ दिखाता है कि वन विभाग की ओर से लापरवाही (Negligence) बरती जा रही है, जबकि अवैध परिवहन के मामलों को लेकर न्यायालय में कार्रवाई की प्रतीक्षा की जा रही है।
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हाथी गांव क्या है?
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हाथियों की चोरी और अवैध खरीद-फरोख्त
हाथी मालिकों (Elephant Owners) द्वारा हाथियों को गुजरात भेजने के बाद से इनकी चोरी और अवैध खरीद-फरोख्त (Illegal Trade) की घटनाओं के बारे में कई खुलासे हुए हैं। एक हाथी मालिक ने बताया कि हाथीगांव से गुजरात भेजे गए हाथी में से 60 प्रतिशत से ज्यादा की परिवहन स्वीकृति की अवधि समाप्त हो चुकी है, फिर भी इनमें से कोई हाथी वापस नहीं आया है। इसके पीछे का कारण यह बताया गया कि इन हाथियों को झूठ बोलकर गुजरात भेजा गया और वहां इनकी कीमत 50 से 70 लाख रुपए तक में बेच दी गई।
इसी दौरान, कुछ खरीद-फरोख्त के ऑडियो (Audio Clips) भी वायरल हो चुके हैं, जिसमें हाथियों की अवैध बिक्री की बात की जा रही है। यह पूरी स्थिति यह सवाल खड़ा करती है कि क्या हाथीगांव का संरक्षण और पर्यटन योजना पूरी तरह से विफल हो चुकी है? गुजरात में हाथियों की बिक्री एक बड़ा सवाल बन कर खड़ा है।
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वन विभाग का लापरवाह रवैया
वन विभाग का रवैया इस पूरे मामले में बेहद लापरवाह रहा है। न तो उसने हाथियों की निगरानी की और न ही इनकी वापसी की कोई सुनिश्चित प्रक्रिया अपनाई। यह स्थिति इस बात को साबित करती है कि विभाग ने संरक्षण की बजाय, अवैध गतिविधियों को बढ़ावा दिया। विशेषज्ञों का कहना है कि यदि समय रहते उचित कदम उठाए गए होते, तो यह मामला इस स्थिति तक नहीं पहुंचता। विशेषज्ञों का कहना है कि राजस्थान में हाथीगांव की स्थिति दिनों-दिन बदतर होती जा रही है।
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हाथी गांव की स्थिति पर क्या कदम उठाए जा सकते हैं?
हाथी गांव की वर्तमान स्थिति से यह साफ है कि वहां अब कोई प्रभावी संरक्षात्मक प्रणाली नहीं बची है। विशेषज्ञों और पर्यावरण कार्यकर्ताओं का मानना है कि सरकार को तुरंत कदम उठाने की आवश्यकता है ताकि हाथीगांव को फिर से अपनी मूल पहचान मिल सके और हाथियों की रक्षा सुनिश्चित की जा सके।
यहां कुछ कदम उठाए जा सकते हैं:
हाथी गांव की निगरानी को सख्त करना: वन विभाग को यहां की निगरानी प्रणाली को और अधिक प्रभावी बनाना होगा।
हाथी मालिकों के खिलाफ कार्रवाई: जो लोग इन हाथियों को अवैध रूप से बेच रहे हैं, उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जानी चाहिए।
संरक्षण योजनाओं को लागू करना: हाथी गांव को फिर से हाथियों के संरक्षण के लिए एक मॉडल स्थान बनाना होगा, जहां पर्यटन और संरक्षण दोनों को बढ़ावा मिले।
पारदर्शिता और जवाबदेही: वन विभाग को इस मामले में अधिक पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करनी होगी।
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