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Photograph: (the sootr)
राजस्थान में जमीनों के खेल में धांधलियों की खबर आती ही रहती हैं, लेकिन जयपुर के सबसे महंगे अपार्टमेंट ज्वैल ऑफ इंडिया (https://www.jewelofindia.net.in) की जमीन का मामला सबसे अजूबा है। भ्रष्टाचार की बुनियाद पर खड़े इस अपार्टमेंट को लेकर प्रदेश की भाजपा या कांग्रेस सरकारों के बहुत सारे सत्ताधीश और जयपुर विकास प्राधिकरण (जेडीए) आयुक्त की भूमिका सवालों में हैं।
हैरानी की बात यह है कि ज्वैल ऑफ इंडिया से जुड़ी जमीन के इस खेल का सच सामने लाने के लिए मौजूदा भजनलाल शर्मा सरकार भी आगे नहीं बढ़ रही है। अगर जेडीए के तत्कालीन विधि निदेशक दिनेश गुप्ता की राय को माना जाए, तो इस मामले की ईडी या सीबीआई जैसी एजेंसी से जांच होनी चाहिए।
इस हाई प्रोफाइल मामले की तह तक पहुंचने के लिए जांच इसलिए जरूरी है कि ज्वैल ऑफ इंडिया की जमीन केपस्टन मीटर को इंडस्ट्रियल उपयोग के लिए दी थी। अपार्टमेंट बनाने वाली जय ड्रिंक्स केपस्टन मीटर की हैसियत सिर्फ उप किराएदार कंपनी के रूप में थी।
जय ड्रिंक्स ने सत्ताधीशों और अफसरों के साथ ऐसा खेल रचा कि वह वर्ष 2007 में इंडस्ट्रियल जमीन पर 72967 वर्ग मीटर का कॉमर्शियल पट्टा हथियाने में कामयाब हो गया। उस समय जय ड्रिंक्स ने पट्टे के लिए रिजर्व प्राइस का सिर्फ पांच फीसदी यानी 66 करोड़ रुपए चुकाया।
तब बाजार भाव देखा जाए तो यह 87268 वर्ग गज जमीन 45 से 55 हजार प्रति वर्ग गज के हिसाब से 4500 करोड़ रुपए के आसपास कीमत की थी। हैरानी की बात यह है कि जेडीए ने जय ड्रिंक्स की निजी खातेदारी की जमीन मानकर उसे कौड़ियों में कॉमर्शियल पट्टा दे दिया।
जेएलएन मार्ग पर डब्ल्यूटीपी के आसपास आज जमीनों के रेट तीन से चार लाख रुपए प्रति वर्ग गज हैं। इसके लिए इस जमीन की कीमत आज करीब 25 हजार करोड़ से 35 हजार करोड़ रुपए के बीच है। सवाल है कि इस बेशकीमती सरकारी जमीन का पट्टा जय ड्रिंक्स को देने के खेल की जांच कराने में संकोच क्यों होना चाहिए। नगरीय विकास मंत्री झाबर सिंह खर्रा खुद मान चुके हैं कि इस मामले में गड़बड़ी दिख रही है।
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तत्काल रोका जाए दूसरे राउंड का निर्माण
गंभीर बात यह है कि जय ड्रिंक्स ज्वैल ऑफ इंडिया अपार्टमेंट में लगातार टॉवर खड़ा कर रही है। अपार्टमेंट की डवलपर कंपनी सनसिटी प्राइवेट लिमिटेड रेरा से दूसरे फेज की अनुमति ले चुकी है। रेरा से स्वीकृत हुए प्रस्ताव के अनुसार सनसिटी 11 अगस्त, 2026 तक दूसरे चरण के निर्माण को पूरा करेगी। इस चरण में 265 फ्लैट बनाए जाएंगे। इस प्रोजेक्ट का एरिया 24911 वर्गमीटर होगा। इससे पहले वह 34670 वर्गमीटर पर अपना पहला चरण पूरा कर चुकी है। इस अपार्टमेंट में 25 से अधिक आईएएस और आईपीएस अधिकारियों के फ्लैट हैं। इनमें से कई तो सालाना 20 लाख रुपए से अधिक का रेंटल कमा रहे हैं। जेडीए के एक अधिकारी का कहना है कि अगर ज्वैल ऑफ इंडिया अपार्टमेंट के लिए मिले पट्टे की जांच होती है, तो सबसे पहले दूसरे चरण के निर्माण को रोकना होगा।
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बड़ा सवाल-जय ड्रिंक्स को निजी खातेदार कैसे माना?
सरकार ने जय ड्रिंक्स को ग्राम झालाना डूंगर के खसरा नंबर 180, 181, 184 और 186 की जमीन का भू-उपयोग इंड्रस्ट्रियल से व्यावसायिक करने और पट्टा देने के आदेश दिए थे। जेडीए ने एक जुलाई, 2008 को जारी पट्टे में जय ड्रिंक्स को उक्त जमीन का निजी खातेदार माना है। सवाल यह है कि जय ड्रिंक्स को यह जमीन कैपस्टन मीटर से सब-लीज पर मिली थी और अवाप्ति से मुक्ति के बाद सरकार ने इंडस्ट्री लगाने के लिए दी थी, तो सरकार और जेडीए ने जय ड्रिंक्स को जमीन का निजी खातेदार कैसे मान लिया।
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पट्टा कॉमर्शियल तो कैसे बने फ्लैट?
जेडीए ने जय ड्रिंक्स को जमीन का कॉमर्शियल पट्टा दिया था। पट्टे की शर्त के अनुसार जमीन पर केवल व्यावसायिक निर्माण ही हो सकता है, तो फिर जेडीए और रेरा ने ज्वैल ऑफ इंडिया के नाम से फ्लैट्स बनाने की अनुमति कैसे दे दी? सरकार के आदेश और पट्टे में कहीं भी जमीन का उपयोग मिक्स यानी आवासीय और व्यावसायिक, दोनों करना नहीं लिखा है, तो फिर अफसरों ने फ्लैट्स के नक्शे कैसे पास किए? द सूत्र ने इस बारे में जेडीए अधिकारियों से पूछा तो उन्होंने इस मामले में कुछ भी बोलने से इनकार कर दिया।
सरकार ने माना इंडस्ट्रियल थी ज्वैल ऑफ इंडिया की जमीन, सवाल यह कि फिर कैसे मिला पट्टा?
वसुंधरा सरकार के समय मिला पट्टा
जय ड्रिंक्स ने पूर्व मुख्यमंत्री वसुधंरा राजे के पहले कार्यकाल में 2006 में भू-उपयोग परिवर्तन करने और कॉमर्शियल पट्टा लेने के लिए आवेदन किया था। इस दौरान प्रताप सिंह सिंघवी नगरीय विकास मंत्री थे। पूर्व आईएएस जगदीश चंद्रा और डीबी गुप्ता जेडीसी रहे थे। डीबी गुप्ता के जेडीसी रहते हुए ही सरकार से जय ड्रिंक्स को आवासीय की आरक्षित रेट के मात्र पांच प्रतिशत रेट पर कॉमर्शियल पट्टा देने का फैसला हुआ था।
हालांकि पट्टा जारी होने की तारीख एक जुलाई, 2008 को एक दिन पहले डीबी गुप्ता का तबादला हो गया था और अशोक जैन जेडीसी बन गए थे। जेडीए के तत्कालीन विधि निदेशक ने लिखा है कि प्रकरण से संबंधित पूरी जमीन की फाइल 2001 में ही गायब हो गई थी। इस दौरान आईएएस एनसी गोयल जेडीसी थे। जेडीए ने जैसे-तैसे करके फाइल तो दोबारा बनवा ली, लेकिन मूल फाइल गायब होने की एफआईआर आज तक दर्ज नहीं करवाई है।
कुछ नहीं कर पाए 39 जेडीसी
जयपुर विकास प्राधिकरण का गठन अगस्त, 1982 में हुआ था। 1982 से लेकर अब तक कुल 39 आईएएस जेडीसी रह चुके हैं। इनमें सतीश कुमार, वीबीएल माथुर, केके भटनागर, बीएस मिन्हास, एमडी कोरानी, धरम सिंह मीणा, हनुमान प्रसाद, पीएन भंडारी, आईएस कावड़िया, टीआर वर्मा, केएल मीणा, वीएस सिंह, राजीव महर्षि, एसएन थानवी, आरके मीणा, एनसी गोयल, जीएस संधू, दिनेश कुमार गोयल, उषा शर्मा, डॉ. ललित के पंवार, जगदीश चंद्र, डीबी गुप्ता, अशोक जैन, उमेश कुमार, सुधांश पंत, कुलदीप रांका, अभय कुमार, शिखर अग्रवाल, वैभव गालरिया, टी. रविकांत, गौरव गोयल, रवि जैन, डॉ. जोगाराम, मंजू राजपाल और आनंदी। इनमें से कई अफसर दो बार जेडीसी रहे हैं, लेकिन कोई भी अधिकारी इस मामले का सच सामने नहीं ला पाया। यहां तक कि इस जमीन को अपने कब्जे में लेने के लिए भी कोई प्रयास नहीं किए गए।
गोरखधंधा ऐसा... पहले कंपनी, फिर सरकार ने बदले प्लान
तत्कालीन मोहनलाल सुखाड़िया सरकार ने जयपुर में औद्योगिक गतिविधियां बढ़ाने के लिए वर्ष 1962 में मिले प्रस्ताव पर विचार करते हुए 1965 में कैपस्टन मीटर को कारखाना लगाने के लिए कुल 205 बीघा 8 बिस्वा जमीन लीज पर दी थी। आवंटन की शर्त और कानून के अनुसार दो साल में फैक्ट्री बनकर शुरू होनी थी। इस अवधि में फैक्ट्री शुरू नहीं होने पर जमीन वापस सरकार को लेनी थी। कंपनी ने 1967 में अपने स्तर पर प्लान बदलकर परिवार की दूसरी कंपनी जय ड्रिंक्स को 30 एकड़ यानी 52.5 बीघा जमीन सब-लीज पर दे दी। तब तक कोई जमीन पर कारखाना नहीं लगा। इस बीच, सुखाड़िया सरकार ने 1969 में प्लान बदल दिया और बजाज नगर से लेकर सांगानेर एयरपोर्ट तक करीब 467 बीघा जमीन विकास के लिए अवाप्त कर ली। इस अवाप्ति में कैपस्टन मीटर और जय ड्रिंक्स वाली जमीन भी अवाप्त हो गई।
विकास गया दूर, लौटा दी कंपनी को जमीन
तत्कालीन हरिदेव जोशी सरकार के समय 1986 तथा 1987 में कैपस्टन मीटर और जय ड्रिंक्स को लीज पर दी गई जमीन अवाप्ति से मुक्त कर दी। कानूनी तौर पर इस जमीन को अवाप्त करने की जरूरत नहीं थी, क्योंकि यह जमीन तो सरकारी ही थी और सरकार को सिर्फ कैपस्टन मीटर की लीज रद्द करनी थी। अवाप्ति से मुक्ति के बाद कानूनी तौर पर जमीन का स्टेटस फिर से इंडस्ट्रियल हो गया।
चौंकाने वाली बात यह रही कि सरकार ने अवाप्ति से मुक्ति के आदेश में कैपस्टन मीटर और जय ड्रिंक्स को फिर से जमीन का स्वामित्व दे दिया। जब यह काम हुआ, उस दौरान 10 मई, 1984 से 04 जून, 1986 तक केके भटनागर तथा 13 जून, 1986 से 23 जुलाई, 1988 तक बीएस मिन्हास जेडीए आयुक्त रहे थे। इसके बाद से अब तक 39 जेडीसी रहे, लेकिन आश्चर्य की बात है कि किसी ने भी सरकारी जमीन को दोबारा सरकार के कब्जे में लेने के लिए कदम नहीं बढ़ाए।
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यह कैसा खेल... सरकार ने खुद की जमीन ली दान में
अवाप्ति से मुक्त करने के साथ ही जमीन की बंदरबांट का खेल शुरू हुआ। यह इस हद तक हुआ कि सरकार ने सभी नियम-कायदों को ताक पर रखकर बेशर्मी से सरकारी जमीन का मालिक कैपस्टन और जय ड्रिंक्स को मान लिया। नगरीय विकास एवं आवासन विभाग के 14 अप्रैल, 1986 के अवाप्ति के मुक्ति के अजीबोगरीब आदेश में 7.5 एकड़ जमीन अस्पताल बनाने के लिए और 20 एकड़ जमीन जेडीए को दान में दे दी। सवाल यही था कि अफसरों ने सरकार की जमीन ही सरकार के खाते में दान में दिखा दी। आदेश के अनुसार जेडीए 20 एकड़ जमीन पर भूखंड विकसित करके नीलामी से बेचेगा। विकास कार्य पर हुआ खर्च घटाकर बाकी पैसा चिकित्सा विभाग को देगा।
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ऐसे हुई बंदरबांट
- एक मई, 1986 को जारी आदेश में 20 एकड़ सेकेंडरी स्कूल के लिए 5 एकड़ अस्पताल (हार्ट फाउंडेशन) के लिए, 5 एकड़ वृद्धाश्रम के लिए, 18 एकड़ जय ड्रिंक्स की फैक्ट्री के लिए और 12 एकड़ कैपस्टन मीटर की फैक्ट्री के लिए।
- सात दिसंबर, 1987 के आदेश से 15 एकड़ जमीन चैरिटेबल ट्रस्ट को दान में देना तय हुआ। ट्रस्ट को आधी जमीन बेचकर बाकी आधी जमीन पर बच्चों के लिए अनाथालय और ट्रेनिंग सेंटर बनाना तय हुआ। आधी जमीन बेचने के लिए चैरिटेबल ट्रस्ट को जेडीए और राज्य सरकार के एक-एक प्रतिनिधि को शामिल कर कमेटी बनानी थी। इस जमीन पर अस्पताल और जमीन तो बने और जय ड्रिंक्स का बॉटलिंग प्लांट भी चलता रहा, लेकिन कैपस्टन मीटर की फैक्ट्री नहीं लगी।