सरकार ने माना इंडस्ट्रियल थी ज्वैल ऑफ इंडिया की जमीन, सवाल यह कि फिर कैसे मिला पट्टा?

राजस्थान सरकार ने अपने जवाब में यह तो माना है कि ज्वैल ऑफ इंडिया अपार्टमेंट की जमीन इंडस्ट्री उपयोग की थी, लेकिन यह नहीं बताया है कि 60 साल तक इंडस्ट्री नहीं लगने पर जमीन वापस क्यों नहीं ली?

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Mukesh Sharma
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राजस्थान में जयपुर के सबसे महंगे ज्वैल ऑफ इंडिया अपार्टमेंट बनाने वाली जय ड्रिंक्स और केपस्टन मीटर के जमीन मामले में राजस्थान हाई कोर्ट में दायर जनहित याचिका पर पेश किए जवाब में राजस्थान सरकार और जयपुर विकास प्राधिकरण यानी कि जेडीए अपने ही विरोधाभास में फंसते दिखाई दे रहे हैं। 

यह अपार्टमेंट इंडस्ट्रियल उपयोग की सरकारी जमीन पर बना हुआ है, जो केपस्टन मीटर को सरकार से मिली जमीन का हिस्सा है। अपार्टमेंट में 6 से 9 करोड़ रुपए तक के फ्लैट हैं। इसमें 30 से अधिक आईएएस और आईपीएस के फ्लैट हैं। इनमें बहुत सारे नौकरशाह 20 लाख रुपए तक की सालाना रेंटल कमाई कर रहे हैं।

सरकार के जवाब में याचिकाकर्ता पर जानकारी का सोर्स नहीं बताने सहित कई कमियां बताकर याचिका खारिज करने की गुहार की है। सरकार ने अपने जवाब में यह तो माना है कि ज्वैल ऑफ इंडिया अपार्टमेंट की जमीन इंडस्ट्री उपयोग की थी, लेकिन यह नहीं बताया है कि 60 साल तक इंडस्ट्री नहीं लगने पर जमीन वापस क्यों नहीं ली? क्यों जय ड्रिंक्स को सरकारी जमीन पर कमर्शियल पट्टा देकर ज्वैल ऑफ इंडिया के नाम से फ्लैट बनाने की अनुमति दी?  

हाई कोर्ट में पेश किए गए जवाब में सरकार ने यह भी स्पष्ट नहीं किया है कि जेडीए से इस मामले की फाइल गुम होने की एफआईआर अब तक भी क्यों दर्ज नहीं करवाई है? सरकार ना ही यह बता रही है कि अगर सब कुछ कानूनी रूप से सही है, तो मामले की सीबीआई और ईडी जैसी एजेंसियों से जांच करवाने का विरोध क्यों है?

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अपने ही जवाब में फंसा जेडीए

सरकार के जवाब में बताया है कि मामला पुष्पा जयपुरिया फाउंडेशन ट्रस्ट की ओर से खसरा नंबर 177 और 178 का भू-उपयोग परिवर्तन करने के आवेदन से शुरू हुआ। इस मामले में जेडीए और सरकार के स्तर पर विचार चलने के दौरान कई आपत्तियां आई थीं। स्टेट लेवल कमेटी की 173वीं बैठक में विचार हुआ। तीन आपत्तिकर्ताओं को व्यक्तिगत रूप से सुना गया। आपत्तियों के आधार पर मामले में कानूनी राय लेना तय हुआ और जेडीए के विधि निदेशक को मामला भेजा गया।

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मांगी थी इंडस्ट्री लगाने की अनुमति

वास्तविकता में कैपस्टन मीटर ने सरकार से इंडस्ट्री लगाने की अनुमति मांगी थी। सरकार ने 23 अक्टूबर, 1962 के पत्र से कैपस्टन मीटर को टोंक रोड पर 200 बीघा जमीन खरीदने की अनुमति दी थी। कंपनी ने मानपुर देवरी और मीनावाला के खसरा नंबर 115 और 115/195 की और ग्राम झालाना डूंगर के खसरा नंबर 15, 521, 14, 16, 524, 527 और 528 की कुल 132 बीघा 5 बिस्वा जमीन खरीदी थी। कंपनी ने इस जमीन को सरकार को सरेंडर किया था और सरकार ने इसे इंडस्ट्री लगाने के लिए 23 अप्रैल, 1965 की लीज डीड के जरिए कंपनी को 99 साल की लीज पर आवंटित किया था।

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इसके बाद ग्राम झालाना डूंगर के खसरा नंबर 18, 522, 525, 526 और 530 की 73 बीघा 3 बिस्वा सिवाय चक जमीन भी 19 अक्टूबर, 1965 की लीज डीड के जरिए आवंटित कर दी थी। इसी में जय ड्र्रिंक्स और जयपुरिया एक्सपोर्ट्स को सब-लीज पर दी थी। 1969 में सरकार ने बजाज नगर से लेकर एयरपोर्ट तक जमीन अवाप्त की थी और इसमें यह जमीन भी शामिल थी। बाद में इसे अवाप्ति से मुक्त कर दिया।

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फ्लैट्स बनाने के लिए नहीं की थी अवाप्ति से मुक्त

सरकार ने जवाब में स्पष्ट किया कि अवाप्ति से मुक्ति के आदेश में ही लिखा है कि जमीन जिस काम के लिए मुक्त की जा रही है, उसी के लिए उपयोगी होगी। सरकार का दावा है कि याचिकाकर्ता ने यह आदेश छिपा लिए हैं। सच्चाई यह है कि सरकार ख्रुद छिपा रही है कि जमीन की अवाप्ति से मुक्ति फ्लैट्स बनाने के लिए नहीं की गई थी। सरकार के 14 मई, 1986, एक मई, 1986 और 7 दिसंबर, 1987 के आदेश में स्पष्ट लिखा है कि किस-किस खसरे की जमीन किस काम के लिए अवाप्ति से मुक्त की जा रही है। जमीन उसी काम में ली जा सकेगी, जिस काम के लिए अवाप्ति से मुक्त की जा रही है।

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कारखाना लगाने के लिए दी थी जमीन

सरकार के एक मई, 1986 के अवाप्ति से मुक्ति के आदेश के अनुसार, झालाना डूंगर के खसरा नंबर 521, 522, 523, 528 और 530 के भाग की 18 एकड़ जमीन जय ड्रिंक्स प्रा. लि. को फैक्ट्री लगाने के लिए अवाप्ति से मुक्त की थी। इस आदेश में स्पष्ट लिखा है कि जमीन जिस काम के लिए अवाप्ति से मुक्त की जा रही है, सिर्फ उसी काम में ही ली जाएगी। इस सरकारी आदेश से ही साफ है कि जय ड्रिंक्स की जमीन पर फ्लैट्स नहीं बन सकते। 

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...और विधि निदेशक की राय मान भी ली

सरकार अपने जवाब में विधि निदेशक की राय को काल्पनिक और अनुमान के आधार पर बताकर दरकिनार कर रही है, लेकिन उनकी राय को मानकर पुष्पा जयपुरिया फाउंडेशन की जमीन का भू-उपयोग बदलने की जेडीए की 17 अक्टूबर, 2022 को भेजी गई सिफारिश वापस भी ले लेती है। जेडीए के फैसले के बाद स्टेट लेवल की कमेटी 180वीं बैठक में मामले को बंद कर देती है।

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जरूरत क्या थी 60 साल का इतिहास खंगालने की?

सरकार का कहना है कि विधि निदेशक ने बिना पूरे रिकॉर्ड के और बिना आवश्यकता के 60 साल के इतिहास को खंगाल डाला। जेडीए ने उनकी राय को दरकिनार करते हुए पूर्व महाधिवक्ता से कानूनी राय ली थी। उन्होंने भू-उपयोग परिवर्तन को कानूनी तौर पर सही बताया और विधि निदेशक की अधिकांश कानूनी राय को अस्वीकार कर दिया।

मामला 13 जुलाई, 2023 को चीफ टाउन प्लानर को भेजा गया था। दोनों कानूनी राय में विरोधाभास होने के आधार पर चीफ टाउन प्लानर ने जेडीए की अधिकृत कमेटी से भू-उपयोग परिवर्तन पर स्पष्ट रुख तय करने को कहा। इसके बाद कमेटी ने आठ अगस्त, 2024 को पुष्पा जयपुरिया फांउडेशन की जमीन के भू-उपयोग परिवर्तन पर सरकार को भेजी अपनी सिफारिश वापस लेने का फैसला किया और जमीन नपवाकर राजस्व रिकॉर्ड में जेडीए के नाम दर्ज करवाने की सिफारिश की थी।  

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जवाब में सरकार ने दी ये दलीलें

सरकार ने जवाब में कहा है कि याचिका जेडीए के तत्कालीन विधि निदेशक की नोट शीट और कानूनी राय के आधार पर है, जबकि उनकी अधिकांश कानूनी राय को जेडीए ने माना ही नहीं। उनकी नोट शीट न तो बाध्यकारी थी और ना ही कानूनी मुद्धों पर सही थी। किसी अफसर की नोट-शीट के आधार पर जनहित याचिका दायर नहीं हो सकती। याचिका से साफ नहीं है कि किस जमीन के भू-उपयोग परिवर्तन की शिकायत है।

जय ड्रिंक्स की जमीन का भू-उपयोग परिवर्तन और पट्टा देने का मामला विधि निदेशक के जांच का विषय ही नहीं था और जिस जमीन को लेकर याचिकाकर्ता को आपत्ति है, उसका भू-उपयोग परिवर्तन हुआ ही नहीं है। याचिकाकर्ता ने अपने आरोपों को साबित करने के लिए न तो कोई दस्तावेज पेश किए और ना ही सोर्स ऑफ इंफॉर्मेशन का खुलासा किया है। सिर्फ इतना ही कहा कि मामला उनकी जानकारी में था और अखबारों से उन्हें पता चला है।

सरकार का दावा, नहीं की कोई गड़बड़ी

सरकार का दावा है कि प्रभावशाली लोगों की मदद के लिए कानूनी दायित्वों को पूरा नहीं करने के आरोप निराधार हैं। सरकार ने इस मामले में सभी काम कानूनी तौर पर सही किए हैं और किसी प्रकार की गड़बड़ी करने के आरोप झूठे और आधारहीन हैं। 23 अप्रैल, 1965 और 19 अक्टूबर, 1965 को जारी लीज डीड में किसी कानून का उल्लंघन नहीं है। लीज में सरकार की पूर्व अनुमति से सब-लीज पर देने का प्रावधान था। सब-लीज पर देने के लिए 7 नवंबर, 1966 को अनुमति दे दी थी। एक ही परिवार के द्वारा अलग-अलग काम के लिए अलग-अलग कंपनियां बनाना जालसाजी नहीं होती।

इसलिए गैर-कानूनी है ज्वैल ऑफ इंडिया

एक मई, 1986 को 18 एकड़ जमीन जय ड्रिंक्स की फैक्ट्री के लिए अवाप्ति से मुक्त की गई थी। इसलिए इस जमीन का भू-उपयोग परिवर्तन किसी भी स्थिति में नहीं हो सकता था, क्योंकि यह जमीन मूलत: कैपस्टन मीटर को दी गई 205.8 बीघा जमीन का ही हिस्सा है। जमीन की लीज डीड में ही जमीन का भू-उपयोग औद्योगिक से किसी अन्य कैटेगरी में नहीं करने की शर्त लिखी है।

अवाप्ति से मुक्ति के एक मई, 1986 के आदेश में भी भू-उपयोग बदलने पर रोक है। तत्कालीन राजस्थान लैंड रेवेन्यू (इंडस्ट्रियल एरिया अलॉटमेंट) रूल्स-1959 के तहत औद्योगिक श्रेणी की जमीन का भू-उपयोग नहीं बदल सकता। इसलिए जय ड्रिंक्स को दिया गया 72,967 वर्गमीटर का पट्टा और ज्वैल ऑफ इंडिया के निर्माण की अनुमति गैर-कानूनी है।

FAQ

Q1: ज्वैल ऑफ इंडिया का निर्माण किस जमीन पर हुआ था?
ज्वैल ऑफ इंडिया अपार्टमेंट का निर्माण राजस्थान सरकार द्वारा औद्योगिक भूमि (Industrial Land) पर किया गया था, जिसे बाद में कमर्शियल पट्टा (Commercial Lease) पर दिया गया।
Q2: क्या यह भूमि कानून के अनुसार आवंटित की गई थी?
नहीं, भूमि फैक्ट्री (Factory) के निर्माण के लिए अवाप्ति से मुक्ति दी गई थी, जबकि इसका उपयोग फ्लैट्स (Flats) बनाने के लिए किया गया, जो कि कानूनी नहीं था।
Q3: सरकार ने इस मामले पर क्या कदम उठाए हैं?
सरकार ने इस मामले में जेडीए और पुष्पा जयपुरिया फाउंडेशन के फैसले को सही ठहराया है, लेकिन भूमि उपयोग परिवर्तन और फ्लैट्स के निर्माण पर विवाद कायम है।

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